गोरखपुर। ‘ भोजपुरी भाषा की पहली कहानी ‘केहू से कहब मत’ अगस्त 1947 में लिखी गयी और इस भाषा का प्रथम कहानी संग्रह अवध बिहारी सुमन लिखित ‘जेहलि के सनद’ दिसंबर 1947 में प्रकाशित हुआ, जिसमें सामाजिक यथार्थ का बहुत ही गज्झिन चित्रण किया गया है। आजाद भारत में भोजपुरी में कहानी लेखन का काम हिन्दी भाषा के साथ कंधे से कंधा मिलाकर हो जरूर रहा है, मगर इसकी गति अपेक्षा से बहुत ही कम है। ‘
महानगर के खरैया पोखरा में आयोजित भोजपुरी संगम की 118 वीं बइठकी में यह विचार ‘भोजपुरी कहानी आ वोकर विकास’ विषय पर बतकही में नन्द कुमार त्रिपाठी ने व्यक्त किया। श्री त्रिपाठी ने अपने लिखित आलेख में भोजपुरी कहानी के विकासक्रम की विस्तार से चर्चा करते हुए लेखकों से इस दिशा में आगे आकर भोजपुरी साहित्य का भंडार और भी बढ़ाने का आग्रह किया।
बतकही में वरिष्ठ साहित्यकार सूर्यदेव पाठक पराग ने भी अपना लिखित आलेख पढ़ते हुए नन्द कुमार त्रिपाठी के शोधपरक आलेख की सराहना की।
कार्यक्रम की अध्यक्षता कर रहे भोजपुरी के चर्चित कहानीकार डा. आद्या प्रसाद द्विवेदी ने अपने संबोधन में कहा कि भोजपुरी कहानी का भंडार भी हिन्दी की तरह ही वैविध्यपूर्ण है। हालांकि समय के लिहाज से इसमें अभी और ज्यादा तेजी लाने की आवश्यकता है। कार्यक्रम का संचालन वरिष्ठ कवि धर्मेन्द्र त्रिपाठी ने किया।
कार्यक्रम के दूसरे सत्र में डा. धनंजय मणि त्रिपाठी ने अपनी कहानी ‘55072 डाऊन नरकटियागंज पैसेंजर’ का काफी मनोयोग से पाठ किया। भाषा, कथ्य और शिल्प के लिहाज से कहानी श्रोताओं को अंत तक बांधे रखने में कामयाब रही। श्रोताओं ने मुक्तकंठ से कहानीकार की सराहना की। कवितई के क्रम में चन्द्रेश्वर परवाना, सूर्यदेव पाठक पराग, वीरेन्द्र मिश्र दीपक,भीम प्रसाद प्रसाद प्रजापति, नर्वदेश्वर सिंह, राम समुझ साँवरा, आरडीएन श्रीवास्तव एवं नील कमल गुप्त विक्षिप्त ने अपनी एक एक रचनाओं का पाठ किया।
भोजपुरी संगम के संयोजक कुमार अभिनीत ने अगले कार्यक्रम के विषय चयन का प्रस्ताव रखा, जिसमें ‘सेसर कलमकार’ के रूप में बतकही के लिए कवि गोरख पांडेय पर आपस में सहमति बनी। अंत में संस्था के संरक्षक ई. राजेश्वर सिंह ने कार्यक्रम में उपस्थित सभी लोगों के प्रति आभार व्यक्त किया।