साहित्य अकादेमी और गोरखपुर विश्वविद्यालय के हिन्दी विभाग का है आयोजन
उद्घाटन और समापन समारोह के अलावा संगोष्ठी में पांच सत्र होंगे
गोरखपुर। साहित्य अकादेमी, नई दिल्ली और दीदउ गोरखपुर विश्वविद्यालय के हिन्दी विभाग द्वारा 4-5 मार्च को विश्वविद्यालय के संवाद भवन में ‘ भक्ति साहित्य एवं भारतीय समाज ’ विषय राष्ट्रीय संगोष्ठी आयोजित की जा रही है। संगोष्ठी में नई दिल्ली, लखनउ, कानपुर, वाराणसी, मुम्बई आदि स्थानों से हिन्दी साहित्य के विद्वान शिरकत करेंगे।
इस संगोष्ठी में उद्घाटन और समापन समारोह के अलावा पांच सत्र रखे गए है। चार मार्च को सुबह 10 बजे उद्घाटन समारोह के बाद पहला सत्र भक्ति साहित्य की पृष्ठिभूमि और दूसरा सत्र ‘ भक्ति साहित्य: लोक एवं शास्त्र ’ विषय पर होगा। दूसरे दिन 5 मार्च को सुबह 9 बजे तीसरे सत्र ‘ भक्ति साहित्य: शोध की नयी दिशाएं ’ में शोध पत्र पढ़े जाएंगे। इसके बाद चैथा सत्र भक्ति साहित्य: वैकल्पिक समाज का स्वप्न ’ और पांचवा सत्र ‘ भक्ति साहित्य: समकालीन पाठ ’ पर होगा।
संगोष्ठी के संयोजक गोरखपुर विश्वविद्यालय के हिन्दी विभाग के पूर्व अध्यक्ष प्रो चित्तरंजन मिश्र और आयोजन सचिव प्रो विमलेश मिश्र हैं। हिन्दी विभाग के अध्यक्ष प्रो अनिल राय, पूर्व अध्यक्ष प्रो चित्तरंजन मिश्र और आयोजन सचिव प्रो विमलेश मिश्र ने बताया कि संगोष्ठी में वाराणसी से प्रो अवधेश प्रधान व प्रो मनोज कुमार सिंह, नई दिल्ली से डाॅ. बजरंग बिहारी तिवारी, डा. मनोज कुमार सिंह, कानपुर से डा. पंकज चतुर्वेदी, लखनउ से प्रो कालीचरन स्नेही, प्रो मंजू त्रिपाठी, प्रो सदानन्द प्रसाद गुप्त, मुजफफरपुर से प्रो रेवती रमण, प्रो प्रमोद कुमार सिंह, शिलांग से प्रो दिनेश कुमार चैबे, मुम्बई से प्रो रतन कुमार पांडेय के अलावा गोरखपुर से प्रो रामदेव शुक्ल, प्रो जर्नादन, प्रो कृष्ण चन्द्र लाल, प्रो रामदरश राय, प्रो कमलेश कुमार गुप्त, प्रो दीपक प्रकाश त्यागी, डा. प्रेमव्रत तिवारी, डा. नागेश राम त्रिपाठी भाग लेंगे। साहित्य अकादेमी के सम्पादक अनुपम तिवारी भी संगोष्ठी में शिरकत करेंगे।
आयोजन समिति ने बताया कि संगोष्ठी में भक्ति आन्दोलन और हिन्दी साहित्य, भक्ति आन्दोलन की सामाजिक, सांस्कृतिक पृष्ठिभूमि, भक्ति साहित्य: प्रतिरोध और विकल्प, भक्ति साहित्य और आधुनिक जीवन संदर्भ, भक्ति साहित्य और सामासिक संस्कृति, भक्ति साहित्य: भारतीय अस्मिताएं, भक्ति साहित्य में प्रेम और श्रृंगार विषय शोध पत्र आमंत्रित किए गए थे। इन विषयों पर तमाम शोध पत्र प्राप्त हुए जिन्हें संगोष्ठी में पढ़ा जाएगा।
संगोष्ठी के केन्द्रीय विषय को प्रस्तावित करते हुए कहा गया है कि भक्ति साहित्य का प्रयोजन केवल लीला गान, प्रार्थना-भाव या आत्म निवेदन नहीं है। भक्ति कालीन साहित्य में भक्ति वैयक्तिक आकांक्षा ही नहीं सामाजिक आशय से भी सम्पन्न है। यहां कविता निजी अनुभव संसार से होती हुई सार्वजनिक बनती है।
भक्ति साहित्य आत्मविस्तार का उद्यम है। यहां एक व्यापक कर्म-संसार निर्मित किया गया है। दर्शन और विचार को कर्म से प्रमाणित करके ही विश्वसनीय बनाया जा सकता है, इसे भक्त कवि अच्छी तरह जानता है। भक्त कवि के सामने मध्यकाल का सामन्ती समाज उपस्थित है। उसके साथ भोग और ऐश्वर्य में डूबा हुआ सामन्त वर्ग है, तो दीनता भार ढोते सामन्यजन भी। आधुनिक सन्दर्भ में भक्ति साहित्य पर विमर्श के केन्द्र में ईश्वर-आधारित आस्तिकता के स्थान पर आन्य मानवीय उपादान हैं, जिन पर विचार होना चाहिए। भक्त कवियों ने सामाजिक सन्दर्भों की व्यापक स्वीकृति से कविता का जो जनतांत्रीकरण किया है, वह आधुनिक समय और समाज के लिए कई दृष्टियों से उपयोगी है। भक्ति साहित्य और आज के मनुष्य के अन्तःसंघर्ष की प्रवृत्ति menmenमंे युगों का अन्तराल है। एक सामंती समाज के बीच से अपनी राह तलाशता है, तो दूसरा सामंजी, पूंजीवादी और उपभोक्तावादी समाज की संक्रमणकालीन व्यवस्था के भीतर से। यह विचार का विषय है कि सामाजिक-राजनीतिक-आर्थिक संकटों के एक भिन्न परिदृश्य के बावजूद भक्ति साहित्य आज भी हमें किस तरह सम्बोधित और अनुप्राणित करता है। भक्ति साहित्य आज भी हमें प्रेरणा देता है और नई पहचान का निमंत्रण भी। हमें उन मानवीय संदर्भाें को रेखांकित करना होगा जो आज भी हमारे लिए सार्थक और मूल्यवान है।