बहराइच। अतिक्रमण हटाने के नाम पर वन विभाग ने वन अधिकार कानून 2006 का उल्लंघन करते हुए कई पीढ़ियों से वन भूमि पर बसे वन निवासी का ही घर गिरा दिया। वन निवासी को बेदखल करने के खिलाफ वन क्षेत्र के सभी 19 गांव के वन अधिकार आंदोलन से जुड़े सभी लोग आज दोपहर उपवास करेंगे।
अंकित कुमार , ककरहा थाना मोतीपुर जनपद बहराइच के एक परंपरागत वन निवासी हैं। उनके बाबा 1914- 15 में सूखे के समय जंगल क्षेत्र में वनटांगिया मजदूर के रूप में काम करने के लिए आए थे।लंबे समय तक उनके पूर्वजों ने वन टांगिया मजदूर के रुप में कार्य किया । बाद में जब टांगिया पद्धति से जंगल लगने का काम चल रहा था तो वन विभाग ने वन टांगिया मजदूरों को राशन पानी मुहैया कराने के लिए ककरहा में जमीन आवंटित कर दी। इसके बाद वह उनसे प्रतिवर्ष लगान भी लेते रहे। जिसकी रसीदे अंकित के पास मौजूद हैं।
अंकित कुमार के पिता सुरेश डायबिटीज से पीड़ित व्यक्ति थे। दोनों गुर्दे खराब हो चुकने के कारण पिछले साल उनका निधन हो गया। अंकित किसी तरह से चाय पानी की दुकान करके तथा वन भूमि पर निर्भर रह कर अपनी आजीविका चलाते हैं। अकेला घर होने के कारण वन विभाग के लोग उन्हें यदा-कदा हटाने की कोशिश करते रहे हैं किंतु 2005 में वन अधिकार कानून आने के बाद वनवासी के रूप में ककहरा को स्वीकृति मिली । इसमें ग्राम स्तरीय वन अधिकार समिति का गठन भी हो चुका है और दावा सत्यापन के लिए फार्म उपलब्ध कराया जा रहा है।

अंकित 29 अक्टूबर को एक शादी में बिहार गये हुए थे। घर में उनकी बूढी मां घर में अकेली थी। दोपहर में तो कतर्निया घाट वन्य जीव प्रभाग के अधिकारियों द्वारा उनके टीन के घर को बुलडोजर से ध्वस्त कर दिया।
वन अधिकार कानून में स्पष्ट लिखा है कि जब तक मान्यता और सत्यापन की प्रक्रिया पूरी नहीं हो जाती है तब तक किसी भी वन में निवास करने वाले वननिवासी परिवार को हटाया नहीं जा सकता है। भारतीय वन अधिनियम 1927 की धारा 61 (बी) में किसी भी अतिक्रमण को हटाने के पूर्व उसे सुनवाई का पूरा अवसर दिए जाने की बात कही गई है लेकिन वन विभाग ने दोनों कानूनों का उल्लंघन किया।