साहित्य - संस्कृति

‘ मनुष्यता पर बढ़ते खतरे के बारे में हमें सचेत करता है साहित्य ’

देवरिया। ग्रामीण पुस्तकालय भलुआ, देवरिया की स्थापना दिवस पर स्व. विंध्याचल सिंह स्मारक न्यास द्वारा 29 दिसम्बर को ‘ पूँजीवादी विकास के दौर में लोकतांत्रिक मूल्य और साहित्य ‘ विषय पर परिचर्चा, सम्मान समारोह एवं काव्य गोष्ठी का आयोजन किया गया।

कार्यक्रम की शुरुआत अतिथियों को असमिया गमुसा और स्मृति चिन्ह देकर स्वागत के साथ हुआ। इसके बाद परिचर्चा की शुरुआत हुई।

विषय प्रवेश करते हुए देवरिया के वरिष्ठ साहित्यकार उद्भव मिश्र ने कहा कि ‘पूँजीवाद को चलाते-चलाते मनुष्य कब पूंजीवाद के गिरफ्त में आ जाता है पता नहीं चलता है।’

जनवादी लेखक संघ गोरखपुर के अध्यक्ष जयप्रकाश मल्ल ने कहा कि ‘ पूँजीवाद के दौर में आम इंसान से कार्य करने के अवसर छीने जा रहे हैं, पूँजीवाद में विकास तो दिख रहा है लेकिन इसी अनुपात में लोग भुखमरी से मर भी रहे हैं।’

जन संस्कृति मंच के राष्ट्रीय महासचिव एवं वरिष्ठ पत्रकार मनोज कुमार सिंह ने पूँजीवाद विकास के चरणों कि चर्चा करते हुए कहा कि आज इसके दुष्परिणाम पूरी दुनिया भुगत रही है। पर्यावरण विनाश, मजदूरों-किसानों की बदतर होती जा रही जिंदगी, भयानक असमानता, आदिवासियों के विस्थापन, महिलाओं, बच्चों व वंचितों पर बढ़ती हिंसा और उन्हें गुलामी की स्थिति में धकेल दिए जाने में पूंजीवादी विकास की अनिवार्य परिणति को देखा जा सकता है। राजनीतिक रूप से अधिनायकवाद और फासीवाद ताकतें फिर से मजबूत हो रही हैं। पूजीवादी विकास के नए दौर में सूचना और जैव प्रौद्योगिकी कि क्रांति ने एकाधिकारवादी ताकतों को और ताकत देने का काम किया है। अब देश-दुनिया की बहुसंख्यक आबादी के बेकार हो जाने का खतरा मंडरा रहा है। आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस ( एआई) न सिर्फ अरबों लोगो को बेरोजगार बना देगा बल्कि हमारी स्वतंत्रता, समानता, निजता को भी खत्म कर देगा। इस विनाशकारी विकास को हम मनुष्य के समाज , मानवीय संबंधों और खुद से अलगाव के रूप में भी देख सकते हैं। आज साहित्य के ऊपर यह जिम्मेदारी है कि मनुष्य और मनुष्यता खत्म कर रहे इन खतरों के बारे में लोगों को सचेत करे और उनके समाने इस विकास कि सही तस्वीर पेश करे।

शिक्षा अधिकार आंदोलन के नेता  डॉ. चतुरानन ओझा ने कहा कि ‘पूँजीवाद के दौर में लोकतांत्रिक मूल्यों जैसे तथ्यों पर चर्चा अपने आप में बहुत साहसिक कार्य है। पूँजीवाद, सामंतवाद के विरोध के रूप में बराबरी लेकर आया, लेकिन बाद में इसने संसाधनों पर कब्जा करना शुरू किया। यदि उत्पादन और उपभोग सामूहिक है तो उस पर स्वामित्व अकेला किसी व्यक्ति का नहीं होना चाहिए।’

राजनीतिक कार्यकर्ता ऋषिकेश मिश्र ने कहा कि ‘देश समाज में इस तरह की परिचर्चा बहुत ही सराहनीय है, लोकतांत्रिक मूल्यों पर जो खतरा है उनके समाधान भी खोजने जरूरी हैं।  हमारी ये जिम्मेदारी है कि समाधान भी खोजें।’

डॉ. विजयश्री मल्ल ने कहा कि आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस मानव के दिखाई देने वाले कार्यों को ही कॉपी कर सकता है, लेकिन उसके अंदर चेतना नहीं है। वो हमारी भावनाओं को कॉपी नहीं कर सकता है।’

मेरठ कॉलेज, मेरठ के सहायक प्रोफेसर डॉ. हितेश कुमार सिंह ने कहा कि  पूँजीवाद और रूढ़ियान का खात्मा करने के बजाय उसको मजबूत करने का ही कार्य किया है। भारतीय जनमानस अभी लोकतांत्रिक मूल्यों को स्थापित नहीं कर पाया है। सूचना के तंत्रों पर समान हित धारकों का कब्जा हो गया है, इस वजह से इस वक्त अभिभावक एवं अध्यापक के ऊपर संकट आ गया है। इसका उपाय ये है कि लोकतांत्रिक मूल्यों वाले लोगों को सम्मान दिया जाय।’

