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बड़ी गंडक की कटान में 30 और घर आए, अपने हाथों से अपना घर गिरा रहे हैं ग्रामीण

तीन वर्षों में 200 घर बड़ी गंडक में समाए

कटान रोकने के लिए बनी योजना को सरकार ने मंजूरी ही नहीं दी

कटान विस्थापितों को न मुआवजा दिया न पुनर्वासित किया

टेंट में रह रहे हैं कटान विस्थापित

कुशीनगर जिले में बड़ी गंडक नदी की कटान से तमकुही तहसील के एपी तटबंध के पास कई गांव नदी में समाते जा रहे हैं. लोग अपने हाथों से अपने घरों को गिरा रहे हैं ताकि ईंट आदि बचा सकें. एक पखवारे में अहिरौलीदान के चार टोले के 30 घर नदी की कटान की जद में आ चुके हैं. इन गांवों में पहले से 200 से अधिक घर नदी में समा चुके हैं.

बड़ी गंडक नदी नारायणी नेपाल से होकर यूपी के महराजगंज और कुशीनगर जिले से गुजरते हुए बिहार जाकर सोनपुर में गंगा नदी में मिल जाती है.

हर वर्ष नदी की बाढ से तटवर्ती गांवों के लोग प्रभावित होते हैं। नदी की धारा में जल्दी-जल्दी नाटकीय बदलाव होता है जिसके कारण प्रति वर्ष खेत और लोगों के घर नदी में समा जाते हैं.

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इस बड़ी नदी की बाढ़ से लोगों की जिंदगी बचाने के लिए कई तटबंध बनाए गए हैं। इसी में से एक है एपी तटबंध यानि अहिरौलीदान-पिपराघाट तटबंध। यह तटबंध 1958 में बना था। यह तटबंध यूपी के कुशीनगर जिले के सेवरही कस्बे के पिपराघाट से शुरू होकर बिहार की सीमा अहिरौलीदान तक बना है जिसकी लम्बाई 17 किलोमीटर है। यह तटबंध ही लोगों की आवाजाही का सम्पर्क मार्ग भी है हालांकि वर्षो से सड़क की मरम्मत न होने से इसकी हालत बेहद खराब है.

यह तटबंध कुशीनगर जिले के तमकुहीराज तहसील के लाखों लोगों की जीवन रेखा है. यह तटबंध न सिर्फ उन्हें बाढ़ से बचाता है बल्कि आवागमन सुलभ कराता है.

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तटबंध के आस-पास अहिरौलीदान, बाघाचैर, नोनिया पट्टी, फरसाछापर, बाघ खास, विरवट कोन्हवलिया, जवही दयाल, बघवा जगदीश, परसा खिरसिया, जंगली पट्टी, पिपराघाट, दोमाठ, मठिया श्रीराम, वेदूपार, देड़ियारी, सिसवा दीगर, सिसवा अव्वल, खैरटिया, मुहेद छापर आदि गांव है.
इन गांवों के लोगों की खेती नदी के फ्लड प्लेन में है. यहां से उन्हें अपने मवेशियों के लिए चारा मिलता है. नदी से उन्हें दर्जनों प्रकार की मछली मिलती है जो उनकी आजीविका का आधार है.

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अहिरौलीदान के एक दर्जन टोले-छितु टोला, बैरिया, खरखूरा, मदरही, नोनिया पट्टी आदि तटबंध के भीतर हैं. ये गांव जब बसे थे तो नदी उनसे काफी दूर थी और बाढ़ के वक्त ही उनके नजदीक नदी का पानी पहुंचता था। वर्ष 2012 से नदी का रूख तटबंध की तरफ मुड़ता चला गया और अब नदी अहिरौलीदान गांव के एक दर्जन टोलों के काफी करीब आ गई है। यही गांव नदी की काटन से प्रभावित हैं. एक पखवारे से नदी अहिरौलीदान गांव के 3-4 टोलों में कटान कर रही है. कटान से सबसे अधिक प्रभावित तटबंध के किलोमीटर 13 से 14 किलोमीटर तक का क्षेत्र है.

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 इन गांवों में 14-15 लोगों ने अपने घर तोड़ दिए हैं. अब ये लोग शरण लेने के लिए स्थान तलाश कर रहे हैं लेकिन प्रशासन इनकी मदद के लिए आगे नहीं आया है.

अहिरौलीदान के कचहरी टोला निवासी हरिकिशुन सिंह, अशोक सिंह, गया प्रसाद सिंह, रामज्ञा सिंह, पारस सिंह, खरखुटा टोला के ब्रह्मा चौहान, नान्हू चौहान आदि का घर नदी की कटान के दायरे में आ गया है. यह सभी लोग अपना घर अपने हाथों से तोड़ रहे हैं.

