गोरखपुर। वफ़ा फैंस क्लब द्वारा विजय चौराहा स्थित होटल प्रगति इन में 24 नवंबर को आयोजित एक कार्यक्रम में तारकेश्वर नाथ श्रीवास्तव ‘ वफ़ा गोरखपुरी ‘ के 23वें काव्य संग्रह “ एहसास-ए-वफ़ा” का विमोचन जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय के प्रोफेसर ख़्वाजा मोहम्मद इक़रामुद्दीन, गोरखपुर विश्वविद्यालय के हिंदी विभाग के शिक्षक रहे प्रो. आर.डी. राय, इतिहासकार डॉ. दरख्शां ताजवर, उत्तर प्रदेश उर्दू अकादमी के पूर्व अध्यक्ष चौधरी कैफुल वरा अंसारी और डॉ. दुष्यंत सिंह ने किया।
कार्यक्रम का आरंभ डॉ. अशफाक़ अहमद उमर, फर्रुख़ जमाल और अरशद राही द्वारा अतिथियों का शॉल, प्रशस्ति पत्र और पुष्पगुच्छ से स्वागत कर किया गया।
कार्यक्रम की शुरुआत इतिहासकार डॉ. दरख्शां ताजवर के उद्बोधन से हुई। उन्होंने गोरखपुर और उसके आसपास उर्दू भाषा और साहित्य की सेवा में जुटे गैर-मुस्लिम कवियों और लेखकों का परिचय कराया। वफ़ा गोरखपुरी की सेवाओं को रेखांकित करते हुए उन्होंने कहा कि वफ़ा साहब गंगा-जमुनी संस्कृति की जीती-जागती मिसाल हैं। वे न केवल एक नेकदिल इंसान बल्कि एक बेहतरीन कवि भी हैं। उर्दू और हिंदी भाषाओं के प्रति उनकी सेवाएं हमेशा याद की जाएंगी।
इस अवसर पर प्रो. ख़्वाजा मोहम्मद इक़रामुद्दीन को वफ़ा फैंस क्लब ने उनके उर्दू साहित्य में अद्वितीय योगदान के लिए “ सपास-नामा ” से सम्मानित किया।
इस मौके पर उन्होंने कहा कि “ एहसास-ए-वफ़ा ” को मैंने सरसरी तौर पर देखा है, और इसने कई जगहों पर मुझे चौंकने पर मजबूर किया। वफा साहब की कविता में हर रंग और स्वर मौजूद हैं, जो पाठकों को आकर्षित करते हैं। उनकी भाषा की सरलता और गहराई पाठकों का दिल जीत लेती है।
गोरखपुर विश्वविद्यालय के हिंदी विभाग के शिक्षक रहे प्रो. आर.डी. राय ने कहा कि वफ़ा गोरखपुरी ने अपनी कविताओं से समाज को एक दर्पण दिखाया है। उनकी रचनाएं सुधारात्मक हैं और आधुनिक विचारों व दर्शन से भरी हुई हैं। वे किसी भी ताजा मुद्दे को अपनी लेखनी में शामिल करने से नहीं चूकते।
चौधरी कैफुल वरा अंसारी ने कहा कि वफा गोरखपुरी का नाम गोरखपुर जैसे बहु-सांस्कृतिक शहर के बड़े साहित्यकारों की सूची में शामिल है। उन्होंने उर्दू और हिंदी साहित्य को समृद्ध किया है।
डॉ. दुष्यंत सिंह ने कहा कि वफ़ा साहब की कविताएं मानवता के दर्द का आईना हैं। उनकी रचनाओं में सरलता और पारदर्शिता स्पष्ट दिखती है।
इस मौके पर वफ़ा गोरखपुरी ने अपने संग्रह की कुछ कविताएं सुनाई-
“अपनों में और गैरों में खींचे गए बहुत,
हम दोस्ती के नाम पर लूटे गए बहुत।”
कार्यक्रम में शेयर नशिस्त का आयोजन किया गया जिसका संचालन फरूख जमाल ने किया।
शेरे नशिस्त में डॉ शोएब नदीम ने अपनी रचना पढ़ी-
“ साया है मेरे सर पे अभी आसमान का ,
एहसान क्या उठाऊं किसी सायबान का। ”
सलाम फैज़ी ने कहा-
“ मैं दोस्तों की अजब सरज़मीं में उतरा,
कोई तो दिल में, कोई आस्तीन में उतरा।”
शेरे नशिस्त में सिद्दीक मजाज, डा मसरूर बहार, डा रूशदा, डा फरीद कमर, फुरकान फरहत, शाकिर अली शाकिर ने भी कलाम पेश किए।
कार्यक्रम का समापन अरशद राही के धन्यवाद ज्ञापन के साथ हुआ।