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साहित्य - संस्कृति

देवेन्द्र आर्य की दो कविताएं : ‘ भेड़िए अब खेतों में नहीं छिपा करते ’

(1)  हांका हांका लगता रहा सारी-सारी रात जागते रहे लोग भेड़िया आया भेड़िया आया भेड़िया नहीं आया निराश हुई नयी पीढ़ी पहली बार देखती भेड़िए...