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महिला महाविद्यालय के शिक्षक को 17 महीने से वेतन नहीं दिया, वेतन मांगने पर कहा मत आइए महाविद्यालय

शिकायत पर विश्वविद्यालय द्वारा बनायी गयी कमेटी ने शुरू की सुनवाई

गोरखपुर। सरकार के आदेश के बावजूद तमाम महाविद्यालय, कालेज अपने शिक्षकों को कारोना समय का वेतन नहीं दे रहे हैं। इसी तरह का एक मामला गोरखपुर विश्वविद्यालय से सम्बद्ध देवरिया जिले के शमसु्दीन अंसारी महिला महाविद्यालय अबूबकरनगर के प्रबंध तंत्र ने 17 महीने से प्राचीन इतिहास के प्रवक्ता डाॅ हरेराम पाठक को वेतन ही नहीं दिया है। यही नहीं वेतन से कटौती के बावजूद भविष्य निधि अंश भी जमा नहीं किया गया है और इसके बारे में महाविद्यालय संतोषजनक जवाब नहीं दे रहा है।

डा हरेराम पाठक द्वारा इसकी शिकाायत राज्यपाल सचिवालय से की गई थी जिस पर राज्यपाल सचिवालय ने गोरखपुर विश्वविद्यालय से रिपोर्ट मांगी है। कुलपति के निर्देश पर डा. पाठक सहित चार अन्य महाविद्यालयों के बारे में की गई शिकायत के लिए तीन सदस्यीय कमेटी बनायी गयी है। कमेटी ने गुरूवार को डा. हरेराम पाठक और शमसु्दीन अंसारी महिला महाविद्यालय के प्रबंधक से उनका पक्ष जाना।

डा. पाठक ने बताया कि वे वर्ष 2007 से महाविद्यालय में बीए की कक्षाओं में प्राचीन इतिहास पढ़ा रहे हैं। वे गोरखपुर विश्वविद्यालय द्वारा अनुमोदित शिक्षक है। महाविद्यालय ने उन्हें कभी निर्धारित न्यूनतम वेतन नहीं दिया। नियम विरूद्ध तरीके से वर्ष 2009 से 2014 तक उनके वेतन का भुगतान खाते में करने के बजाय नगद किया गया। इस दौरान उन्हें सिर्फ दो हजार रूपए वेतन दिया गया जबकि न्यूनतम वेतन आठ हजार रूपए निर्धारित था।

जब उन्होंने पूरा वेतन भुगतान की मांग की तो जनवरी 2015 में उनका खाता खोला गया और उसमें वेतन दिया जाने लगा। लेकिन तब भी उन्हें निर्धारित न्यूनतम वेतन नहीं दिया गया। उन्हें फरवरी 2020 तक सिर्फ 8700 रूपए वेतन ही दिया गया जबकि न्यूनतम वेतन 15000 निर्धारित है।

उन्होंने बताया कि सितम्बर 2018 मंे दो हजार और अक्टूबर 2018 से 1500 यानि कुल 3500 रूपए की अनधिकृत कटौती की गई। अब तक उन्होंने 81 महीने तक शिक्षण कार्य किया है लेकिन उन्हें 64 माह का ही वेतन दिया गया।

डाॅ. हरेराम पाठक ने बताया कि मार्च 2020 से अब तक उन्हें वेतन नहीं दिया गया है। कोराना के दौरान जब छात्राएं कालेज नहीं आ रही थीं तब भी उन्हें कालेज बुलाकर ड्यूटी कराायी गयी। जब उन्होंने वेतन और भविष्य निधि के अंशदान के बारे में जानकारी मांगी तो प्रबंधक खफा हो गए और उन्होंने कहा कि उन्हें महाविद्यालय आने की जरूरत नहीं है। उनका बकाया वेतन भी नहीं दिया जााएगा। इसकी शिकायत उन्होंने गोरखपुर विश्वविद्यालय को की लेकिन कोई कार्यवाही नहीं हुई तो उन्होंने राज्यपाल को पत्र भेजकर न्याय की गुहार लगायी।