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धर्म की आजादी के लिए धर्मनिरपेक्षता जरूरी है : प्रो फैजान मुस्तफा

गोरखपुर। ‘ भारत को एक शब्द में सही सही वर्णित करना है तो कहना होगा कि वह शब्द है विभिन्नता। देश के संविधान ने विविधता प्रबंधन के जो पैमाने बनाए, सत्ता में सबको भागीदारी देने और सबका ख्याल रखने का जो आदर्श तय किया उसका लक्ष्य भाईचारा प्राप्त करते हुए देश को मजबूत बनाना है। हम विविधता प्रबंधन इसलिए चाहते हैं कि भाईचारा हो जाए। जो भाईचारा के विरुद्ध कार्य कर रहे हैं, वे राष्ट्र व संविधान के विरूद्ध कार्य कर रहे हैं। असली राष्ट्रद्रोही वह हैं जो संविधान द्वारा तय किए राष्ट्र के लक्ष्य से देश को दूर ले जाने का कार्य कर रहे हैं। ‘

यह बातें चाणक्य राष्ट्रीय विधि विश्वविद्यालय, पटना के कुलपति प्रसिद्ध संविधान विशेषज्ञ प्रो फैजान मुस्तफा ने कही। वे नागेन्द्र नाथ सिंह स्मृति व्याख्यान एवं सम्मान समारोह में ‘ भारतीय संविधान में विविधता प्रबंधन ‘ विषय पर व्याख्यान दे रहे थे।

इस अवसर पर विभिन्न क्षेत्रों में उल्लेखनीय कार्य करने वाले लोगों-भास्कर दुबे (वकालत), सुभाष चौधरी (साहित्य), चन्द्रविजय सिंह (कुश्ती), इंद्रदेव पासवान (राजनीति), सरदार जसपाल सिंह (समाज सेवा), डाॅ एस सी त्रिपाठी (विज्ञान एवं तकनीक), यूपी पांडेय (पत्रकारिता), अजय कुमार शाही (शिक्षा), एके सिंह ( श्रमिक संगठन), डॉ मुमताज खान (बाल कल्याण) को स्मृति चिन्ह व अंग वस्त्र देकर सम्मानित किया गया।

प्रो फैजान मुस्तफा ने अपने व्याख्यान में कहा कि भारत के संविधान में संघवाद, धर्मनिरपेक्षता, आरक्षण नीति, धार्मिक व भाषायी अल्पसंख्यकों के  महिलाओं, ट्रांसजेंडर ऑ यौन अल्पसंख्यकों के अधिकारों के संरक्षण के जरिए विभिन्नताओं का प्रबंधन किया गया है। भारत के लिए यह जरूरी था क्योंकि एकजातीय नहीं विषम जातीय देश है। भारत बहुभाषी, बहुधार्मिक, बहुजातीय  है। जो लोग एक देश एक भाषा, एक धर्म, एक कानून, एक इलेक्शन आदि की बात करते हैं वह आइडिया ऑफ इंडिया के खिलाफ है।

देश में जब संविधान बन रहा था तभी देश का धर्म के नाम पर विभाजन हो गया और बहुत जल्दी पड़ोसी देश इस्लामिक राष्ट्र बन गया। देश के विभाजन के बाद काफी हिंसा हुई। इस कठिन समय में संविधान निर्माताओं ने तय किया कि हम अपने देश की विभिन्नताओं को देखते हुए उसके प्रबंधन के तरीके तय करेंगे।


उन्होंने कहा कि बड़े और विभिन्नताओं वाले देश के लिए संघवाद बेहद जरूरी है। जो देश संघवाद नहीं अपनाते वे विभाजित हो जाते हैं। दुनिया में इसके तमाम उदाहरण हैं। संघवाद देश को मजबूत बनाता है। हमारे देश ने संघवाद को अपना कर राज्यों को शक्तियां दी। केन्द्र और राज्यों के बीच अधिकार का बंटवारा किया।

धर्मनिरपेक्षता की व्याख्या करते हुए उन्होंने कहा इसका अर्थ है कि राज्य का कोई धर्म नहीं है। वह किसी धर्म को न तो प्रोत्साहित करेगा न किसी धर्म से द्वेष करेगा। वह सभी धर्मों से समान दूरी बरतेगा। चूंकि राज्य दुनियावी है इसलिए वह धर्म से कोई वास्ता रख ही नहीं सकता। ‘ साल्वेशन ऑफ सोल ’ राज्य की नहीं धर्म की जिम्मेदारी है।

 

