गोरखपुर. प्रेमचंद के पहले हिन्दी उपन्यास सेवासदन के सौ साल पूरा होने पर प्रेमचंद साहित्य संस्थान द्वारा दीनदयाल उपाध्याय गोरखपुर विश्वविद्यालय के हिन्दी विभाग के सहयोग से 16-17 दिसंबर 2019 को संवाद भवन मे़ दो दिवसीय अंतरराष्ट्रीय संगोष्ठी का आयोजन किया जा रहा है.
एक संयुक्त विज्ञप्ति में यह जानकारी संगोष्ठी के संयोजक एवं प्रेमचंद साहित्य संस्थान के निदेशक प्रो सदानन्द शाही, दीनदयाल उपाध्याय गोरखपुर विश्वविद्यालय के हिन्दी विभाग के अध्यक्ष प्रो. अनिल कुमार राय और प्रेमचंद साहित्य संस्थान के सचिव
मनोज कुमार सिंह ने दी.
आयोजकों ने बताया कि संगोष्ठी में उदघाटन सत्र के अलावा तीन सत्र- ‘ सौ साल बाद सेवासदन : स्त्री मुक्ति का भारतीय पाठ ‘ , ‘ हिन्दी उपन्यास परंपरा में सेवासदन की उत्तरजीविता ‘ और ‘ सेवासदन और भारतीय स्त्री का कल , आज और कल ’’ होगा. संगोष्ठी में उद्घाटन वक्तव्य सुपरिचित आलोचक प्रो रोहिणी अग्रवाल (रोहतक) का होगा तथा अध्यक्षता गोरखपुर विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो विजय कृष्ण सिंह करेंगे।
संगोष्ठी में अतिथि वक्ता के रूप में प्रो शशि मुदिराज (हैदराबाद) , प्रो सुधा सिंह (नई दिल्ली) , प्रो संतोष भदौरिया, डा सूर्यनारायण, प्रो योगेन्द्र सिंह, डा आशुतोष पार्थेश्वर , विवेक निराला , प्रो अली अहमद फातमी, (इलाहाबाद), प्रो अवधेश प्रधान, डा समीर पाठक , डा ज्योति सिंह (वाराणसी), डा प्रीति चौधरी (लखनऊ ), रघुवंश मणि, डॉ अनिल कुमार सिंह, डॉ विशाल श्रीवास्तव (फैजाबाद) , बृजराज कुमार सिंह (आगरा) सुशील सुमन (बंगाल) एवं डा अनूप श्री विजयिनी (भागलपुर), अदनान कफील दरवेश (नयी दिल्ली) सहित अनेक युवा लेखक लेखिकाओं की सहभागिता होगी।
संगोष्ठी में डा ज़्बीग्नेव इग्येल्स्की (पोलैंड) ,संध्या सिंह (सिंगापुर), शिरीन प्रसाद (फिजी) एवं रसांगी नायक्कार (श्री लंका) जैसे अनेक विदेशी विद्वान/शोधार्थी शिरकत कर रहे हैं । दीदउ गोरखपुर विश्वविद्यालय के हिंदी विभाग के पूर्व आचार्य एवं अध्यक्ष प्रो रामदेव शुक्ल( अध्यक्ष ,प्रेमचंद साहित्य संस्थान), वरिष्ठ कथाकार मदन मोहन, हिंदी विभाग के अध्यक्ष प्रो. अनिल कुमार राय, ,प्रो कमलेश गुप्त, प्रो दीपक प्रकाश त्यागी, प्रो विमलेश मिश्र, प्रो राजेश मल्ल, प्रो प्रत्यूष दुबे, प्रो अरविंद त्रिपाठी, डॉ दमयंती तिवारी, डॉ प्रेमव्रत तिवारी भी संगोष्ठी में सम्मिलित होंगे ।
प्रेमचंद ‘ सेवासदन ‘ में भौतिक गुलामी की अपेक्षा मानसिक गुलामी को दूर करने का वितान रचते हैं। हिन्दी कथा साहित्य के इतिहास में प्रेमचंद ने पहली बार स्त्री के सम्मान का सवाल उठाया और स्त्री मुक्ति का भारतीय पाठ प्रस्तुत किया। सेवासदन के सौ वर्ष के बहाने यह विवेचन करने की कोशिश की जायेगी कि इन सौ वर्षों में स्त्री का जीवन कितना और किस हद तक मुक्त हुआ है। प्रेमचंद ने सेवासदन से हिन्दी उपन्यास की दिशा और दशा बदल दी। सौ वर्ष बाद इस उपन्यास को याद करने का अर्थ हिन्दी उपन्यास के स्वरूप विकास का लेखा -जोखा तो है ही, हिन्दी कथा साहित्य में स्त्री जीवन के कल, आज और कल का आकलन भी है.