गोरखपुर। दिशा छात्र संगठन की ओर से पंत पार्क में 19 नवंबर को ‘ देश में बढ़ती बेरोज़गारी की समस्या! जिम्मेदार कौन ? ‘ विषय पर विचार गोष्ठी का आयोजन हुआ।
संगठन की सदस्य अंजलि ने बताया कि आमतौर पर बेरोज़गारी के लिए बढ़ती जनसंख्या को ज़िम्मेदार ठहराया जाता है लेकिन वास्तविकता इसके ठीक विपरीत है। लाखों की संख्या में विभागों में पद खाली पड़े हैं लेकिन उनको भरने की जगह सरकारें या तो पद ख़त्म कर रही है या फिर संविदा और ठेके पर दे रही है। निजीकरण-ठेकाकरण पर हम सवाल न उठा सके इसलिए जनसंख्या का शिगूफा शासक वर्ग छोड़ता है। दरअसल मुनाफ़े पर टिकी मौजूदा व्यवस्था अपनी स्वाभाविक गति से समाज में एक तरफ़ कुछ लोगों के लिए विलासिता की मीनारें खड़ी करती जाती है तो दूसरी ओर करोड़ों-करोड़ छात्रों समेत आम आबादी को गरीबी और भविष्य की अनिश्चितता के अँधेरे में ढकेलती है। मुनाफ़ा इस व्यवस्था की चालक शक्ति होती है और होड़ इसका नियम। होड़ से पैदा हुई इस मंदी की कीमत छँटनी, तालाबन्दी, भुखमरी, दवा-इलाज़ का अभाव, बेरोज़गारी आदि रूपों में छात्रों-नौजवानों और मेहनतकश अवाम को चुकाना पड़ता है।
उन्होंने कहा कि बेरोज़गारी की चक्की में सबसे ज्यादा नौजवान पिस रहे हैं। देश का हर पाँचवा डिग्री होल्डर रोज़गार के लिए भटक रहा है। देश में ग्रेजुएट बेरोज़गारों की तादाद सवा करोड़ के ऊपर पहुँच चुकी है। अंडर ग्रेजुएट नौजवानों में औसत बेरोज़गारी की दर 24.5% पहुँच चुकी है। मतलब यह कि देश का हर चौथा डिग्रीधारी बेरोज़गार है।
बेरोज़गारी का संकट दिन प्रति दिन और विकराल रूप ग्रहण करता जा रहा है। सरकारों के तमाम दावों के विपरीत आबादी के अनुपात में रोज़गार सृजन की बात तो दूर, जो नौकरियाँ पहले से थीं वो भी खत्म होती जा रही हैं। सरकारी विभागों मे निकलने वाली नौकरियाँ लगातार कम होती जा रही हैं। दूसरी ओर हर साल करोड़ों छात्र ‘जॉब मार्केट’ मे दाखिल हो रहे हैं, लाखों छात्र निराशा और अपराधबोध की वजह से अवसाद के शिकार हो रहे हैं। अब अवसाद नौजवानों की ज़िन्दगी पर भारी पड़ने लगा है। एनसीआरबी के आँकड़ों के मुताबिक अभी छात्रों- नौजवानों की आत्महत्या दर जनसंख्या दर से भी ज्यादा है। आत्महत्या बेरोज़गारी का निदान नहीं है। आज की ज़रूरत है कि छात्र नौजवान ‘सबको समान व निःशुल्क शिक्षा और सबको रोज़गार का हक़’ की माँग को लेकर बड़ी लामबन्दी कायम करें और एक समतामूलक समाज को बनाने की लड़ाई से इस आन्दोलन को जोड़े।
गोष्ठी में प्रीति, शालिनी, दीपक ने भी अपने विचार साझा किए। कार्यक्रम में धर्मराज, सौम्या, प्रीति, शालिनी, शेषनाथ, संजीव, मनीष, शिव, अनीशा, आदि शामिल हुए।