किसान नेता गिरीश नारायण शाही ने किसानों की दुर्दशा पर चर्चा की और कहा कि जिस तरह से किसानों कि जमीन छीनी जा रही है आने वाले दिनों में बड़ा संकट खड़ा होगा।

दीन दयाल उपाध्याय गोरखपुर विश्वविद्यालय के हिन्दी विभाग के पूर्व अध्यक्ष प्रोफेसर डॉ. अनिल राय ने कहा कि ‘पूँजीवादी व्यवस्था केवल अर्थतंत्र की व्यवस्था ही नहीं है बल्कि इसने हमारी मानवीय, सांस्कृतिक व्यवस्था को काफी क्षति पहुंचाई है। पूंजीवादी विकास के  परिणामों के बारे में साहित्यकारों ने पूर्व में ही चेताया था। प्रेमचंद ने ‘ महाजनी सभ्यता ‘ नामक लेख में इसके बारे में चित्र खींचा था। उन्होंने कहा कि साहित्य से बदलाव के बारे में उसकी शक्ति से बहुत अधिक मांग की जाती रही है। साहित्य हमको  संवेदना के स्तर पर अधिक प्रभावित करता है और इसका प्रभाव देर से लेकिन स्थायी रूप में पड़ता है। बदलाव के लिए हमें राजनीतिक रास्तों कि तरफ जरूर देखना चाहिए और सही राजनीति के साथ खड़े भी होना चाहिए।

प्रो अनिल कुमार राय ने डिजिटल समय में पुस्तकों के पढ़ने की घटती रुचि और आडियो-विजुअल कि तरफ बढ़ते रुझान से हमारी संवेदना और चेतना पर पड़ रहे प्रभाव की विस्तार से चर्चा की। उन्होंने ग्रामीण पुस्तकालय की स्थापना को बेहद महत्वपूर्ण बताते हुए कहा कि पुस्तकालय सांस्कृतिक स्पेस का निर्माण करते हैं जहां ज्ञान, संवाद का वातावरण बनता है।

डॉ. महेश सिंह ने कहा कि इतने सारे विचारों के संचार से इस गाँव में जो क्रांतिकारी बयार बहेगी वो निश्चय ही बदलाव लेकर आएगी।

अध्यक्षीय उद्बोधन देते हुए अचल पुलस्तेय ने कहा कि ‘इस लंबी चर्चा में इतने लंबे समय तक सभी श्रोताओं का बने रहना अपने आप में बहुत सुखद है। मनुष्यता बचाने की शुरुआत घर से करनी होगी। कौड़ा बतकही और ग्रामीण क्षेत्रों में हो रहे इन प्रयासों से ही मनुष्यता बचेगी।

सम्मान समारोह के कार्यक्रम में अभिषेक कुमार को उनके काव्य संग्रह ‘ बादल की अलगनी पर ‘ के लिए रामदेव सिंह ‘कलाधर’ साहित्य सम्मान’ देते हुए अंगवस्त्र, प्रशस्ती पत्र, स्मृति चिह्न, और 5100/- रुपये नकद देकर सम्मानित किया गया।

वरिष्ठ लोक-कलाकार बनवारी सिंह ‘आजाद’ को गोरखपुर मंडल सम्मान; ‘बोधिसत्व लोक कला सम्मान’ और जनपद देवरिया सम्मान; ‘प्रेमचंद श्रीवास्तव स्मृति सम्मान’ कवि योगेंद्र पाण्डेय को दिया गया।

परिचर्चा और सम्मान समारोह का संचालन  गोरखपुर के युवा कवि और विचारक डॉ. रवीन्द्र प्रताप सिंह ने किया।

कार्यक्रम के दूसरे और अंतिम सत्र में काव्यगोष्ठी हुई। सबसे पहले सम्मानित हुए कवियों बनवारी सिंह ‘आजाद’ , अभिषेक कुमार, योगेंद्र पाण्डेय ने अपनी रचनाएँ पढ़ीं। इसके बाद जयप्रकाश मल्ल, सुजान सिंह, डॉ. रवीन्द्र प्रताप सिंह, कौशलेंद्र मिश्र, प्रवीण त्रिपाठी, डॉ. विजयश्री मल्ल, डॉ. महेश सिंह आदि ने अपनी-अपनी कविताओं का पाठ किया। इस सत्र की अध्यक्षता इंद्र कुमार दीक्षित ने की और संचालन कवि सरोज पाण्डेय ने किया।

इस कार्यक्रम में ग्राम भलुआ और क्षेत्र के तमाम प्रबुद्ध जन, ग्रामीण, महिलाएं और युवा उपस्थित थे।

Related posts