स्मृति

अपनी दृष्टि में बेहद तार्किक व समावेशी थे संत रैदास

संत रविदास जयंती पर परिचर्चा का आयोजन

गोरखपुर । संत रविदास छात्रावास में संत परंपरा के विद्रोही कवि संत रैदास की 645 वीं जयंती मनाई गई। इस अवसर पर सामाजिक परिवर्तन और संत रैदास का बेगमपुरा विश्व विषय पर परिचर्चा भी आयोजित की गयी। परिचर्चा में मुख्य वक्ता  हिंदी विभाग गोरखपुर विश्वविद्यालय गोरखपुर के सहायक आचार्य डॉ. राम नरेश राम ने कहा कि संत रैदास मध्यकाल के ऐसे संत हैं जिनके यहां स्त्रियों को अध्यात्म के रास्ते में बाधा की तरह नहीं देखा गया। वे अपनी दृष्टि में बेहद तार्किक और अधिक समावेशी थे। हाशिये के नायकों को उनकी मूल छवि को अपने अपने हित में विकृत करके चित्रित करने की कोशिश की जाती रही है। इससे उनके मूल वैचारिक ताप से हमारी पीढ़ी परिचित नहीं हो पाती है। इसलिए हमें इतिहास को बेहद सचेत ढंग से पढ़ने का प्रयास करना चाहिए। यह काम संत रैदास के मामले में भी किया जा रहा है। रैदास के बारे में कहा जाता है कि उन्होंने अपने जाति पर ज्यादा जोर दिया, यह सच नहीं है, क्योंकि जो जातिवाद को मनुष्यता के रास्ते का सबसे बड़ा अवरोध मानता हो वह जाति की पहचान पर जोर देकर अपने उत्पीड़न को क्यों आमंत्रित करेगा? दरसल जातिगत पहचान पर उनका जोर हीनताबोध से मुक्ति का एक माध्यम भर था।

कार्यक्रम की अध्यक्षता करते हुए वरिष्ठ पत्रकार और जसम गोरखपुर के अध्यक्ष अशोक चौधरी ने कहा कि अगर आज की परिस्थितियों को ध्यान में रखकर देखें तो तुलसी के रामराज्य की तुलना में रैदास की बेगमपुरा की अवधारणा ज्यादा मानवीय है। उसमें को कोई टैक्स नहीं देना होगा, सबको अन्न मिलेगा। उसमें किसी शंबूक की हत्या नहीं होगी।  बेगमपुरा रैदास का एक सपना था। जिसे हकीकत में बदला जाना बाकी है। जब तक हम सपना नही देखेंगे तब तक हकीकत को यथार्थ में नहीं बदल पाएंगे। संत रैदास के प्रभाव का ही यह उदाहरण है कि उनकी 41 रचनाएं गुरु ग्रंथसाहिब में संकलित हैं।
डॉ. सुनीता कुमारी ने कहा कि कहा जाता है कि रैदास कर्म में विश्वास करते थे। सरकार सबका साथ सबका विकास का नारा तो दे रही है लेकिन हकीकत यह है कि हमारे नौजवानों के पास काम नहीं है। 30 करोड़ लोगों के पास अपनी खुद की जमीन नहीं है। सफाई के काम को आध्यत्मिक काम कहा गया वह हम दलित जातियों के लिए अनिवार्य काम बताया गया। जबकि यह अमानवीय काम है, यही किसी के लिए भी गरिमायुक्त काम नहीं है। रैदास के महत्त्व को रेखांकित करते हुए गेल ओम्वेट ने कहा है कि 14 शताब्दी के ऐसे पहले संत थे जिनके पास राज्य का एक मॉडल था जिसकी अवधारणा बेगमपुरा में व्यक्त हुई है। हमे अपने लिए पढ़ना है। अपनी अपनी बहनों को भी इसके लिए प्रेरित करना है।
शोधार्थी शियम यादव ने कहा कि याद उनकी को किया जाता है जिन्होंने अपनी लेखनी के साथ साथ सामाजिक बदलाव के लिए प्रयास किया। इस मामले में रैदास अन्य संतों से अलग हैं। भारत मे जाति प्रथा का दंश सदियों से रहा है। रैदास ने इसका विरोध किया। वे कर्म को प्रधान मानते थे।


