तंजीम उलेमा-ए-अहले सुन्नत की बैठक में की गई अपील
फख्र-ए-शहाफत अवार्ड से नवाजे गये सैयद फरहान अहमद
गोरखपुर। ‘जुलूस-ए-ईद मिलादुन्नबी और उसके शरई तकाजे व आदाब’ विषय पर तंजीम उलेमा-ए-अहले सुन्नत की एक अहम बैठक रविवार को नार्मल स्थित दरगाह हजरत मुबारक खां शहीद मस्जिद में बाद नमाज जोहर हुई।
बैठक में उलेमा ने आवाम से अपील की है कि 21 नवंबर को निकलने वाले ‘जुलूस-ए-ईद मिलादुन्नबी’ में शहर की तमाम कमेटियां डीजे, बैंड बाजे या ढ़ोल बिल्कुल न बजवायें और न ही आतिशबाजी की जाये। जुलूस में म्यूजिक वाली नात या कव्वाली भी न बजायी जायें। जुलूस में हुड़दंग बिल्कुल भी न हो, बल्कि शांति व अमन के साथ जुलूस निकाला जाये और प्रशासन का सहयोग किया जाये। जुलूस में दीनी पोस्टर या किसी मजार जैसे गुंबदे खजरा की बेहुरमती न हो इस बात का पूरा ख्याल रखा जायें। जुलूस की समाप्ति पर होर्डिंग्स व झंडे सुरक्षित स्थानों पर रख दिए जायें। जुलूस में लोग इस्लामी लिबास में सादगी के साथ शिरकत करें।
बैठक की अध्यक्षता करते हुए मुफ्ती अख्तर हुसैन (मुफ्ती-ए-गोरखपुर) ने कहा कि कुरआन-ए-पाक में है कि मुसलमान ईद मिलादुन्नबी की खुशियां अदब व एहतराम के साथ मनाएं। इबादत करें, कुरआन-ए-पाक पढ़े, दरूदो-सलाम का नजराना पेश करें। गरीबों व यतीमों को खाना खिलायें, मरीजों का हालचाल पूछें। पड़ोसियों का ख्याल रखें। डीजे, बैंड बाजा व ढ़ोल न बजाएं। दीनी पोस्टर की बेहुमरती न करें। आतिशबाजी न करें और न ही म्यूजिक वाली नात व कव्वाली जुलूस में बजाएं।
इस मौके पर तंजीम की जानिब से पत्रकारिता में अहम योगदान देने पर उलेमा ने सैयद फरहान अहमद को ‘फख्र-ए-शहाफत अवार्ड’ से नवाजा गया। इस दौरान कारी शराफत हुसैन कादरी, हाफिज नजरे आलम कादरी, मोहम्मद आजम, कारी नूरुलऐन, हाफिज नजरे आलम कादरी, इकरार अहमद, कारी अबू हुजैफा, सफीक अहमद, हाजी मोहम्मद कलीम, अब्दुल्लाह, फिरोज अहमद निजामी, हाजी कमरुद्दीन, मो. तारिक, अब्दुल जदीद आदि मौजूद रहे।
हुसैनाबाद में ‘जश्न-ए-ईद मिलादुन्नबी’ जलसा
हुसैनाबाद गोरखनाथ बैतुल नूर मस्जिद के निकट रविवार को ‘जश्न-ए-ईद मिलादुन्नबी’ जलसा हुआ। मुख्य अतिथि बनारस के मौलाना इरशाद रब्बानी ने कहा कि पैगंबर-ए-इस्लाम (हजरत मोहम्मद सल्लल्लाहो अलैहि वसल्लम) ने इंसानों को जीने का सलीका बताया। लोगों को सही रास्तें पर चलने की तालीम दी।
चम्पारण बिहार के मौलाना जावेद अहमद ने कहा कि ‘मिलाद’ अरबी लफ़्ज है जिसका अर्थ विलादत या पैदाइश होता है। पैगंबर-ए-इस्लाम की सीरत, सूरत, किरदार, व्यवहार, बातचीत व अन्य क्रियाकलाप, मेराज, मोजजों का बयान ही मिलाद-ए-पाक में बयान होता है। पैगंबर-ए-इस्लाम की विलादत (जन्मदिवस) की ख़ुशी मनाना ये सिर्फ इंसान की ही खासियत नहीं है बल्कि तमाम कायनात उनकी विलादत की खुशी मनाती है बल्कि खुद रब्बे क़ायनात मेरे मुस्तफा जाने रहमत का मिलाद पढ़ता है। पूरा क़ुरआन ही मेरे आका की शान से भरा हुआ है।
जलसे की शुरुआत कुरआन-ए-पाक की तिलावत से कारी अमीरुद्दीन ने की। नात शरीफ आदिल रजा मुरादाबादी व शमीमुल कादरी ने पेश की। संचालन मुजफ्फर के मौलाना अरमान अहमद ने किया। अंत में सलातो-सलाम पढ़कर खैर व बरकत की दुआ मांगी गयी। इस मौके पर अफरोज अालम, मोहम्मद हुसैन, मुनाजिर हसन, इमाम हुसैन, इमरान, इरफान, नेसार अहमद, जफर सिद्दीकी, जहीर अहमद, समीउल्लाह सहित तमाम लोग मौजूद रहे।