गोरखपुर। दलित नेता एवं अंबेडकर जन मोर्चा के मुख्य संयोजक श्रवण कुमार निराला नौ दिसम्बर कि शाम महराजगंज जिला जेल से रिहा हो गए। माइक्रोफाइनेंस कंपनियों की संस्था द्वारा महराजगंज के फरेंदा थाने में दर्ज कराए गए केस में वे 16 अक्टूबर से जेल में थे। उन्हें इलाहाबाद हाई कोर्ट ने चार दिसंबर को जमानत मिली। हाईकोर्ट ने श्री निराला को जमानत देते हुए कहा कि प्रथम दृष्टया आवेदक को अपराध से जोड़ने के लिए कोई ठोस सबूत नहीं है।
जेल से रिहा होने पर बड़ी संख्या में मौजूद समर्थकों ने श्री निराला का फूल माला और मिठाइयों से स्वागत किया। श्री निराला ने जेल से रिहा होने के बाद कहा कि जनता की आवाज उठाने पर उन्हें एक बार फिर झूठे केस में फँसाकार देह महीने से अधिक समय तक जेल में रखा गया। गरीबों की आवाज बनने पर हुकूमत उनहे यह सजा दे रहा है। मेरा पूरा जीवन गरीब जनता के लिए समर्पित है और आगे भी रहेगा। मैं अपने कर्तव्य पथ से नहीं हटूँगा।
दलित नेता निराला को 16 अक्टूबर को अपराध संख्या 307/2024, धारा 318(4), 338, 336(3), 340(2), 56 बी.एन.एस. के तहत गिरफ्तार किया गया था।उनके खिलाफ माइक्रोफाइनेंस इंस्टीट्यूशन नेटवर्क (एमएफआईएन) के असिस्टेंट वाइस प्रेसीडेंट धीरज सोनी ने एफआईआर दर्ज कराई थी। निराला पर आरोप लगाया गया था कि उन्होंने और अम्बेडकर जन मोर्चा की राष्ट्रीय अध्यक्ष सीमा गौतम व सदस्यों ने महिला समूहों में अफवाह फैलाई कि माइक्रोफाइनेंस कंपनियों के लोन को जमा करने की कोई आवश्यकता नहीं है। महिलाओं से 500-500 रूपये लेकर व फर्जी व कुटरचित तरीके से उनका अंगुठा निशानी लेकर फार्म भरवाकर उन्हें यह आशवासन दिया गया कि उन्हें अब लोन भरने की कोई आवश्यकता नहीं है।
दरअसल माइक्रोफाइनेंस कम्पनियों से कर्ज लेने वाली सैकड़ों महिलाएं 13 और 14 अक्टूबर को गोरखनाथ मंदिर पहुंच गयी थी। उनका कहना था कि उन्हें बताया गया है कि उनके कर्ज माफ होने वाला है और इसके लिए वे अपना आवेदन देने यहां आयी हैं। गोरखनाथ मंदिर पहुंची महिलाओं में अधिकतर महराजगंज जिले की थीं। अधिकारियों ने महिलाओं को समझाबुझा कर वापस किया और बताया कि कर्ज माफ करने की बात अफवाह है।
इसके बाद अधिकारियों ने अंबेडकर जन मोर्चा के मुख्य संयोजक श्रवण कुमार निराला को निशाना बनाया। श्री निराला उस समय अपने संगठन के माध्यम से माइक्रोफाइनेंस कम्पनियों के अत्यधिक ब्याज दर, कर्ज वसूली के लिए रिजर्व बैंक की गाइड लाइन का उल्लंघन करते हुए उत्पीड़न करने की कार्यवाही के खिलाफ आवाज उठा रहे थे।
निराला के ऊपर महराजगंज के फरेंदा थाने में एफआईआर दर्ज करने के बाद गोरखपुर के गोरखनाथ थाने में भी इन्हीं आरोपों में केस दर्ज किया गया था।
गोरखनाथ थाने में दर्ज केस में उनको जमानत जिला अदालत से जमानत मिल गई थी लेकिन फरेंदा थाने में दर्ज केस में फरेंदा के न्यायिक मजिस्ट्रेट ने जमानत अर्जी खारिज कर दी थी।
इलाहाबाद हाईकोर्ट के न्यायाधीश विवेक वर्मा ने चार दिसंबर को जमानत अर्जी पर सुनवाई करते हुए कहा कि न्यायालय प्रथम दृष्टया पाता है कि इस स्तर पर आवेदक को अपराध से जोड़ने के लिए कोई ठोस सबूत नहीं है। आवेदक एक महीने से अधिक समय से जेल में बंद है और आरोप-पत्र प्रस्तुत किए जाने के बाद मुकदमे के शीघ्र समापन की कोई उम्मीद नहीं है, खासकर तब जब राज्य द्वारा कोई उचित आशंका सामने नहीं लाई गई है कि आवेदक को जमानत पर रिहा किए जाने पर वह साक्ष्यों से छेड़छाड़ करेगा या मुकदमे में देरी करेगा या गवाहों को डराएगा। मामले के गुण-दोष पर टिप्पणी किए बिना, मेरा मत है कि आवेदक को जमानत पर रिहा किए जाने का अधिकार है।