समाचारसाहित्य - संस्कृति

‘ प्रेमचंद के साहित्य में सारे हिंदुस्तान की जिंदगी नजर आती हैं ’

सेंट एंड्रयूज कालेज में प्रेमचंद पर अन्तर्राष्ट्रीय सेमिनार

‘ गोरखपुर में प्रेमचंद : शताबदी स्मरण ‘ कार्यक्रम शृंखला के के तहत हुआ आयोजन

कुवैत और नेपाल से आए साहित्यकारों के साथ गोरखपुर के विद्वानों ने प्रेमचंद और उनके साहित्य पर चर्चा की

गोरखपुर, 5 नवम्बर। इलाहाबाद हाईकोर्ट के रिटायर्ड जज जस्टिस कलीमुल्लाह खां ने मुंशी प्रेमचंद की रचनाओं को ’ वर्ल्ड लिटरेचर ’ बताते हुए कहा कि वह आम आदमी के दुख दर्द और उनकी समस्याओं को पुरजोर तरीके से सामने लाते हुए स्वराज्य की अवधारणा को पेश कर किया जिसमें व्यक्ति गुलामी से ही नहीं जेहन से भी आज़ाद होता है। उनका कहना था कि मुल्क में एकता व अखंडता को कायम रखना हिंदुस्तान की तरक्की के लिए बहुत जरूरी है।
जस्टिस कलीमुल्लाह खां आज सेंट एंड्रयूज कालेज के असम्बेली हाल में गोरखपुर जाब इंफार्मेशन एंड ट्रेनिंग सेंटर व उर्दू विभाग सेंट एंड्रयूज कालेज के संयुक्त तत्वावधान में ‘ गोरखपुर में प्रेमचंद : शताबदी स्मरण ‘  के तहत आयोजित अन्तर्राष्ट्रीय सेमिनार में अध्यक्षीय भाषण दे रहे थे।
उन्होंने कहा कि मुंशी प्रेमचंद की रचनाओं को किसी एक जबान या वर्ग में बांटना दुरूस्त नहीं है। वह जहां हिंदी के बड़े साहित्यकार थे वहीं उर्दू में उनके जैसे कोई अफसानानिगाह आज तक कोई पैदा नहीं हुआ।

कुवैत विश्वविद्यालय में शिक्षक डा. सईद रौशन ने कहा कि उनके विश्व विद्यालय में गालिब , फैज के साथ-साथ प्रेमचंद को भी पढ़ाया जाता है और छात्र भी उनके साहित्य में काफी रुचि लेते हैं। उन्होने प्रेमचंद के उपन्यासों की शोध की रोशनी में बताया कि इंसानियत को बेदार करना और उच्च विचार को पैदा करना प्रेमचंद का मकसद था।  उनके साहित्य में पूरे हिंदुस्तान की जिंदगी नजर आती है।

कुवैत से आए मौर्य कला परिषद के उपाध्यक्ष एवं शायर डा. अफरोज आलम ने कहा कि मुंशी प्रेमचंद ने अपने अफसानों में देहात की जो तस्वीर पेश की हैं, वह आज भी बरकरार है। खास तौर पर पूर्वी उत्तर प्रदेश के देहातों की सूरत में अज्ज कोई खास बदलाव नहीं आया है। जब तक उनकी सूरत नहीं बदलती प्रेमचंद के अफसाने जिंदा रहेंगे। उन्होंने अमीरों के गरोब विरोधी दृस्टिकोण पर चुटकी लेते हुए कहा कि ’’ ए अमीरे शहर निकलो पूस की एक रात में, शहर की सच्चाईयों से आशनां हो जाओगे। ’’

गोरखपुर विश्वविद्यालय के हिंदी विभाग के प्रो. अनिल राय ने कहा कि प्रेमचंद के उपन्यासों और कहानियों को ठीक से समझने के लिए उनका वैचारिक गद्य को पढ्न जरूरी बताते हुए कहा की आज देश की सत्ता जिस राष्ट्रवाद की वकालत कर रही है वह प्रेमचंद्र का राष्ट्रवाद नहीं है। प्रेमंचद के राष्ट्रवाद के केंद्र में आर्थिक प्रश्न है। आज देश की जनता में जिस तरह से इस प्रश्न पर विभम्र पैदा करने की कोशिश की  जा रही है उसका जवाब प्रेमचंद ने अपने वैचारिक गद्य में बाखूबी दिया हैं। उन्होने डीडी कोशम्बी के कटहन का उल्लेख करते हुए कहा कि हमारे देश का राष्ट्रवाद का प्रश्न रोटी और भूख से जुड़ा है न कि मजहब और साम्प्रदायिकता से क्योंकि अब तक ऐसा इंसान बनना शुरू नहीं हुआ है रोटी के बगैर जिंदा रह सके।

