अब यहाँ बनेगी आठ करोड़ की लागत से विधि विज्ञान प्रयोगशाला
400 वर्ष पुरानी बसंतपुर सराय को गिराने से बचा लिया गया लेकिन सदर लॉकप पर है खामोशी
सैयद फरहान अहमद
गोरखपुर, 13 अगस्त। गोरखपुर शहर के 118 वर्ष के इतिहास को अपने वजूद में समेटने वाली ऐतिहासिक उत्तर जेल (सदर लॉकप) अब चंद दिनों की मेहमान है। कुछ ही दिन में इस इमारत को बुलडोजर ध्वस्त कर देंगे और उसकी जगह विधि विज्ञान प्रयोगशाला को तामीर करने का काम शुरू करेंगे ताकि वारदातों के सबूतों का वैज्ञानिक परीक्षण हो सके। जिस जगह कभी जंगे आज़ादी के दीवानों को बंद रखा गया , उन्हें यातनाएं दी गई , उस जगह को धरोहर के रूप में सँजोने के बजाय उसे ध्वस्त किए जाने की कवायद के बारे में शहर या तो अनजान है या जान कर भी खामोश है।
उत्तर जेल (सदर लॉकप) आज से 148 वर्ष पहले 1868 में बना था। अँग्रेजी हुकूमत के खिलाफ 1857 के बगावत के 11 वर्ष बाद। 1857 के बगावत में इस इलाके के लोगों ने बढ़ चढ़ कर भाग लिया था। ऐतिहासिक लालडिग्गी के पास स्थित मोती जेल प्रथम स्वतंत्रता संग्राम के योद्धाओं से भर गई थी। इतिहासकार बताते हैं कि यहां शाहपुर स्टेट के शाह इनायत अली शाह, जगदीशपुर स्टेट के कुंवर
सिंह के भाई को फांसी दी गई थी। फांसी देने से पूर्व शहीद बाबू बंधू सिंह को यहीं रखा गया था। उस वक्त ही मोती जेल के हालत बहुत खस्ता थी। इसलिए अंग्रेजों ने आज की जिला अस्पताल के पास उत्तर जेल बनवाया। कहा जाता है कि अंग्रेज़ हुक्मरान इस जगह आज़ादी के लिए लड़ने वाले सेनानियों को कैद कर रखते थे और उन्हें यतनाए देते थे। वर्ष 1895 में मंडलीय कारगर के बन जाने के बाद बंदियों को वह रखा जाने लगा। फिर भी इसका उपयोग आज़ादी के बाद तक होता रहा।
उत्तर जेल यानि सादर लाकप के बारे में ज्यादा जानकारी उपलब्ध नहीं है। मंडलीय कारागार के वरिष्ठ जेल अधीक्षक एसके शर्मा के मुताबिक वर्ष 1868 ई. में इसका निर्माण अंग्रेजों ने करवाया था। लेकिन इस बात का कोई रिकार्ड नहीं मिला है कि यहां जंगे आजादी के मतवाले रखे जाते थे। बाद में लॉकप का उपयोग बाल कारागार के रुप में किया जाने जाने लगा। वर्ष 1986 में इसे बंद कर दिया गया।
करीब 30 साल से बंद साढ़े तीन एकड़ में फैली दर्जनों छोटी-छोटी बैरकों वाली यह जेल जल्द जमींदोंज हो जायेगी। इसकी जगह नयी विधि विज्ञान प्रयोगशाला बनाने का निर्णय हुआ है। इसके लिए 8 करोड़ रुपए का बजट दिया गया है। राजकीय निर्माण निगम को कार्यदायी संस्था बनाया गया है। काम शुरू भी कर दिया गया है। जेसीबी मशीन सफाई में लगी हुई है। काफी दिनों से बंद रहने की वजह से झाड़ियों ने सभी बैरकों को अपने आगोश में ले लिया हैं। परिसर के अंदर कई कब्रें भी हैं।कुछ मुसलमानों की हैं तो कुछ ईसाईयों की हैं।
शहर के इतिहास को समझने व जानने की चंद धरोहरें ही बची हुई है। चाहे वह बसंतपुर सराय, मोती जेल, होम्स क्लनन लाइब्रेरी हो या उत्तर जेल (सदर लॉकप) आदि। इस धरोहरों का संरक्षण तो नहीं हो रहा है उनके वजूद को मिटाने का काम जरूर हो रहा है। दो वर्ष पहले 26 अगस्त 2014 को नगर निगम ने 400 वर्ष पुरानी बसंतपुर सराय को ढहाने का निर्णय ले लिया था लेकिन नागरिकों के विरोध के कारण नगर निगम को पीछे हटना पड़ा। इसके बाद इसके संरक्षण के लिए इंडियन नेशनल ट्रस्ट आॅफ आर्ट एंड कल्चरल हेरिटेज ने योजना भी बनाई और रिपोर्ट प्रस्तुत किया लेकिन उसे मूर्त रूप देने के लिए सरकार, प्रशासन या नगर निगम, जीडीए आदि धन देने को तैयार नहीं हैं।
बसंतपुर सराय तो बच गया लेकिन उत्तर जेल एक -दो दिन में ध्वस्त हो जाएगा। इसका इतिहास जिस तरह से पोशीदा रहा , उसको ढाहने और वजूद मिटाने का निर्णय भी पोशीदा रखा गया। यह तब जाहिर हो रहा है जब इसे ढहाने के लिए जेसीबी और बुलडोजर पहुँच चुके हैं।
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