चौरी चौरा विद्रोह की बरसी पर विशेष
मनोज कुमार सिंह
गोरखपुर 4 फरवरी। चौरी चौरा स्थित शहीद स्मारक पर लगे ग्रेनाइट के पत्थर पर चौरी चौरा विद्रोह के बारे में कई गलत तथ्य लिखे हुए हैं। आश्चर्य है कि इसकी तरफ किसी का ध्यान नहीं और न गलत तथ्यों को ठीक करने का प्रयास किया जा रहा है।
चौरी चौरा पहले पेंगुइन बुक्स द्वारा प्रकाशित कथाकार सुभाष कुशवाहा की किताब ‘ चौरी चौरा विद्रोह और स्वाधीनता संग्राम ’ में इस ओर इशारा किया गया है। इस पर लगे ग्रेनाइट के पत्थर पर लिख गया है कि ‘ महात्मा गांधी ने अहिंसक राष्ट्रक्रान्ति का शंखनाद किया था और सन 1920 में बाले मियां के मैदान में विशाल जनसमूह को सम्बोधित करते हुए ……। जबकि सच यह है कि गांधी जी की गोरखपुर में सभा आठ फरवरी 1921 को हुई थी।
इसी तरह एक स्थान पर लिखा गया है कि उस दिन एकत्रित लगभग 400 स्वंय सेवकों को अलग-अलग जत्थे में बांटा गया। लोगों ने ब्रह्मपुर में स्थापित कांग्रेस कार्यालय से चौरी चौरा की ओर प्रस्थान किया। सुभाष कुशवाहा की किताब में ऐतिहासिक दस्तावेजों के हवाले से लिखा गया है कि स्वंयसेवकों का जुलूस डुमरी खुर्द गांव से चला था।
यह किताब चौरी चौरा विद्रोह के बारे में कई नए तथ्यों से भी परिचित कराती है। अब तक सरकारी और गैरसरकारी स्रोतों से यही जानकारी थी कि चौरी चौरा विद्रोह के 19 क्रांतिकारियों को दो जुलाई 1923 को फांसी हुई थी जबकि जिला एवं सत्र न्यायालय गोरखपुर के अभिलेखागार के रिकार्ड के मुताबिक विद्रोहियों को दो जुलाई 1923 से 11 जुलाई 1923 तक बाराबंकी, अलीगढ़, मेरठ, जौनपुर, गाजीपुर, रायबरेली, बरेली, आगरा, फतेहगढ़, कानपुर, उन्नाव, प्रतापगढ़, झांसी, इटावा आदि जेलों में फांसी दी गई थी।
चौरी चौरा थाना परिसर में स्थापित शहीद स्मारक में मृत सिपाहियों में रघुवीर सिंह का नाम अंकित है जबकि वह 4 फरवरी 1922 को थाने में आग लगाए जाने की घटना में वह मारा नहीं गया था बल्कि उसने 22 सितम्बर 1922 को सेशन कोर्ट में गवाही दर्ज करायी थी।