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ग्रामीणों द्वारा कटान की सूचना जिलाधिकारी को दी गई. एक सप्ताह पहले एडीएम और एएसपी निरीक्षणके लिए आये थे लेकिन कटान को रोकने के लिए प्रशासन या सम्बन्धित विभाग द्वारा कोई प्रयास नहीं किया गया है.

वर्ष 2017 में नदी ने काफी कटान किया था और दर्जनों घरों अपने में समा लिया. खरखूंटा टोला के मैनेजर चौहान का पक्का घर नदी की कटान से दिसम्बर माह में पूरी तरह से कट गया. उनका पांच एकड़ खेत भी नदी में समा गया. मैनेजर अब प्लास्टिक के दो छोटे-छोटे टेंट में परिवार सहित रह रहे हैं. यह टेंट भी  उन्होंने दूसरे के जमीन में लगाया है. मैनेजर कहते हैं कि उन्होंने घर को नदी में कटता देखा तो मजदूर लगाकर घर को तोड़वा दिया ताकि ईंट बच जाए. उन्हें मजदूरी में ही 30 हजार रूपए खर्च करने पड़े. अपने जमींदोज घर पर खड़े  मैनेजर का गला यह सब बताते-बताते रूंध जाता है.

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इसी टोले के विनोद, बलिस्टर चौहान , बाबूलाल चौहान, धर्मेन्द्र चौहान, जितेन्द्र, चन्द्रेश्वर का पक्का घर नदी में कट गया. इस टोले के आठ लोगों का घर कट चुका है और नदी अभी भी कटान कर रही है.

नोनिया पट्टी निवासी पौहारी प्रसाद का घर जून माह में नदी में समा गया। वह अपने तीन भाइयों और मां पाना देवी के साथ दूसरों के घरों में रह रहा है.

पाना देवी ने बताया की उनकी दो बहुएं मायके चली गईं हैं क्योंकि यहां रहने को जगह नहीं है। अब उसके पास न घर है खेत. इस गांव के अनवत राम, रबड़, डोमा सिंह सहित डेढ़ दर्जन लोगों का घर नदी की कटान का शिकार हुआ है.

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विरवट कोन्हवलिया के पास नदी ने पिछले वर्ष तटबंध तक को काट दिया। यहं का दुर्गा मंदिर नदी में कटकर समा गया। अब तटबंध के इस पार नया मंदिर बना है.

अहिरौलीदान निवासी अरविन्द सिंह बताते हैं कि पिछले तीन वर्षों में 200 से अधिक घर नदी के कटान में विलीन हो गए. सैकड़ों एकड़ खेत भी नदी में समा गए. तटबंध से 300 मीटर दूर तक के घर कट गए. वह कहते हैं कि नदी की एक धारा 2012 से तटबंध की तरफ मुड़ी और अहिरौलीदान के टोले एक-एक कर कटान की जद में आने लगे.

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सबसे पहले बैरिया टोला और डा. ध्रुवनारायण का टोला कटान के दायरे में आया. इसके बाद कटान रूका लेकिन फिर 2015 से कटान शुरू हो गई. दलित बहुल कंचन टोला कटान में पूरी तरह से विलीन हो गया. बेघर हुए लोग तटबंध पर रह रहे हैं. वर्ष 2017 में अक्टूबर माह से कटान और तेज हो गई. श्री सिंह बताते हैं कि चार राजस्व गांव-हनुमानगंज, शिवरतन राय टोला, नरायनपुर और परसौनी जनूबी टोला के सभी खेत नदी में समा गए हैं.

सिंचाई विभाग के इंजीनियर कह रहे हैं कि कटान को रोकने के लिए इस्टीमेट बन गया है लेकिन सरकार से धन  नहीं मिला है. इसलिए कोई काम नहीं हो रहा है.

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अरविन्द सिंह ने बताया कि अभी तक सिर्फ बाघाचौर  के 18 कटान पीड़ितों को भूमि देकर बसाया गया है. शेष 185 लोगों को मदद के नाम पर बाढ़ के दिनों में चिउरा के अलावा कुछ नहीं मिला.

क्षेत्रीय विधायक एवं कांग्रेस विधानमंडल दल के नेता अजय कुमार लल्लू ने गोरखपुर न्यूज़ लाइन को बताया कि बड़ी गंडक नदी की कटान से अहिरौलीदान के 70, पिपराघाट के 13 और रामपुर बरहन के 74 परिवार बेघर हो गए हैं. कटान विस्थापितों को मुआवजा देने और उन्हें पुनर्वासित करने की मांग को लेकर 21 जून को तमकुही तहसील पर धरना दिया गया था. इसके अलावा सिंचाई मंत्री, बाढ़ मंत्री, प्रमुख सचिव सिंचाई और कमिश्नर गोरखपुर को ज्ञापन देकर कटान रोकने के लिए बनी योजना को स्वीकृत कर काम शुरू कराने की मांग की गई थी लेकिन न योजना की स्वीकृति दी गई न काम शुरू कराया गया.

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