गोरखपुर/ देवरिया. मां विंध्यवासिनी महिला प्रशिक्षण एवं समाज सेवा संस्थान द्वारा संचालित देवरिया के बाल गृह (बालिका) की मान्यता खत्म हो जाने के बावजूद उसको एक वर्ष से ज्यादा समय तक चलते रहने देने के लिए देवरिया जिला प्रशासन और पुलिस प्रशासन दोनों जिम्मेदार हैं. रोक के बावजूद इस संस्था की बालिका गृह को पुलिस द्वारा 225 बालिकाओं और स्वाधार गृह को 210 महिलाओं को सुपुर्दगी दी गई.
यही नहीं बालिका गृह के निरीक्षण, संचालन व्यवस्था की नियमित जांच का हर स्तर पर अनदेखी की गई. अब जब बालिका गृह और स्वाधार गृह के संचालन में अनियमितता के मामले सामने आ रहे हैं तो सभी एक दूसरे पर जिम्मेदारी थोप रहे हैं.
मां विंध्यवासिनी महिला प्रशिक्षण एवं समाज संवा संस्थान द्वारा देवरिया में बाल गृह (बालक), बाल गृह (बालिका), स्वाधार गृह, शिशु गृह के अलावा गोरखपुर और देवरिया में वृद्धाश्रम संचालित किया जा रहा था. सचल पालना गृह योजना योजना की सीबीआई जांच में अनयिमिता मिलने के बाद प्रदेश सरकार द्वारा प्रदेश की कई संस्थााओं को ब्लैक लिस्ट कर दिया गया. इसमें देवरिया का गिरिजा त्रिपाठी का मां विंध्यवासिनी महिला प्रशिक्षण एवं समाज सेवा संस्थान भी शामिल था. ब्लैक लिस्ट करने के बाद इन संस्थाओं द्वारा संचालित बाल गृह को बंद कराने का आदेश दिया गया. देवरिया की बाल गृह बालिका की मान्यता 22 जून 2017 को समाप्त कर दी गई. इसके बाद इसे बंद करने का निदेश महिला कल्याण विभाग द्वारा दिया गया.
यह निर्देश देवरिया जिला प्रशासन को भी दिया गया। इसके बावजूद पांच अगस्त 2018 की रात पुलिस द्वारा छापा डालने के बावजूद देवरिया का बाल गृह संचालित होता रहा और खुद पुलिस यहां पर लड़कियों को लिखा-पढ़ी में सुपुर्द करती रही।
यह कैसे होता रहा, इसका किसी के पास कोई स्पष्ट जवाब नहीं है। जिले से हटाए गए डीएम सुजीत कुमार ने कहा कि उन्होंने शासन से निर्देश मिलने के बाद 19 सितम्बर 2017 बालिका गृह, शिशु बाल गृह और विशेष दत्तक ग्रहण इकाई को बंद करने का आदेश दिया था लेकिन इस पर अमल नहीं हुआ। अब सवाल यह उठाता है कि यदि उनके आदेश पर अमल नहीं हुआ तो उन्होंने क्या किया ?
पुलिस कप्तान रोहन पी कनय का कहना है कि उन्होंने सभी थानेदारों को निर्देश दिया था कि लड़कियों और महिलाओं को मान्यता प्राप्त संरक्षण गृहों में ही भेजा जाय. इसके बावजूद पुलिस गिरजा त्रिपाठी के बालिका गृह और स्वाधार गृह को लिखा-पढ़ी में लड़कियों और महिलाओं की सुपुर्दगी देती रही.
खुद गिरिजा त्रिपाठी ने 24 जुलाई 2018 प्रेस कान्फ्रेंस कर दावा किया था कि तीन वर्ष मे उनकी संस्था द्वारा संचालित स्वाधार गृह और बालिका गृह में 709 बालिकाओं और महिलाओं को सुर्पुद किया गया.
उन्होंने बताया कि पुलिस ने वर्ष 2018 में बालिका गृह को 60 बालिकाओं और स्वाधार गृह को 55 युवतियों को सुर्पुद किया। इसी तरह स्वाधार गृह में वर्ष 2016 में 127 और 2017 में 155 महिलाओं तथा बालिका गृह में 2016 में 135 और 2017 में 165 बालिकाओं को पुलिस ने सौंपा. इसके अलावा अदालत के आदेश से बस्ती से दो बालिकाएं उनके बालिका गृह में लायी गई हैं. उन्होंने यह भी दावा किया था कि इस समय पुलिस द्वारा सौंपी गईं 10 बालिकाएं उनकी बालिका गृह में रह रही हैं.
यह घोर आश्चर्य का विषय है कि डीएम के लिखित आदेश और पुलिस कप्तान के आदेश के बावजूद पुलिस गिरिजा त्रिपाठी के अमान्य स्वाधार गृह और बालिका गृह में बालिकाओं और महिलाओं की सुर्पुदगी देती रही और दोनों अधिकारियों ने इस पर रोक लगाने की कोई कोशिश नहीं की.
हर जिले में बाल कल्याण समिति (सीडब्ल्यूसी) होती है। यह बच्चों के बारे में निर्णय लेने की अधिकृत एजेंसी है। देवरिया के सीडब्ल्यूसी के अध्यक्ष श्रीकांत यादव ने बयान दिया है कि पुलिस उनके समक्ष बच्चों या लड़कियों को नहीं प्रस्तुत करती थी और मनमाने तरीके से सीधे बाल गृह ले जाती थी जबकि नियम यही है कि सीडब्ल्यूसी ही निर्णय करती है कि बालक या बालिका को किस होम में ले जाना है. अब सवाल यह उठता है कि यदि पुलिस उनके सामने बच्चों या लड़कियों को नहीं प्रस्तुत करती थी तो उन्होंने इस पर क्या किया ? उन्होंने जिला प्रशासन, पुलिस प्रशासन या शासन को इससे अवगत कराया ?
यहीं नहीं बाल गृहों, स्वाधार गृहों का नियमित निरीक्षण करने का नियम है. जिला प्रोवेशन अधिकारी, जिला बाल संरक्षण अधिकारी और सीडल्यूसी का हर महीने बाल गृह, बालिका गृह और स्वाधार गृह का निरीक्षण कर अपनी रिपोर्ट देनी होती है. इन अधिकारियों और एजेंसियों ने गिरिजा त्रिपाठी के बालिका गृह का कब-कब निरीक्षण किया और क्या-क्या रिपोर्ट दिया, इस बारे में अब तक कोई जानकारी सार्वजनिक नहीं की गई है.
एक वर्ष से अधिक समय से गिरिजा त्रिपाठी के बालिका गृह को बंद करने का आदेश होने के बावजूद ये सभी अधिकारी और एजेंसिया निष्क्रिय बने रहे। अब वे एक दुसरे पर दोषारोपण कर रहे हैं.