शोधार्थी रिंकी प्रजापति ने कहा कि रविदास कबीर के गुरुभाई माने जाते हैं। मीराबाई ने रैदास को अपना गुरु माना। रैदास का प्रभाव इतना था कि उन्होंने तत्कालीन शासक वर्ग से कहा कि अगर भारत मे शासन करना है तो सभी धर्मों के प्रति समान व्यवहार करना होगा। वे यह मानते थे कि यदि सभी मानव एक ही रक्त और मांस से बने हुए हैं तो फिर जाति बंटवारा क्यों है? हमारे देश की छवि हमारे इन्हीं महापुरुषों बुद्ध कबीर और रैदास जैसे के कारण ही है।
शोधार्थी पवन कुमार ने कहा कि 14वी शदी में जन्म लेने वाले रैदास के समता भाईचारा को दुनिया स्वीकार कर रही है। कबीर और रैदास समकालीन थे। दोनों श्रमण संस्कृति पर विश्वास करते थे। रैदास के बेगमपुरा की अवधारणा में राजा रानी के पेट से न पैदा होकर आम नागरिक राजा बन सकता था, ऐसे राज की कल्पना की गई है। कार्ल मार्क्स ने जिस समानता की बात उनीसवीं सदी में कही थी उसको बहुत पहले 14वीं सदी में ही रैदास ने कह दिया था। साहू जी महाराज, बाबा साहब डॉ आंबेडकर और ललई यादव ने वहीं से प्रेरणा लिया।
सुधीराम रावत ने कहा कि संत रैदास ने समतामूलक समाज का सपना देखा था। छात्रावास के अन्तःवासी बैजनाथ ने कहा कि आज का दौर खतरनाक स्थिति में जा रहा है । बाबा साहब से पहले रैदास ने एक राज्य की परिकल्पना कर ली थी। बापू छात्रावास के अरविंद कुमार ने कहा कि रविदास कर्मों पर विश्वास करते थे उन्होंने भाई चारे पर जोर दिया।
अमित सिंघानिया ने कहा कि कर्म ही की हमारे जीवन मे महानता है। संविधान की वजह से हम इस छात्रावास में रह रहे हैं। आज के संत जातीय उन्माद भड़काने का काम करते हैं जबकि रैदास तो साम्प्रदायिक सद्भाव और एकता की बात करते हैं।वरिष्ठ छात्र सोमनाथ भारती ने कहा कि संत रैदास का जन्म वाराणसी में हुआ था। छात्रावास के अंतःवासी राहुल ने कहा कि रविदास जी कर्म को ही पूजा मानते थे। इनकी कोई जाति नहीं थी। इनका कर्म ही इनकी जाति और धर्म था।
अरविंद कुमार ने कहा कि समाज में जब जब बुराई पैदा हुई है तब तब हमारे महापुरुषों ने जन्म लिया है और सामाजिक क्रांति किया है।
छात्रावास के आकाश कुमार, सुमित कुमार समेत तमाम लोगों ने कार्यक्रम में अपने विचार प्रकट किए। कार्यक्रम का संचालन नितेश कुमार और स्वागत वक्तव्य जितेंद्र कुमार ने दिया। सत्यम कुमार राहुल कुमार प्रमोद कुमार अनूप कुमार सोनू कुमार अभिषेक कुमार सिंह जितेंद्र कुमार शैलेश कुमार मनीष कुमार सौरभ कुमार राव राधे श्याम कुमार अनिकेत कुमार अमन भारती आदित्य कुमार सुरेंद्र कुमार श्याम जीत अभिषेक राव विशाल कुमार जय सिंह अंकित कुमार विकास कुमार ध्रुव आर्य प्रवीण कुमार अभय सेन आशीष कुमार वकील कुमार मनीष कुमार राजवीर अभिजीत विकास राणा तेज प्रताप मनीष कुमार शिवाजी कमलेश कुमार अभिषेक कुमार शिवकुमार धनंजय रोहित उपेंद्र शैलेश विजय नरेंद्र कुमार विकास अविनाश अभिषेक अमन सेन शशि प्रकाश अंशु कुमार अरविंद कुमार दीपक कनौजिया प्रवीण कुमार निराला आशीष भास्कर मनीष कुमार अमरजीत कुमार विक्रम चंद्र अंकित कुमार सुजीत कुमार राव नरेंद्र कुमार पंकज कुमार दीपक कुमार राज कुमार साहिल कुमार भारती आकाश सुरेंद्र कुमार बैजनाथ अरविंद जितेंद्र कुमार सोमनाथ भारती आदित्य देव अमित सिंघानिया कमलेश कुमार रंजन रजत कुमार सुनील सक्सैना रूपेश कुमार विपिन कुमार और आकाश तथा मनीषा आदि इस कार्यक्रम में शामिल रहे।