सीतामढी (बिहार)। ‘ बागमती नदी पर तटबंध तथा बराज निर्माण के नाम पर 1970 के दशक से ही बडा सपना दिखाया जा रहा है। सरकार अब पुन:बराज का सपना दिखा रही है। सरकार सपना दिखाने के बजाय बागमती को बचाने तथा उसका उपजाऊ पानी खेतों को सुलभ कराने पर काम करे। हमें तटबंध-बराज नही बागमती का पानी चाहिए। ‘
यह बातें नेपाल सीमा से सटे मेजरगंज प्रखंड के बसबीट्टा बाजार पर पंचायत भवन के सभागार में किसान नेता तथा स्थानीय मुखिया राघवेन्द्र कुमार सिंह की अध्यक्षता में ” जलवायु परिवर्तन-नदी विमर्श मंच ” के तत्वावधान मेंआयोजित किसान-कन्वेंशन में कही गई। कन्वेंशन में प्रस्ताव पारित कर सरकार से 10 सूत्री मांगो पर अमल की मांग की गई।
राघवेन्द्र कुमार सिंह ने तटबंध के भीतर के गांवों तथा मेजरगंज तथा सुप्पी में बागमती की समस्या पर प्रकाश डाला।
कन्वेंशन में पर्यावरणविद तथा नदी जल विशेषज्ञ रामशरण अग्रवाल ने कहा प्रथम सिंचाई मंत्री ने तटबंध का विरोध किया था। गाद निकालना समस्या है परन्तु गाद नही आने पर चिंतन नही किया जा रहा है। नेपाल के पहाड से समतल तक वृक्षारोपण से गाद रूकेगी। बिहार सरकार श्वेत पत्र जारी करे तथा बागमती पर कितनी राशि खर्च हुई उसकी मांग उठनी चाहिए। बडी नदियों के जीवन के लिए छोटी नदियों को भी बचाना होगा। योजना बनाते समय विस्तृत जानकारी संबंधित क्षेत्रों को दिया जाना जरूरी है। उन्होंने पर्यावरण तथा जलवायु संकट पर विस्तार से प्रकाश डाला।
गांधीवादी तथा नदी जल विशेषज्ञ प्रो आनन्द किशोर ने कहा कि फरक्का बराज से गंगा गाद से भरकर दर्जनो जिलों में तबाही मचा रही है।सी एम तथा जल संसाधन मंत्री फरक्का बराज तोडने की बात कह चुके है वहीं कोशी का बीरपुर बराज फेल है फिर बागमती में ढेंग तथा कटौझा में 45 किमी के बीच दो बराज तथा नेपाल से कटौझा 85 किमी में तीन बराज का कोई औचित्य नहीं है। यहां गाद भरने तथा जल जमाव से हजारों एकड खेत बर्बाद होंगे। दर्जनो गांवो का विस्थापन होगा। मेजरगंज, सुप्पी तथा बैरगनिया में कभी भी तटबंध टूटेगा तो कोशी के कुसहा जैसी त्रासदी हो सकती है। वैसे नेपाल के करमहिया में पहले हीं बराज बन जाने से खेती के समय ढेंग बराज को पानी नही मिलेगा। हमें बराज नही तटबंधों पर जहां गांव नही है वहां जगह-जगह लचका तथा स्लूईश गेट बनाकर खेतों को बागमती का उपजाऊ पानी देना चाहिए।
प्रो किशोर ने कहा कि देश-दुनिया में तटबंध अप्रासंगिक तथा बर्बादी का कारण बना हुआ है।यूरोप तथा चीन में तटबंधों को तोडा जा रहा है वहीं बिहार में जन विरोध के बावजूद तटबंध बनाने पर सरकार आमादा है। बागमती कटाव तथा तटबंध टूटने से बर्बाद परिवार मुआबजे के लिए भटक रहे हैं। उन्हें अनुदान के साथ कटाव रोकने में तेजी लानी चाहिए।
संयुक्त किसान संघर्ष मोर्चा के जिलाध्यक्ष जलंधर यदुबंशी ने कहा कि बागमती परियोजना के नाम पर सरकार आमजन की तबाही बढा रही है। नदियों को बंचाने की जगह तटबंधो के कारण नदियां गाद से भरकर मृतप्राय हो रही है। सरकार तटबंध-बराज के नाम पर लूट का खेल खेल रही है। यह गंभीर मसला है इसके लिए आमजन को आगे आना होगा।
पूर्व प्राचार्य शालिग्राम सिंह ने क्षेत्रीय समस्याओं तथा बागमती की तबाही पर प्रकाश डाला। समाजसेवी रामबाबू प्रसाद ने अतिथियों का स्वागत तथा मंच संचालन किया।
कन्वेंशन के माध्यम से बागमती में बराज निर्माण पर रोक तथा तटबंधों पर जहां गांव नही हो वहां लचका बनाकर या स्लूईश गेट के माध्यम से उपजाऊ पानी खेतों को दिलाने, सुप्पी तथा मेजरगंज के कटाव प्रभावित गांवों की सुरक्षा के साथ विस्थापित परिवारों को मुआवजा भुगतान कराने, पूर्व से विस्थापित परिवारों को भूमि पर कब्जा दिलाने, 2024 के बाढ, कटाव तथा तटबंध टूटने से प्रभावितों को उचित अनुदान तथा गृह क्षति मुआवजा भुगतान, जलवायु परिवर्तन के कुप्रभाव से नदियों को बचाने,अल्पवर्षा, कटाव रोकने, गाद सुरक्षा हेतू नेपाल से भारत तक सघन वृक्षारोपण के लिए ठोस पहल करने हेतु सरकार को 10 सूत्री प्रस्ताव भेजने का निर्णय लिया गया। कन्वेंशन में स्थानीय किसान नागेन्द्र सिंह, बीरेन्द्र कुमार सिंह, जगदीश नारायण सिंह, छोटे लाल पटेल सरपंच, लक्षमी सहनी, सुशील कुमार सिंह, रामबाबू राम, राम एकबाल महतो, पप्पूसिंह, मदन साह, सुशीला देवी, मधुरेन्द्र पासवान, अंजू देवी,अंजना देवी, गीता देवी आदि ने अपना विचार रखा।