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‘‘ डेंगू मरीज का अतीत और वर्तमान जानें, इसके बाद ही करें इलाज ’’

शहर के 80 निजी चिकित्सकों ने डेंगू के और बेहतर इलाज का गुर सीखा

आईएमए ने दिया आश्वासन-मरीजों का मानकों के अनुसार किया जाएगा इलाज

गोरखपुर. ‘‘ डेंगू मरीजों का अतीत व वर्तमान जानना बेहद अहम है। संदिग्ध डेंगू मरीज से ये दोनों चीजें अवश्य जान लेनी चाहिए। अगर ऐसे मरीज को पहले भी डेंगू हुआ है तो दूसरी बार इस बीमारी का होना प्रथम दिन से ही घातक रुप अख्तियार करने के लिए काफी है। इसी तरह अगर डेंगू मरीज को मधुमेह, ह्रदय रोग, उच्च रक्तचाप जैसी बीमारियां पहले से ही हैं तो भी डेंगू घातक रुप ले सकता है। इसलिए मरीज का इतिहास जान लेने के बाद बेहतर इलाज दिया जा सकता है। ’’

शहर के निजी चिकित्सकों के सतत चिकित्सा शिक्षा कार्यक्रम में बतौर प्रशिक्षक आए विषय विशेषज्ञ डॉ. अनिल मिश्र ने 80 चिकित्सकों को बेहतर इलाज के कई महत्वपूर्ण टिप्स दिये। मुख्य चिकित्साधिकारी (सीएमओ) डॉ. श्रीकांत तिवारी की अध्यक्षता में यह कार्यक्रम इंडियन मेडिकल एसोसिएशन (आईएमए) और विश व जीएसके के संयुक्त तत्वावधान में गुरुवार को देर शाम तक चला।

डॉ. अनिल मिश्रा ने बताया कि डेंगू के सामान्य मामलों में बुखार का चौथा से सातवां दिन बेहद खतरनाक होता है। पहले दिन से लेकर पांच दिन तक सिर्फ एनएसवन टेस्ट पॉजीटिव आता है जबकि पांच दिनों के बाद एलाइजा टेस्ट पॉजीटिव आता है। सभी निजी चिकित्सकों को चाहिए कि डेंगू मरीज मिलते ही उसकी सूचना स्वास्थ्य विभाग को अवश्य दे दें ताकि समय से मरीज का ब्लड सैंपल लेकर एलाइजा कंफर्म किया जा सके। एलाइजा के लिए भेजे जाने वाले नमूने पर बुखार का पहला दिन सही-सही अंकित होना चाहिए, तभी सही रिपोर्ट मिल पाएगी। उन्होंने इस बात पर जोर दिया कि डेंगू मरीजों का इलाज भारत सरकार के स्टैंडर्ड मानकों के अनुसार ही होना चाहिए। इलाज से जुड़े सभी प्रोटोकॉल को चार्ट के रूप में अस्पताल में लगाया जाना चाहिए।

सीएमओ ने कहा कि निजी चिकित्सकों के सहयोग व पर्याप्त जन जागरूकता से डेंगू के कारण इस साल जिले में एक भी मौत नहीं हुई है। कुछ मौतों का मामला मीडिया में आया तो उन सभी की डेथ ऑडिट करायी गयी, जिसमें किसी भी मौत का कारण डेंगू नहीं मिला। आईएमए अध्यक्ष डॉ. एससी कौशिक और सचिव डॉ. राजेश गुप्ता ने सीएमओ को आश्वस्त किया कि संक्रामक बीमारियों की रोकथाम में निजी क्षेत्र, सरकारी क्षेत्र का भरपूर सहयोग करेंगे।

इस अवसर पर पूर्व आईएमए अध्यक्ष डॉ. आरएन सिंह, डॉ. आरपी त्रिपाठी, एनएचएम के जिला कार्यक्रम प्रबंधक पंकज आनंद, पूर्व जिला स्वास्थ्य शिक्षा एवं सूचना अधिकारी ओपीजी राव, बाल रोग विशेषज्ञ डॉ. अजय देवकुलियार, विश फाउंडेशन से मैनेजर प्रोग्राम अंजुम गुलरेज, वेद प्रकाश दूबे, निखिल, अभिषेक भी मौजूद रहे।

निजी चिकित्सकों को दिये गये अहम टिप्स

• निजी नर्सिंग होम में भी बेक्टर बार्न डिजीज जैसे इंसेफेलाइटिस, डेंगू, कालाजार, चिकनगुनिया ई. के लिए अलग बेड व वार्ड होना चाहिए।

• बरसात के चार महीनों में बुखार का कोई भी मरीज आए उसे सिर्फ पैरासिटामॉल दें। साथ में ब्रूफेन और एस्प्रीन बिल्कुल न दें।

• डेंगू की सामान्य पहचान भयानक सिरदर्द और आंखों के पीछे सिर में दर्द है।

• संदिग्ध डेंगू मरीज को दवा देने के बाद दूसरे और तीसरे दिन लगातार बुलाएं और अगर इन दोनों दिनों में स्थिति सामान्य दिखे तभी मरीज को घर जाने दें अन्यथा भर्ती कर लें। अगर भर्ती की सुविधा नहीं है तो फौरन रेफर कर दें।

• अत्यंत अपरिहार्य परिस्थिति में ही नार्मल सैलाइन या रिंगर लैक्टेट जैसे फ्लूड का इस्तेमाल हो।

• घातक मामलों में ब्लड ट्रांसफ्यूजन या प्लेटलेट ट्रांसफ्यूजन के दौरान मानकों का पालन हो।

• बरसात के मौसम में किसी भी मरीज को 5 फीसदी डेक्सट्रॉज साल्यूशन बिल्कुल नहीं देना है।

1956 में सामने आया था डेंगू का पहला मामला

डॉ. अनिल मिश्रा ने बताया कि डेंगू का पहला मामला 1956 में तमिलनाडु प्रांत में मिला था। 2010 तक यह बीमारी देश के 31 राज्यों व केंद्र शासित प्रदेशों में फैल गयी। वर्ष 1996 में इसकी अधिकतम मृत्यु दर 3.3 फीसदी थी जो वर्ष 2018 तक घट कर 0.1 फीसदी हो गयी है। इस बीमारी का प्रसार तेजी से हो रहा है लेकिन सुखद तथ्य यह है कि सावधानी बरत कर इससे होने वाली मौतों को रोका जा सकता है।

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