रहमत पिजन्स फ्लाइंग क्लब मना रहा सिल्वर जुबली वर्ष
गोरखपुर। अापने बहुत से मुकाबले देखे होंगे। लेकिन जिस मुकाबले से हम आपका तारूफ करवा रहे है, वह बेहद दिलचस्प वह अनोखा है। यकीन जानिए इतना रोमांच अपने किसी और खेल में शायद ही देखा होगा।
जी हां ! शहर में कबूतर उड़ान का जबरदस्त मुकाबला होता है जिसकी तैयारी पूरे साल चलती है। जिस तरह क्रिकेट में ग्यारह खिलाड़ियों की टीम होती है। इसमें भी ग्यारह की टीम होती है। लेकिन खिलाड़ी होते है कबूतर। हर मैच की निगरानी के लिए अम्पायर होते है। जिनके जेरे निगरानी यह मुकाबला चलता है, और फैसला होता है। इस खेल के बाकायदा नियम, कायदा-कानून होता है। गर्मी के मौसम में मई में व सर्दी में नवम्बर माह को मुकाबला होता है।
इस वक्त इस मुकाबले की तैयारी जोर-शोर से चल रही है। मुकाबला में फतह हासिल करने वाले प्रतिभागियों को नगद पुरस्कार से नवाजा जाता है। कबूतर उड़ाने वाले 35-40 लोग इस मुकाबले में हिस्सा लेते है। अबकी बार का मुकाबला 10 मई व 13 मई को देखने को मिलेगा।
यह मुकाबला रहमत पिजन्स क्लब करवा रहा है। यह फ्लाइंग क्लब अपना सिल्वर जुबली वर्ष मना रहा है। 10 मई के मुकाबले में 20 व 13 मई के मुकाबले में 13 लोग हिस्सा लेंगे। 15 मई को नगद पुरस्कार दिया जायेगा।
मुकाबले के लिए बाकायदा मीटिंग होती है। मुकाबले में हिस्सा लेने के लिए 1000-2000 इंट्री फीस देनी पड़ती है।
शहर में इस वक्त तीन कबूतर फ्लाइंग क्लब है – रहमत पिजन्स फ्लाइंग क्लब, गोरखपुर पिजन्स फ्लाइंग क्लब, सिराज खान गोरखपुर फ्लाइंग क्लब।
शहर के मशहूर पुराने कबूतर उड़ाने वाली शख्सियत
कबूतर उड़ाने वाली पुराने शख्सियतों में हाजी शाबान कुरैशी, मोहन बाबू, पुरूषोत्तम दास रईस शमिल है। पुरूषोत्तम दास रईस ने 1962 में पिजन्स फ्लाइंग क्लब खोला था। इनकी कबूतर उड़ान लाजवाब थी। हकीम बदरूद्दीन, हकीम वसी अहमद, नवाब अली असगर भी मशहूर नाम थे।
शहर के वर्तमान कबूतर उड़ाने वाले
इस समय शहर में 40-50 कबूतर उड़ाने वाले लोग है। जिसमें आफताब अंसारी गाजी रौजा, हसन जमाल उर्फ बबुआ कवलदह खूनीपुर, सिराज खान रायगंज, विकास कुमार नरसिंहपुर, अनिल जायसवाल बसंतपुर नरकटिया, अशफाक अहमद हुमायूंपुर, रामजी भाई खूनीपुर, राजू समानी खूनीपुर, शकिब उर्फ गुल्लू बनकटीचक।
मुकाबले वाले कबूतर की वैराईटी
मुकाबला केवल नर कबूतरों के बीच होता है। देशी कबूतर इस खेल में हिस्सा लेते है। इन कबूतरों को मादा से अलग रखा जाता है। मादा केवल अंडा-बच्चे के लिए पाली जाती है। मुकाबले वाले कबूतरों को अलग दरबे में रखा जाता है। इनका प्रयोग केवल मुकाबले के लिए ही किया जाता है। मुकाबले के लिए खास नस्ल के कबूतर के बीच ही मुकाबला होता है। इन कबूतरों का अलग-अलग नाम रखा जाता है। आफताब अंसारी ने अपने कूबतरों का नाम टाइगर, शेरु, डुगडु, अबाबील, शहाबुद्दीन आदि रखा है। इसी तरह अन्य लोग भी नाम रखते है। कबूतर भी अपना नाम पहचान जाते है