गोरखपुर विश्वविद्यालय के हिंदी विभाग के पूर्व अध्यक्ष प्रो. केसी लाल ने प्रेमचंद की रचनाओं में हिंदुस्तान की गंगा जमुनी तहजीब खूबसूरत तरक्के से दिखती हैं। उनके हिन्दू और मुस्लिम पात्र एक दूसरे से रचे बसे दिखायी देते है।  उन्होंने छात्र –छात्राओं को प्रेमचंद के दो लेख साहित्य का उद्देश्य और महाजनी सभ्यता जरूर पढ़ने के सुझाव देते हुए कहा प्रेमचंद ने गोरखपुर में 13 वर्ष की उम्र में अपनी पहली रचना करते हुए ही समझ लिया था कि साहित्य प्रतिरोध के लिए है। उन्हें शब्द की ताकत पर बहुत भरोसा था।

नेपाल उर्दू अकादमी के चेयरमैन डा. साकिब हारूनी ने कहा कि मुंशी प्रेमचंद व फिराक गोरखपुरी ने गोरखपुर की तारीख में चार चांद लगाया। नेपाल के खदीजतुल कुब्रा गल्र्स स्कूल के डायरेक्टर मौलना जाहिद आजाद ने कहा कि प्रेमचंद की व्यक्तित्व उर्दू दुनिया के लिए भुलाया नहीं जा सकता। उन्होंने जिदंगी को हकीकत पंसदी से देखा, जिंदगी की तहरीरों को अपने तजुर्बा से आशनां किया और उसे अफसानों का हिस्सा बनाया। वह वाहिद ऐसे रचनाकार है जिसमें आम आदमी के दर्द को न केवल महसूस किया बल्कि अपनी कहानियों के जरिए उसका हल भी पेश किया।
वरिष्ठ चिकित्सक व प्रोग्राम के संयोजक डा. अजीज अहमद ने इससे पूर्व तमाम वक्ताओं का स्वागत करते हुए कहा कि गोरखपुर एक ऐसी सरजमीं है। जहां से फिराक, मजनूं, प्रेमंचद, रेयाज खैराबादी, शमसुर्रहमान फारूकी, मलिक जादा मंजूर अहमद, जफर गोरखपुरी जैसे नामवर शायर व अदीब पैदा हुए और पूरी दुनिया में नाम रौशन किया। उन्होंने उर्दू के हवाले से कहा कि हिंदुस्तान को आजादी तो मिली लेकिन बदकिस्मती से मुल्क तकसीम हो गया जिसकी वजह से उर्दू भाषा का बहुत नुकसान हुआ इसके कद्रदानों की कमी हो गयी।
संचालन करते हुए डा. कलीम कैसर ने  प्रेमचंद पर सेमिनार के उद्देश्य को बयान करते हुए इस बात वादा किया कि हम शहर के अदबों और शायरों पर इसी तरह प्रोग्राम करेंगे। इस दौरान अशफाक अहमद द्वारा लिखी गयी पुस्तक का विमोचन भी किया गया। अशफाक अहमद ने गोरखपुर से प्रेमचंद के रिश्ते पर एक पर्चा भी पढ़ा। धन्यवाद ज्ञापन कालेज के उर्दू विभागाध्यक्ष डा. साजिद हुसैन ने किया।
इस मौके पर कालेज के प्रिंसिपल डा. जेके लाल, शहर काजी मुफ्ती वलीउल्लाह, डा. शमसाद, डा. सुशील राय, आसिम रउफ, अब्दुल्लाह, रोशन सिद्दीकी, अशोक चौधरी, मनोज सिंह के अलावा बड़ी तादाद में छात्र-छात्राएं व शिक्षक उपस्थित रहे।

 

Related posts