प्रो फैजान मुस्तफा के व्याख्यान का आडियो सुनें 

प्रो फैजान मुस्तफा ने कहा कि राज्य का कोई धर्म नहीं होने से सबसे अधिक फायदा धर्म का ही होता है क्योंकि यदि राज्य का कोई अपना धर्म होगा तो वह उस धर्म पर हावी हो जाएगा और अपने अनुसार धर्म बनाने लगेगा।  इससे सबसे बड़ा नुकसान धर्म का ही होगा। इसलिए धर्मनिरपेक्षता धर्म की आजादी के लिए जरूरी है। धर्म को राज्य से बचाना है तो धर्मनिरपेक्षता जरूरी है। धर्मनिरपेक्षता शब्द को संविधान में जोड़े जाने के पहले सुप्रीम कोर्ट ने केशवानंद भारती केस में कहा था कि धर्मनिरपेक्षता हमारे संविधान का मूल ढांचा है।

उन्होंने कहा कि हमारे देश में दलित और पिछड़े समाज के लोग शताब्दियों से शोषण के शिकार रहे हैं। ऐसे समुदायों को आरक्षण देना विविधता प्रबंधन का ही मैकेनिज्म है। उन्होंने कहा कि अदालतें आरक्षण को नियंत्रित, सीमित और सीमाबद्ध करने का काम कर रही हैं। क्रीमीलेयर की पहचान, प्रमोशन में आरक्षण या आरक्षण की सीमा तय करने के फैसले इसके उदाहरण है। सरकार राजनीतिक फायदे के लिए संवैधानिक संशोधन कर ऐसे फैसलों को वैधता दे रही हैं। विभिन्नता के प्रबंधन के लिए संविधान द्वारा दी गई एक अच्छी व्यवस्था का राजनीतिकरण किया जा रहा है। संविधान के अनुसार आरक्षण राज्य की हर संस्था में प्रतिबिंबित होना चाहिए।

उन्होंने कहा कि संविधान के मूल कर्तव्य में भी विविधता के प्रबंधन को बताते हुए कहा गया है कि हम मिली जुली संस्कृति का सम्मान करें और धार्मिक, सांस्कृतिक, भाषायी विविधता का संरक्षण करें। आज जब देश की महिलाओं को यह लगता है कि वे कहीं भी सुरक्षित नहीं हैं तो हमारे विविधता प्रबंधन पर सवाल उठता हैं। यदि राज्यों को लगने लगे कि कभी भी उन्हें केन्द्र शासित राज्य बनाया जा सकता है, तो विविधता प्रबंधन पर सवाल उठता है। इसी तरह हर राज्य को लगना चाहिए कि उसके साथ इंसाफ हो रहा है। लगना चाहिए कि तमिलनाडु के साथ इंसाफ हो रहा है तो मणिपुर के साथ भी इंसाफ हो रहा है।

उन्होंने कहा कि अल्पसंख्यकता का आधार केवल संख्यात्मक नहीं बल्कि अशक्तता भी है। यदि कोई समुदाय संख्या में अधिक है लेकिन सत्ता में उसकी भागीदारी नहीं है तो यह अशक्तता है।

 मुख्य अतिथि इंटीग्रल कोच फैक्ट्री के पूर्व महाप्रबंधक एवं वंदे भारत ट्रेन योजना के वास्तुकार सुधांशु मणि ने रेल संचालन में विविधता प्रबंधन की बात करते हुए कहा कि देश के गरीब कमजोर लोगों को सम्मान के साथ सभी सुविधाओं के साथ रेल यात्रा का हक है। यह सिर्फ कुछ अमीर लोगों के लिए नहीं होना चाहिए। भारत सही मायनों में विकसित भारत तभी होगा जब देश के चंद लोग ही आगे नहीं बढ़ेंगे बल्कि देश के हर तबके के लोग विकास करेंगे।

अध्यक्षता कर रहे वरिष्ठ पत्रकार एवं पब्लिक इंडिया के संपादक आनन्द वर्धन सिंह ने सेकुलर सिविल कोड की चर्चा को फिजूल बताते हुए कहा कि भारत की आत्मा उसकी विविधता है। इस पर चोट देश पर चोट करना है लेकिन आज सर्वाधिक हमला देश की विविधता पर ही हो रहा है।

कार्यक्रम के प्रारम्भ में नागेन्द्र नाथ सिंह स्मृति न्यास के अध्यक्ष राजेश सिंह ने स्वागत उद्बोधन करते हुए नागेन्द्र नाथ सिंह स्मृति व्याख्यान एवं सम्मान समारोह की 12 वर्ष की यात्रा पर प्रकाश डाला। शहर के प्रसिद्ध चिकित्सक एवं अदबी शख्सियत डॉ अजीज अहमद ने धन्यवाद ज्ञापित किया। संचालन डॉ मुमताज खान ने किया।

इस मौके पर मंच पर गोरखपुर विश्वविद्यालय के हिंदी विभाग के पूर्व अध्यक्ष प्रो चितरंजन मिश्र, पूर्व विधायक राजमणि पांडेय, पूर्व राज्य सूचना आयुक्त हर्षवर्धन शाही, पूर्वोत्तर रेलवे के सेवानिवृत वरिष्ठ अधिकारी एवं लेखक रणविजय सिंह, पूर्व कुलपति प्रो रजनीकांत पांडेय उपस्थित थे।

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