साहित्य - संस्कृति

चार दिवसीय उर्दू साहित्य सम्मेलन का आग़ाज़, शायर माजिद अली की पुस्तक “ कलामे महशर ” का विमोचन

गोरखपुर। साजिद अली मेमोरियल कमेटी, गोरखपुर के तत्वावधान में साहित्य प्रेमी,  शिक्षाविद एवं नगर सहकारी बैंक के पूर्व चेयरमैन मोहम्मद हामिद अली की याद में चार दिवसीय उर्दू साहित्य सम्मेलन का शुभारंभ रविवार को एम०एस०आई इण्टर कालेज, बख़्शीपुर के आडिटोरियम में हुआ। इस मौके पर वरिष्ठ शायर माजिद अली “महशर”गोरखपुरी के काव्य संग्रह (मजमुआ कलाम) “कलामे महशर” का लोकार्पण किया गया।

कार्यक्रम के मुख्य अतिथि हकीम सैय्यद अहमद ख़ान (पूर्व निदेशक तिब यूनानी, राम मनोहर लोहिया और सफदर जंग अस्पताल, दिल्ली) को प्रशस्ति-पत्र एवं स्मृति चिन्ह भेंट कर सम्मानित किया गया। हकीम सैय्यद अहमद ख़ान ने कहा कि मोहम्मद हामिद अली उर्दू के सच्चे आशिक़ और शिक्षा के पैरोकार थे। वह अपने जीवन में उसूलों के पाबंद थे। उन्होंने उर्दू ज़ुबान के सुधार और बेहतरी के अमूल्य योगदान दिया है।

साजिद अली मेमोरियल कमेटी के सचिव महबूब सईद हारिस ने कहा कि माजिद अली “महशर”गोरखपुरी का जन्म 1878  को हुआ और 66 वर्ष की आयु में 1944 में उनका स्वर्गवास हो गया। उनकी कविताओं में वाह और आह दोनों का रंग है। साधारण और सरल शब्दों में ऐसी बातें कह जाते थे कि पढ़ने और सुनने वाला आश्चर्य में पढ़ जाता। कल्पना, विचारों की पवित्रता, विषयों की चपलता और गुणवत्ता उनके के काव्य के विशेष अंग हैं। उन्होंने कहा कि उर्दू भाषा जो गंगा-जमुनी संस्कृति की देन है। उर्दू ज़बान ने भारतीय स्वतंत्रता संग्राम में बढ़-चढ़ कर हिस्सा लिया।

विशिष्ट अतिथि विशेष न्यायिक मजिस्ट्रेट अब्दुल राशिद  ने कहा कि उर्दू ज़ुबान का संबंध एक वर्ग विशेष के साथ जोड़ कर, इसके साथ न्याय नहीं किया जा रहा है। उन्होंने कहा कि इस प्रकार के कार्यक्रमों से उर्दू ज़ुबान को ताक़त मिलेगी।

मोती लाल ट्रस्ट के सचिव राजेश सिंह ने कहा कि हामिद अली  एक व्यक्तित्व नही बल्कि एक संस्था थे। वो गंगा-जमुनी तहज़ीब के अगुवा थे। उन्होंने अपने पिता स्वतंत्रता संग्राम सेनानी नागेंद्र नाथ सिंह के साथ उनकी प्रगाढ़ दोस्ती को याद किया।

सेन्ट एण्ड्रयूज कालेज के प्राचार्य प्रोफेसर सीओ सैमुअल ने उर्दू विषय के विद्यार्थियों की संख्या कम होने पर  चिंता जतायी।

वरिष्ठ साहित्यकार एवं चिकित्सक डॉ० अज़ीज़ अहमद ने कहा कि अगर उर्दू ज़ुबान कहीं बोली जाती है तो उर्दू जुबान में वो कशिश होती कि लोग ख़ुद ब ख़ुद उसकी जानिब चले आते हैं।

वरिष्ठ पत्रकार मनोज कुमार सिंह ने कहा कि गोरखपुर को हिंदी-उर्दू का अदबी दोआब बताते हुए रियाज खैराबादी, प्रेमचंद, फ़िराक़ गोरखपुरी, अमृता शेरगिल के गोरखपुर से जुड़ाव का जिक्र करते हुए हिंदी-उर्दू के नाम पर फिरकापरस्ती की साजिशों की तरफ इशारा किया। उन्होंने कहा कि प्रेमचंद ने लिखा था कि हिंदी और उर्दू एक ही जबान के दो रूप हैं। वे हाईस्कूल तक सभी शिक्षालयों में हिंदी -उर्दू को एक साथ पढ़ाए जाने के हिमायती थे। फ़िराक़ गोरखपुरी ने उनकी बात को और अगगे बढ़ाया और कहा कि  सबसे बड़ी ज़रूरत इस बात की है कि मुल्क के जिन स्कूलोंकॉलिजों और यूनिवर्सिटियों में उर्दू और हिन्दी के अलग-अलग दर्जेशोबे या क्लास हैंउन्हें तोड़ कर एक कर दिया जाये।

कार्यक्रम का संचालन करते हुए मोहम्मद फ़र्रूख़ जमाल ने कहा कि उर्दू हिंदोस्तान की ज़ुबान है और अगर उर्दू ज़िंदा रहेगी तो हिंदोस्तान की तहज़ीब ज़िंदा रहेगी।

इस अवसर पर बीबी राना परमजीत कौर, तनबीर सलीम, डा. विजाहत करीम ने भी अपने विचार व्यक्त किया।

इस मौके पर विशेष रूप से क़ाज़ी शहीरूल हसन, अब्दुल्लाह सेराज, मसरूर जमाल, डॉ० फैजान, डॉ० रूशदा, डॉ० तरन्नुम, मुनव्वर सुल्ताना, आसिफ सईद, जफर अहमद खान, नदीम उल्लाह अब्बासी, अनवर जिया, ज़मीर अहमद पयाम, अहमर इलियास, मोहम्मद असरार, डॉ० अमरनाथ जायसवाल, देशबंधु आदि उपस्थित रहे।

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