अमित कुमार के विज्ञान कथा संग्रह ‘ एक सुलझा हुआ रहस्य ’ का लोकार्पण

गोरखपुर। उत्तर प्रदेश हिंदी संस्थान, लखनऊ द्वारा प्रकाशित साहित्यकार अमित कुमार के विज्ञान कथा संग्रह ‘ एक सुलझा हुआ रहस्य ’ का लोकार्पण  ‘नागंलिया शिक्षा एवं स्वास्थ्य संगठन (नेहा)’ के तत्वावधान में रायल दरबार गोरखपुर में आयोजित किया गया। इस मौके पर वक्ताओं ने अमित कुमार की कहानियों पर विस्तार से चर्चा की।

कार्यक्रम के संचालक शैलेश शुक्ल ने अपने वक्तव्य में कहा अमित कुमार की विविध विषयों पर 10 पुस्तकें प्रकाशित हो चुकी हैं। यह उनकी 11वीं पुस्तक तथा दूसरा विज्ञान कथा संग्रह है। उनके इस विज्ञान कथा संग्रह में शामिल की गयी कहानियां- ‘एक सुलझा हुआ रहस्य’, ‘डर’, ‘प्रत्याशा’, ‘अन्तर्दृष्टि’, ‘पुनर्मिलन’ ‘बदलता क्षितिज’, ‘सब कुछ ठीक-ठाक है’, ‘अप्रत्याशित’, ‘वायरस’, ‘रक्ताभ होता आसमान’ और ‘वीरान धरती के वारिस’ शामिल की गयी है। उनकी कहानियों में पाठकों को बांध लेने की क्षमता है। उनकी किस्सागोई ऐसी है कि पाठक अंत तक उस कहानी के पात्रों से जुड़े रहने के लिए मजबूर हो जाता है। उनकी कहानियां सीधे समय से मुठभेड़ करती है। कहानी ‘डर’ मनोविज्ञान पर केंद्रित है। उसे पढ़कर मुझे इलाचंद्र जोशी की कहानी ‘ऋतुचक्र’ याद आ जाती है।  ‘अंतर्दृष्टि’ कहानी एक दुर्घटना में आंख खो देने वाले व्यक्ति पर केंद्रित है, जो अपनी आंखें खो देता है। डाक्टर उसका इलाज करने से साफ इंकार कर देता है। लेकिन उसके लिए संभावनायें खत्म नहीं होती- उसका शरीर एक वैकल्पिक रास्ता तैयार करता है, जो आँख की कमी पूरी करता है। यह कहानी हमें साइंस की अलग दुनिया से परिचय कराती है। ‘बदलता क्षितिज’ जेनेटिक चिकित्सा और उसके हस्तक्षेप के विषय पर केंद्रित हैं।  ‘पुनर्मिलन’ कहानी हमें टाइम मशीन द्वारा भविष्य के 1000 साल पहले ले जाती है। वह मशीन प्रकाश वर्ष की गति से बढ़ता है। इस गति में समय रूक जाता है। पात्र जब वापस आता है तो कई पीढ़ियां बीत चुकी होती है। वह देखता है कि लोगों ने ने सुनने की क्षमता खो दी है। इस बदलाव को देखकर पात्र दुखी होता है और वर्तमान में सही दिशा में सामाजिक बदलाव के लिए पाठक प्रेरित होता है।

बतौर विशिष्ट अतिथि डाॅ. अलख निरंजन ने अपने वक्तव्य में कहा कि अमित कुमार विज्ञान कथा साहित्यकार ही नहीं हैं बल्कि उन्होंने बाल साहित्य, सामाजिक, राजनीतिक एवं साहित्यिक कहानियां भी लिखी हैं। वे बहुमुखी प्रतिभा के धनी हैं। उनकी अब तक 11 साहित्यिक कृतियां प्रकाशित हो चुकी हैं। विज्ञान कथा लेखन बहुत पुरानी विधा नहीं है। सही मायने में देखा जाए तो औद्योगिक क्रांति के बाद ऐसी कहानियों का लिखना प्रारंभ हो गया था और यहीं से सामाजिक एवं राजनीतिक कहानियों के लिखने की शुरुआत होती है। कोई भी पाठक इन कहानियों से बड़ी आसानी से जुड़ जाता है। संग्रह की एक कहानी ‘वायरस’ का जिक्र करते हुए उन्होंने कहा कि हमें कोरोना वायरस के पैदा होने के अब तक दिये गये तीनों सिद्धांत यथा प्रयोगशाला में वायरस निर्माण, दुर्घटनावश कोरोना वायरस का पैदा होना एवं हमारे पारिस्थितिकी तंत्र में बहुत पहले से इसके होने की बात को बहुत रोमांचक एवं गंभीर तरीके से उठाया है। जबकि कोरोना वायरस के प्रकृति में बहुत पहले से होने का सिद्धांत अभी हाल-फिलहाल आया है और यह बात स्पष्ट है कि अमित कुमार ने वायरस कहानी एक वर्ष पूर्व लिखी थी। एक विज्ञान कथाकार की यही दृष्टि होती है कि वह अपने समय से आगे भी देख पाता है। अमित कुमार की कहानियां हमें आज के अपने समय और आने वाले समय की दुश्वारियों से अवगत कराती है।

