समय -14 मार्च की सुबह साढे छह बजे. स्थान- कुशीनगर जिले के पनियहवा रेलवे स्टेशन के पास पारस की दुकान.
बाइक रुकते ही प्रधान जी पूछते हैं- का हो काशी भाई ! ट्रेन का पोजिशन का बा आज। लेट बा का ?
काशी यादव: पनियहवा में समय से ट्रेन आवेले के ? छितौनी बाजार में बैंक कें कैश रहले के केहू गारन्टी दे पाई का । रउआ हमसे का पूछत तानी। चार महिना से दो जोडी ट्रेन चलतिया. उहो कबो टाइम से नाही आवेले. अब रउरे सरकार के सपना बा कि इलेक्ट्रिक ट्रेन चली जबकि दस साल से पनियहवा से तमकुही रोड खातिर नवकी लाईन बनता.
प्रधान- नाही बर्दाश्त भइल न. हम केतना प्रेम से पूछली हई अउर तू चली गइल पार्टी पाउया पर . इहे तहार बात ठीक नाहीं लागेला. तू किसान नेता हउ. जवने काॅटवा पर चौकीदारी करले कितना घटतौली होला उहाँ ? तू काहे नाही बोलल. हमहू सब जानेली. का कहवइब ?
काशी भाई: देखब आज उपर से लेकर नीचे तक तहार सरकार बा तबो त किसाने पेरा ताने. कप्तानगंज सोसाइटी में पर्ची-पर्ची करत एक जने जान दे दे देहलन. असो लोग के गन्ना मिल में नही गिर पायी. कई जने त उधार गन्ना क्रेशर पर बेच ताने. अइसन सरकार बा. बेटा-बेटी के शादी या बैंक के कर्जा ना दिया पाई. अच्छा बताव गोरखपुर चले के बा का.
तभी प्रधान जी का लड़का अपनी बेटी लेकर आता है. उसे इलाज के लिए गोरखपुर जाना है.
ज्ञानचन्द्र बोल पड़ते हैं- छितौनी अस्पताल में डाक्टर नाहीं रहेलें. खड्डा त रेफर करे वाला अस्पताल कहल जाला. एसे त अच्छा बा कि प्रधान हउ पैसा बाटे. तू नाही गोरखपुर दवाई करइब त के कराई.
प्रधान बोल पड़ते हैं- जवन लूट खसोट ब्लाक में बा अगर इहे हाल रही त केहू चनाव ना लड़ी.
तब तक साइकिल चला के श्रवण मास्टर पहुंच जाते हैं. वह कहते हैं-ट्रेन अगला स्टेशन छोड देहले बिया.
चाय पी रहा एक ग्रामीण बोल पड़ता है- मास्टर साहब इण्टर कालेज में पढावे ली, तब रउरा कहाॅ के तैयारी कइल बानी.
मास्टर साहब लजाते हुए बोलते हैं- जानत हव उ मानदेय के नौकरी ह. वो में नौ हजार रुपया से ज्यादे नाही मिलेला. खर्च दिन प्रति दिन बढता. अभी उम्र बा. सरकारी नौकरी के जुगाड में लगले में का हर्ज बा.
तभी उनकी नजर पत्रकार पर पड़ती है. वह बोलते हैं-पत्रकार जी ! फोटो नाहीं छपे के चाही.
तभी ट्रेन आ जाती है और लोग स्टेशन की तरफ बढ़ चलते हैं.