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क्या बीआरडी मेडिकल कालेज में इंसेफेलाइटिस रोगियों की वास्तविक संख्या छुपाई गई ?

गोरखपुर. बीआरडी मेडिकल कालेज गोरखपुर में एईएस/जेई (एक्यूट इंसेफेलाइटिस सिंड्रोम/ जापानी इंसेफेलाइटिस ) मरीजों की संख्या में कमी सरकार द्वारा किए गए प्रयासों से आई है या आंकड़ों में फेरबदल से. ये सवाल पिछले दो वर्षों से प्रमुखता से उठता रहा है. अभी हाल में बीआरडी मेडिकल कालेज में एएफआई (एक्यूट फीब्रराइल इलनेस ) मरीजों से सम्बन्धित आंकडें मिलने के बाद इस आशंका को बल मिल रहा है कि इंसेफेलाइटिस रोगियों की वास्तविक संख्या को छुपाने का काम किया जा रहा है.

बीआरडी मेडिकल कालेज में एएफआई मरीजों में 13 फीसदी से अधिक जापानी इंसेफेलाइटिस के केस मिले हैं. यह संख्या एईएस में पाए गए मरीजों की संख्या से भी अधिक है.

एएफआई मरीजों में जेई के केस मिलना इस बात का सबूत है कि इंसेफेलाइटिस रोगियों की वास्तविक संख्या छुपाई जा रही है और इसी बिना पर इंसेफेलाइटिस के लगभग खत्म होने के दावे किए जा रहे हैं.

कुछ माह पहले योगी सरकार ने एईएस/जेई के रोगियों की संख्या में 35 फीसदी और मौतों में 65 फीसदी की कमी आने का दावा किया था. अफसरों द्वारा गोरखपुर मंडल में दो वर्ष में एईएस/जेई के केस और मौतों में 60 फीसदी से अधिक कमी आने का दावा किया गया था.

इन दावों को हमेशा संदेह की नजरों से देखा गया लेकिन कोई पुष्ट प्रमाण नहीं मिल पा रहे थे. यह भी पता चला था कि वर्ष 2018 से एईएस/जेई के साथ-साथ एक अन्य बीमारी एएफआई (एक्यूट फीब्रराइल इलनेस) के तहत भी मरीजों को भर्ती किया जा रहा है. इसमें अधिकतर बच्चे हैं और उनके लक्षण इंसेफेलाइटिस से मिलते-जुलते है फिर भी उन्हें एईएस नम्बर न देकर एएफआई में भर्ती कर लिया जा रहा है. इससे आंकड़ों में इंसेफेलाइटिस के केस में कमी दिख रही है.

यहां यह भी बताना जरूरी है कि एक्यूट फीब्रराइल इलनेस का नाम 2018 से पहले बीआरडी मेडिक्ल कालेज में नहीं सुना गया था. यहां के चिकित्सकों या जिम्मेदार लोगों ने कभी भी इस मेडिकल टर्म का इस्तेमाल नहीं किया.

जबसे बीआरडी मेडिकल कालेज में एईएस के साथ-साथ एएफआई में मरीजों का वर्गीकरण शुरू हुआ इंसेफेलाइटिस के केस में नाटकीय कमी देखने को मिलने लगी है.

BRD Medical College

 

एईएस /जेई में मरीज में बुखार के साथ-साथ बेहोशी, झटका, विक्षिप्तता के लक्षण देखे जाते हैं जबकि एएफआई में मरीज को 37.5 डिग्री सेल्सियस से अधिक बुखार रहता है. बुखार 2-14 दिन तक का हो सकता है. इसके साथ ही मरीज को सिरदर्द, चक्कर, ठंड लगने, मांसपेशियों और जोड़ों में दर्द व कमजोरी की शिकायत हो सकती है. एएफआई के कारको में मलेरिया, स्क्रब टाइफस, डेंगू, चिकनगुनिया प्रमुख हैं. एएफआई के मरीजों में झटका, बेहोशी या विक्षिप्तता के लक्षण नहीं होते हैं जो उसे एईएस/जेई से अलग करते हैं.

बीआरडी मेडिकल कालेज से मिले दस्तावेजों से पता चलता है कि इस वर्ष जनवरी से अब तक एईएस के 492 केस रिपोर्ट हुए जिसमें जेई पाजिटिव 116 थे. इसके अलावा इसी अवधि में एएफआई के 1563 केस रिपोर्ट हुए जिसमें जेई पाजिटिव 215 पाए गए हैं.

बीआरडी मेडिकल कालेज परिसर में स्थित रीजनल मेडिकल रिसर्च सेंटर (आरएमआरसी ) ने अक्टूबर महीने के सात और नौ तारीखों में 29 एएफआई मरीजों के नमूनों का परीक्षण किया तो इनमें पांच जेई पाजिटिव मिले. इनमें 11 स्क्रब टाइफस के भी मरीज मिले. इसी तरह अगस्त 2019 में एएफआई के 114 मरीजों के नमूनों के परीक्षण में 21 जेई पाजिटिव और 56 स्क्रब टाइफस मिले. इन सभी 143 मरीजों में 92 यानि 64 फीसदी 15 वर्ष से कम उम्र के बच्चे हैं .

बीआरडी मेडिकल कालेज के विश्वसनीय सूत्रों से मिली जानकारी के अनुसार इस वर्ष 11 महीनों में एएफआई के 1563 केस में जेई के 215 (13.7 % ) मरीज मिले हैं. इसके अलावा स्क्रब टाइफस के 350 (22.37 %) , डेंगू के 50 (3.14 %) और चिकनगुनिया के 100 (6.39 %) से अधिक केस पाए गए हैं.

वर्ष 2011-12 में पांच राज्यों-असोम, बिहार, छत्तीसगढ़, महाराष्ट्र , आन्ध्र प्रदेश, तमिलनाडू में एएफआई के 1564 मरीजों पर किए गए रिसर्च से पता चला कि इसमें 17 फीसदी मलेरिया, 16 फीसदी डेंगू, 10 फीसदी स्क्रब टाइफस और 6 फीसदी चिकनगुनिया के थे.

अब तक हुए शोधों में एएफआई मरीजों के परीक्षण में जेई पाजिटिव बहुत कम पाए जाते हैं लेकिन बीआरडी मेडिकल कालेज में एएफआई मरीजों में 13 फीसदी से अधिक जेई पाजिटिव पाया जाना गंभीर सवाल खड़ा कर रहा है.

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