बतौर मुख्य अतिथि गोरखपुर जोन के ए.डी.जी. अखिल कुमार जी ने कहा कि जब मैंने अमित कुमार की कहानी ‘एक सुलझा हुआ रहस्य’ जो बैंक डकैती पर केंद्रित है, पढ़ी, तो उसे पढ़ता चला गया। कहानी लेखन ऐसा रचनात्मक कौशल है जो सबको आसानी से नहीं आ सकती। हालांकि मैं इंजीनियरिंग का छात्र रहा हूं। मैंने आर्ट को गहराई से बहुत बाद में समझा है। यह बहुत कठिन कार्य है। मैं भी अपने पुलिस महकमे के अनुभव पर किताब लिखने के बारे में सोच रहा हूँ, ऐसा सोचते हुए उधेड़-बुन में अब तक 11 साल गुजर गये। आगे उन्होंने बताया कि मैंने जब लोगों के रुचियों के बारे में जानने की कोशिश की तो मैंने पाया कि लोग ज्यादातर क्राइम पेट्रोल एवं सीआईडी जैसे कार्यक्रम देखना पसंद करते हैं। यह कार्य भी कुशल लेखन की मांग करता है। मैं चाहता हूं कि इस क्षेत्र में घटित होने वाली बड़ी घटना और पुलिस द्वारा उसके खुलासे पर भी कोई स्टोरी लिखी जानी चाहिए और मैं श्री अमित कुमार को इस तरह के लेखन के लिए अनुरोध करता हूं कि वे इस दिशा में भी हमारे साथ मिलकर काम करें तथा उस पर वीडियो या क्लिप बनाना हो तो मैं आपकी जरूर मदद करूंगा।

विशिष्ट अतिथि वेद प्रकाश पाण्डेय ने वक्तव्य में कहा कि साहित्य की दो विधाओं विज्ञान कथा एवं बाल साहित्य लिखना बहुत ही कठिन कार्य हैं। यह गोरखपुर की उपलब्धि है कि हमारे पास इकलौते विज्ञान कथाकार अमित कुमार जी के रूप में उपस्थित हैं। मैंने इस जानकारी के लिए गूगल भी सर्च किया था। अमित जी की संग्रह की एक कहानी ‘अंतर्दृष्टि’ का जिक्र करते हुए कहा कि एक कथा लेखक की बारीक दृष्टि का यह अच्छा उदाहरण प्रस्तुत करती है। कथाकार ने दुनिया की तमाम आधुनिक चिकित्सा सुविधाओं को धत्ता बताते हुए इलाज के लिए पश्चिमी देशों का पूरब की ओर यात्रा सुखद एहसास कराता है। इस कहानी में हमें राष्ट्रीय प्रेम एवं बौद्ध संस्कृति की याद दिलाती है।

चिकित्सक एवं समाजसेवी डाॅ. महेंद्र अग्रवाल ने कहा कि आज प्रेमचंद जी की जयंती के अवसर पर वरिष्ठ कथाकार प्रो. रामदेव शुक्ल की अध्यक्षता में एक मझे हुए कथाकार के पुस्तक का लोकार्पण गोरखपुर के महान साहित्यिक विरासत और उर्वरता को प्रमाणित करता है।

प्रो रामदेव शुक्ल ने अपने वक्तव्य में कहा कि दुनिया में कई ऐसे कथाकार हुए हैं जिन्होंने विज्ञान कथायें लिखी हैं- जैसे एच.जी.वेल्स आदि। उन्होंने औद्योगिक क्रांति से लेकर साम्यवाद तक के विज्ञान कथाओं का जिक्र किया। ‘एनिमल फार्म’ मार्क्सवाद की आलोचना में लिखी गयी कथा है। ‘1984’ कहानी का भी जिक्र उन्होंने किया। यह उपन्यास सबको को अवश्य पढ़ना चाहिए। विज्ञान कथा का मतलब विजन से है। पूरी दुनिया को यह समझना चाहिए कि जो सर्वाइवल का तरीका है वह यह है कि हम बिना इको-सिस्टम के बिना नहीं रह सकते हैं। इको-सिस्टम में हमारे आस-पास का जो परिवेश है उसमें असंख्य छोटे-बड़े जीव, पादप और वनस्पतियां भी आती हैं। सब एक दूसरे से किसी न किसी रूप में जुड़े हैं। अमित कुमार की कहानियां इस ओर इशारा करती हैं और बहुत गंभीर तरीके से इस पर सोचने को विवश करती हैं, लेकिन बड़ाई तो इस बात की कि इतने गंभीर विषयों को कहानी के माध्यम से प्रस्तुत की गयी है। हमारे मनीषियों ने भी इस बात को कहा है कि हमारा जो जीवन है वह अकेले उसका जीवन नहीं है बल्कि इसमें सारी सृष्टि उत्तरदायी है। यह इतना सूक्ष्म और आपस में इतना गुंथा हुआ है कि इसकी सहज कल्पना नहीं की जा सकती है, तभी भारतीय साहित्य और वाड्मय में इस पूरी श्रृंखला और इसके सचेतन पर बात होती है। अमित कुमार अपनी कहानियों के माध्यम से उन सभी बातों और दर्शन को आधुनिक तरीके से बांच रहे हैं।

श्रवण कुमार निराला ने अमित कुमार कुमार की कहानियों के सामाजिक संदर्भों का जिक्र करते हुए कहा कि ये हमें अपने परिवेश को ठीक से समझने की दृष्टि देती हैं।
सूरज कुमार भारती ने कार्यक्रम में उपस्थित सदस्यों को आभार ज्ञापन किया। कार्यक्रम में बृजेश्वर निषाद, हरि शरण गौतम, ध्रुव प्रसाद बौद्ध, रवींद्र मोहन त्रिपाठी, वेद प्रकाश, आज्ञा प्रसाद द्विवेदी, अनामिका, सीमा गौतम, प्रमोद श्रीवास्तव, पवन कुमार, डॉ. राकेश भारती आदि उपस्थित थे।