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अंतर्राष्ट्रीय बाल श्रम उन्मूलन दिवस पर पूर्व संध्या पर संवाद का आयोजन किया गया

मानव सेवा संस्थान के इस आयोजन में शामिल हुये मीडियाकर्मी

गोरखपुर।
मानव सेवा संस्थान सेवा गोरखपुर उत्तर प्रदेश ने अंतर्राष्ट्रीय बाल श्रम उन्मूलन दिवस की पूर्व संध्या पर बाल श्रम उन्मूलन में मीडिया की भूमिका पर एक दिवसीय संवाद का आयोजन  किया। जिसमें मुख्य रूप से प्रोफ़ेसर डॉक्टर हर्ष कुमार सिन्हा, डॉ ओमकार नाथ तिवारी, अशोक चौधरी एवं मीडिया जगत के विभिन्न प्रतिनिधि उपस्थित रहे। कार्यक्रम के प्रारंभ में उद्देश्यों पर चर्चा मानव सेवा संस्थान के निदेशक राजेश मणि ने किया।
उन्होने बताया राष्ट्रीय बाल अधिकार संरक्षण आयोग द्वारा 12 से 20 जून तक बाल श्रम उन्मूलन सप्ताह में देश के विभिन्न राज्यों में अभियान चलाने का निर्देश दिया गया है। जिसमे उत्तर प्रदेश के 10 जिलों को चिन्हित किया गया है गोरखपुर भी 10 जिलों में शामिल है।
निदेशक ने आगे बताया कि मुख्य रुप से बिहार, उत्तर प्रदेश, राजस्थान, मध्य प्रदेश और महाराष्ट्र में देश के कुल बाल श्रमिक आबादी के आधे से अधिक बाल श्रमिक मौजूद है। उत्तर प्रदेश में बाल श्रमिकों की संख्या सबसे अधिक है, भारत के 20% से अधिक बाल श्रमिक अकेले इस राज्य के निवासी हैं। (सेव द चिल्ड्रन, 2016) इनमें से अधिकतर बाल मजदूर रेशम उद्योग में कार्यरत हैं जो इस क्षेत्र में प्रचलित है। नवीनतम वैश्विक अनुमानों से संकेत मिलता है कि 160 मिलियन बच्चे – 63 मिलियन लड़कियां और 97 मिलियन लड़के 2020 की आरम्भ में विश्व स्तर पर बाल श्रम में थे, दुनिया भर में सभी बच्चों में से लगभग 1 में से 160 मिलियन बच्चे बाल श्रम में लगे हुए हैं; उनमें से 79 मिलियन खतरनाक काम कर रहे हैं अंतर्राष्ट्रीय श्रम संगठन (ILO) और यूनिसेफ की एक रिपोर्ट में चेतावनी दी गई है कि महामारी के परिणामस्वरूप, वैश्विक स्तर पर 2022 के अंत तक 9 मिलियन अतिरिक्त बच्चों को बाल श्रम में धकेलने का खतरा है।
कार्यक्रम को सम्बोधित करते हुए डॉक्टर ओमकार नाथ तिवारी ने अपने विचार रखते हुए कहा कि बाल श्रम उन्मूलन की जिम्मेदारी समाज के हर हिस्से की है। सरकारी गैर सरकारी समाज के हर व्यक्ति के योगदान से ही बाल श्रम को समाप्त किया जा सकता है। उन्होंने यह भी कहा कि बाल श्रम के पीछे के कारणों का मूल्यांकन और समीक्षा आवश्यक है सिर्फ कानून की बातें और नियम से इसकी रोकथाम एकमात्र उपाय नहीं है। उन्होंने यह भी कहा कि मीडिया और संबंधित सरकार की इकाइयों को इस विषय को प्राथमिकता में लेने एवं ज्यादा से ज्यादा प्रकाशित करके जनता के बीच में जागरूक करने की आवश्यकता है क्योंकि मीडिया लोकतंत्र का चौथा स्तंभ है और इनकी लेखनी और प्रचार प्रसार से इस समस्या के बारे में पर्याप्त  जागरूकता लायी जा सकती है। उन्होंने कहा कि आज भी लोग मीडिया पर भरोसा करते हैं और उनके द्वारा लिखे खबरों को अपने और समाज के बीच में विषयों को समझने के लिए उपयोग में लाते हैं।
कार्यक्रम को सम्बोधित करते हुए प्रोफ़ेसर हर्ष ने कहा कि बदलते हुए जमाने में जहां आर्थिक समृद्धि के लिए समाज का हर एक व्यक्ति अपने अपने प्रयासों में व्यस्त है उस दौर में बाल श्रम की परिभाषा और उसके पीछे जुड़े हुए सामाजिक कारकों को समझने व उसका अध्यन एवं आकलन भी उतना ही महत्व रखती हैं। उन्होंने कहा कि समाज एवं समुदायों को खुद भी हो रही कुरीतियां जैसे कि बाल श्रम का समाधान निकलना होगा। उन्होंने मीडिया की भूमिका को महत्वपूर्ण बताते हुए कहा कि पत्रकारिता की ताकत व क्षमता को ऐसे संवेदनशील मुद्दों से सम्बंधित लेखन एवं प्रकाशन स्वतंत्र रूप से करना चाहिए। उन्होंने इस बात पर ज़ोर दिया की आवश्यकता इस बात की है कि हम बिना किसी पर दोषरोपण किये अपनी भूमिका का निर्वहन समाज की बेहतरी के लिए करें। उन्होंने कहा आज आवश्यकता इस बात की है की ऐसा एक प्लेटफॉर्म तैयार किया जाये जहाँ लोग अपने विचार और सुझाव से इस विषय को हमेशा जीवंत रखे।
कार्यक्रम में संस्थान के प्रोग्राम मैनेजर रोहन सेन, मो शमून, चंद्रशेखर सिंह उपस्थित रहे।