सैयद फरहान अहमद
गोरखपुर, 2 अगस्त । अन्तर्राष्ट्रीय कव्वाल 26 वर्षीय जुनेद सुल्तानी बदायूंनी बचपन से ही कव्वाली गा रहे है। एक प्रोग्राम में शिरकत करने गोरखपुर आए जुनेड ने बातचीत में कव्वाली से जुड़ी बातें साझा की।
साउथ अफ्रीका, दुबई, इंग्लैंड सहित विदेशों में कई दर्जन प्रोग्राम कर चुके हैं। रामपुर सहसवान घराने से ताल्लुक रखने वाले जुनैद का परिवार छह सौ सालों से कव्वाली गा रहा है। पंजाबी, हिंदी, उर्दू, फारसी में कव्वाली गाने वाले जुनैद ने कहा कि सूफी गायक वहीं बन सकता हैं जिसे कव्वाली गाने का सलीका पता हो। सूफियां को पसंद आने वाली यह कव्वाली हमारी संस्कृति में रची बसी है। कद्र दान की कोई कमी नहीं है। इस समय राहत फतेह अली खान की वजह से फिल्मों में कव्वाली काफी पंसद की जा रही है। वैसे भारतीय संस्कृति में कव्वाली हमेशा से रची बसी रही। यह रूह को ताजगी प्रदान करती है। इस क्षेत्र में आने वालों को रियाज के साथ भाषा पर पकड़ होनी बेहद जरूरी है। विदेशों में फारसी कव्वाली पसंद की जाती है। इन्होंने बताया कि ग्रुप में ज्यादातर लोग परिवार के है। कव्वाली सुफियों के आस्तानों से निकला वह बेशकीमतरी नगीना है जो रूह को सुकून बख्शता है। पाकिस्तान में कव्वाली गायक की हत्या का इन्हें काफी अफसोस है। कहते है प्यार बांटने वाले को नफरत फैलाने पसंद नहीं कर रहे है।
कव्वाली सूफियां की गिजा (भोजन): आरिफ
दुबई सहित विदेशों में कई प्रोग्राम कर चुके आमिल आरिफ साबरी ने बताया कि कव्वाली सूफियों की गिजा है। दिल्ली घराने से ताल्लुक रखने वाले आरिफ के कई एलबम आ चुके है। जिनमें आमदे मुस्तफा, चमका देा मुकद्दर ताजुद्दीन, सब झूम के बोलो सैलानी व ख्वाजा गरीब नवाज पर आया एलबम काफी मशहूर है।
उन्होंने बताया कि पहले डफ पर गायी जाने वाली कव्वाली आज आधुनिक यंत्रों से बेहद दिलकश हो गयी है। इसका दायरा पूरी दुनिया में फैल चुका है। कव्वाली खुदा से बंदें को जोड़ने का तरीका है। कव्वाली में अल्फाजों की चेजिंग हुई है। पहले कव्वाली का भाषा जहां फारसी हुआ करती थी अब उर्दू, पंजाब हो चुकी है। संगीत की इस विधा में भविष्य रोशन है।
पूरी दुनिया में पहली ऐसी घटना जो पाकिस्तान में हुई एक कव्वाल को सरे राह मार दिया गया। इससे पूरा कव्वाली जगत स्तब्ध है।
नफरत फैलाने वाले जानते है कि कव्वाली के जरिए आपसी भाईचारा व मोहब्बत फैलती है। लिहाजा कव्वाली गाने वालों को निशाना बनाया जा रहा है जो अफसोस जनक है। कव्वाली में नए-नए प्रयोग हो रहे है जो ठीक है।
विदेशों में तो कव्वाली की काफी डिमांड हो रही है यही इसकी प्रसिद्धी की दलील है। उर्दू खुद भी सीखें और अपनी नस्लाों को भी सिखायें ताकि कव्वाली गाने वा समझने में आसानी हो।