मुकाबले की तैयारी व रियाजवैसे तो इसके लिए तैयारी साल भर पहले शुरू हो जाती है। लेकिन मुकाबला शुरु होने के तीन माह पहले जबरदस्त तैयारी होती है। कबूतर उड़ाने वाले सामान्यत: 90-100 कबूतर तैयार करते है मुकाबले के लिए। इन्हीं के बीच वह 11 बेहतरीन कबूतर जिनकी रफ्तार उम्दा होती उन्हें चयनित किया जाता है। अलसुबह कबूतर उड़ाने वाले लोग इन कबूतरों की रियाज करवाते है। और हर रोज उनकी रफ्तार को नोट किया
जाता है। इन में से बेहतरीन कबूतर का चुनाव भी किया जाता है। कैम्प सेलेक्शन होता है। आफताब अंसारी ने बताया कि कबूतर उड़ाने वालों के
पास सौ तो किसी के पास दौ सौ कबूतर होते है। इनमें से बेहतरीन 11 कबूतरों को चुनाव करना पड़ता है। अगर लाख रुपया भी दे दो तो
कबूतर उड़ाने वाले अपना कबूतर न दे। जी हां आप को अचम्भा होगा कि जो कबूतर मुकाबले के लिए तैयार करते है। अगर कोई उसको खरीदना
कबूतरों की खुराक व देखभाल
जिस तरह इनका मुकाबला दिलचस्प होता है। उसी तरह इनकी खुराक, रखरखाव व देखभाल भी बेहद उम्दा तरीके से की जाती है। इन्हें खाने में चना, गेहूं, सरसों सहित तमाम पौष्टिक आहार दिया जाता है। इसके अलावा मुकाबले वाले कबूतरों को प्रति कबूतर दस बादाम खिलाया जाता है। ताकि इनकी क्षमता बढ़ी रहे। इन्हें एक खास किस्म का पेय पदार्थ भी दिया जाता है। जो गर्मी व सर्दी में अलग-अलग होता है।
कबूतर उड़ाने वाले आफताब अंसारी ने बताया कि इन्हें स्पेशल जड़ी बूटिंया पिलाई जाती है। जो हर कबूतर उड़ाने वाला गोपनीय रखता है। संवाददाता के कहने पर उन्होंने बताया कि इस फार्मूले के तहत नीलोफर, कासनी, सौंफ, धनिया, पुदीना, बेहाना की पोटली बनाकर उसका अर्क निकालकर कबूतरों को दिया जाता है। जिससे यह आसमानों में घंटों उड़ सकते है। वहीं इन्हें सफेद मिर्च व गुड़ भी दिया जाता है। सर्दी के मौसम में गर्म चीज खिलायी जाती है। जाफरान, घी में मिलाकर खिलाया जाता है। काली मिर्च के दाने दिए जाते है। कबूतरों पर चालीस से पचास हजार रुपया रखरखाव व देखभाल पर खर्च किया जाता है।
रोचक मुकाबला
सारी तैयारी होने के बाद मुकाबले का दिन निश्चित किया जाता है। सभी को अपने 11 कबूतर उड़ाने होते है। अम्पायर प्रतिभागियों के घर पर आ जाता हैं। कबूतरों को आसमान में उड़ा दिया जाता है। इनकी उड़ान इतनी ऊंची होती है कि निगाहों से ओझल हो जाते है। यह एक दायरे में उड़ आसमान में समां जाते है। और कई घंटे तक उड़ते रहते है फिर उसी जगह से वापस नीचे आते है। फिर इन
कबूतरों में से सात कबूतरों का चुनाव किया जाता है। फिर इनके बीच मुकाबला होता है। देर तक उड़ने वाले कबूतर को विजेता घोषित किया जाता है। इसके अलावा पहले तीन स्थान आने वालों को भी नगद पुरस्कार से नवाजा जाता है। इसके अलावा सांत्वना पुरस्कार भी दिया जाता है।