सैयद फरहान अहमद/अशफाक अहमद
गोरखपुर। तालीम हासिल करना उनका हक है लेकिन वह महरूम हैं। तालीम हासिल करने का कानून है मगर वह नवाकिफ हैं। तालीम हासिल करने का न हक मिला न ही कानून और न ही जागरुकता मुहिम उन तक पहुंची । लिहाजा वह कूड़ा बीनने लगे और आज भी कूड़ा बीन रहे है। सरकार को क्या गरज जो उनके मुस्तकबिल के बारे में सोचे। उनकी जिंदगी कूड़े में शुरु होती है और कूड़े में खत्म।
जी हां ! हम शहर के एक ऐसे तबके के बारे में बात कर रहे है जिनकी आबादी शहर में 8-10 हजार के करीब है। वह शहर में किराये की अस्थायी झोपड़ियों में खानाबदोश जिंदगी जीते है। काम अलसुबह कूड़ा बीनना। जिसमें हिन्दू भी है मुस्लिम भी। लोकल के भी है बाहर के भी। सुबह के वक्त यह कूड़ा बीनने वाले आपको आसानी से नजर आ जायेंगे। इनकी नजर बहुत पारखी है। यह वहीं कूड़ा बीनते है जो काम में लाया जा सकता हो। इनका यह हुनर ही इन्हें दूसरों से जुदा करता है। शहर में कई जगहों पर इनकी बस्तियां आबाद है। लेकिन न तो ये पढ़े लिखे है और न ही इनके बच्चे।
इनके बच्चों के मुस्तकबिल को संवारने का बीड़ा उठाया है शहर के चंद लोगों ने और कूड़े बीनने वालों की बस्तियों में कायम की है ‘लिटरेसी लैब’ (साक्षरता की प्रयोगशाला)। यह लिटरेसी लैब मामूली किराए पर बस्तियों में मौजूद झोपड़ियों में चलती है। जहां हिन्दू-मुस्लिम बच्चे मिलकर पढ़ते है हिंदी, उर्दू और अंग्रेजी। यह लैब इनकी जिंदगी में आशा की किरन बन कर आयी है। पहली लिटरेसी लैब रसूलपुर के पीछे जामियानगर के पास भौरय्या में करीब डेढ़ दो माह पहले कायम की गयी जहां करीब 26 बच्चे तालीम हासिल कर रहे है।
दूसरी लैब राजघाट स्थित शमशान घाट से कुछ दूर पर कायम की गई। जहां 50 से ज्यादा बच्चे जेरे तालीम है। तीसरी लैब ट्रांसपोर्टनगर में कायम की गयी। जिसमें 50 से ज्यादा बच्चे तालीम हासिल कर रहे है।
इन बच्चों की दो घंटे की क्लास दोपहर व शाम में चलती है। यह बच्चे अपने परिवार के साथ दिनभर कूड़ा बीनते है और दोपहर के बाद तालीम हासिल करते है। खैर। प्रत्येक लैब पर बाकायदा दो टीचर रखे गए है। हाफिज ओबैदुर्रहमान, वारिस, आसिफ मलिक, फैसल, मशर्फुलहक बच्चों को न केवल तालीम दे रहे है बल्कि जिंदगी जीने का करीना भी सीखाते है। इन शिक्षकों को माहवार मेहनताना भी दिया जाता है। बच्चों को तालीम किताब, कापी और कलम मुफ्त दी जाती है। यह मुहीम धीरे-धीरे बढ़ रही है। आने वाले दिनों में इसके बेहतरीन नतीजे देखने को मिलेंगे।
इस लैब को अमलीजामा पहनाने वाले मुफ्ती मतीउर्रहमान ने बताया कि कूड़ा बीनने वालों व उनके बच्चों को देखकर इनके दिल में तड़प पैदा हुई। पढ़ने, खेलने की उम्र में नाजुक हाथ कूड़ा बीनने पर मजबूर है। इन्हें कलम की ताकत से वाकिफ कराकर इन्हें मजबूत बनाया जाए। फिर उन्होंने छह सात माह पहले कूड़ा बीनने वाली बस्तियों का दौरा शुरु किया। लोगों को तालीम का महत्व समझाया। जिसका बेहतरीन नतीजा सामने आया।
मुफ्ती मतीउर्रहमान का साथ देने के लिए तनवीर अरशद, हाजी जमाल अहमद, मुनीर अहमद, नेहाल अहमद, चौधरी मोहीउद्दीन, मौलाना सलाउद्दीन कासमी तैयार हो गए। सबसे पहले बस्ती वालों को तैयार किया गया। बस्ती के अंदर किराये पर झोपड़ी कायम की गयी। इसके बाद शुरू हो गई झोपड़ी में ‘लिटरेसी लैब’ की पाठशाला।। टीचरों का मेहनताना, कापी किताब व झोपड़ी का किराया मुफ्ती मतीउर्रहमान व उनके साथी मिलकर उठाते है।
मतीउर्हमान अगले दस साल के अंदर शहर की दस हजार खानाबदोश कूड़ा बीनने वाली आबादी के बीच में यह लैब खोलने का इरादा रखते है। उन्होंने बताया कि बच्चों को साक्षार बनाने के साथ-साथ आगे की शिक्षा दिलाने के लिए भरसक प्रयास किया जाएगा। स्कूल कालेजों से बात की जायेगी। उन्होंने कहा कि बड़ी आबादी के हाथ में कागज और कलम नहीं है तो हम यह चाहते है कि कागज और कलम समाज के हर तबके तक पहुंचे ताकि कमजोर से कमजोर तबका शिक्षित हो और बेहतर मुस्तकबिल बना सके।
मुफ्ती मतीउर्रहमान के जेरे निगरानी जिले में दीनीयात की 65 शाखाएं चल रही है। जिसमें करीब 4 हजार बच्चे दीनी तालीम हासिल कर रहे है। मुफ्ती मतीउरर्हमान उनके साथियों का प्रयास काबिले तारीफ है। बच्चों के अंदर काफी तब्दीलियां नजर आयी है। बच्चों के अंदर तालीम के प्रति जज्बा बढ़ा है। शहर के और लोगों को भी इस मुहीम से जुड़ना चाहिए ताकि इन बच्चों को बचपन ज़ाया न होने पाए और वह पढ़ लिख कर बेहतरीन शहरी बने। मुल्क की तरक्की में नुमाया किरदार अदा कर सकें।