गोरखपुर, 31 अक्टूबर। उप्र सरकार मदरसों के पाठ्यक्रम को आधुनिक बनाने के लिए उसमें बदलाव करने जा रही है। सरकार ने राज्य के सभी मदरसों के पाठ्यक्रम में राष्ट्रीय शैक्षिक अनुसंधान परिषद (एनसीईआरटी) की पुस्तकें लागू करने का फैसला किया है। यहां अब मजहबी किताबों के साथ-साथ एनसीईआरटी की किताबें भी पढ़ाई जाएंगी।
शहर के मुस्लिम बुद्धिजीवियों की सरकार के इस फैसले पर कहना है कि एनसीईआरटी की किताबें पढ़ाने से किसी को एतराज नहीं है लेकिन पाठ्यक्रम लागू करने के साथ-साथ मदरसों में जरुरी संसाधन भी मुहैया कराये सरकार तब ही बेहतर नतीजे आयेंगे। बुद्धिजीवियों ने कहा कि मदरसों के मजहबी पाठ्यक्रम के स्वरुप से कोई छेड़छाड़ न किया जाए साथ ही एनसीईआरटी की किताबों को पढ़ाने के लिए शिक्षक व फंड की भी बेहतर व्यवस्था की जाए। मदरसों के संचालकों से सलाह-मशविरा करने के बाद ही फैसला लिया जाये ताकि बेहतर परिणाम आ सकें। निष्पक्ष तरीके से अगर यह फैसला लागू होता है तो मुस्लिम समाज के बच्चों को समाज की मुख्यधारा से जुड़ने में मदद मिलेगी।
गोरखपुर विश्वविद्यालय के अंग्रेजी विभाग की अध्यक्षा प्रो. हुमा जावेद सब्जपोश ने कहा कि यह एक अच्छा कदम है। एनसीईआरटी का पाठ्यक्रम ज्यादा अपडेटड है। इसके अलावा मदरसों के मजहबी पाठ्यक्रम में कोई हस्तक्षेप न किया जाये। इस पाठ्यक्रम से अच्छे नतीजे आयेंगे, मदरसे के छात्रों को फायदा होगा। मदरसे के छात्र मौजूदा दौर की शिक्षा व्यवस्था के साथ चल सकेंगे। पाठ्यक्रम लागू करने के साथ मदरसों को जरुरी संसाधनों से सुसज्जित भी करना सरकार की अहम जिम्मेदारी है।
द सिविल आईएएस एकेडमी के चेयरमैन खैरुल बशर का कहना है कि मदरसों में सबसे ज्यादा जोर तालिबे इल्म के जेहन को सोचने अौर उसे याद रखने पर दिया जाता है ताकि बच्चे आसानी से हिफ्ज कर सके व उसके अनुवाद को आसानी से समझ सके। एनसीईआरटी की पुस्तकों को मदरसों के पाठ्यक्रम में शामिल करने से मदरसों के बच्चों को बेहतर रोजगार से जोड़ने में आसानी होगी अौर उनके टेलेंट का वाजिब हक मिलेगा। हमारा सपना पूरा होगा की हाफिजे कुरआन के दूसरे हाथ में कम्पूटर हो अौर वह दीन के साथ-साथ दुनिया की भी कयादत कर सके। हम इस फैसले का खैर मकदम करते है।
मुफ्ती अख्तर हुसैन (मुफ्ती-ए-गोरखपु) ने कहा कि नये पाठ्यक्रम से मदरसे से निकलने वाले छात्र समाज की मुख्यधारा से जुड़ जायेंगे। जाहिर में तो यह बहुत अच्छा मालूम हो रहा है लेकिन उसमें काफी दुश्वारियां है। पहली बात तो यह है कि नये पाठ्यक्रम के लिए शिक्षक चाहिए । जो नये पाठ्यक्रम के मुताबिक छात्रों को शिक्षा दे सकें। दूसरी बात इन किताबों के उर्दू में होने से आगे कुछ भला होने की उम्मीद नहीं, चूंकि यह जबान अगली तालीम के मुताबिक नहीं होगी तो जो छात्र उर्दू में इन किताबों को पढ़ेगे वह आगे कैसे शिक्षा जारी रख सकेंगे ? इसलिए नये पाठ्यक्रम की जबान पर भी सरकार गौर फिक्र करें। सरकार को जरुरी संसाधन मुहैया कराकर संजीदगी से पाठ्यक्रम लागू करना चाहिए। मदरसे के शिक्षकों को ट्रेनिंग दी जाए। वक्त से तनख्वाह मिले। साइंस व कम्पयूटर लैब के लिए भी मुकम्मल इंतजाम किया जाए। इस्लामी शिक्षा साइंस की मुखालिफ नहीं है बल्कि इस्लामी शिक्षा नई-नई खोज की प्रेरणा स्रोत है। जितने भी मशहूर मुस्लिम साइंसदा दुनिया में गुजरे है सबने मदरसों से शिक्षा हासिल की है। कुरआन व हदीस उनके प्ररेणा स्रोत रहे है।
गोरखपुर विश्वविद्यालय के उर्दू विभाग के अध्यक्ष डा. मोहम्मद रजिउर्रहमान ने सरकार के इस फैसले को तारीखी करार देते हुए कहा कि इसे बदनिगाही से न देखा जाये। एनसीईआरटी पाठ्यक्रम शामिल करने के साथ शिक्षक व फंड मुहैया कराया जाये। इस्लामी तारीख यह बताती है कि साइंस के मैदान में मुसलमानों की रहनुमाई बेपनाह रही है। मुस्लिम साइंसदानों ने दीन से हटकर कोई काम नहीं किया था। दीनी मदारिस ने साइंस, साहित्य, गणित आदि के क्षेत्र में भरपूर खिदमात अंजाम दी। सरकार के इस फैसले से बेहतर की उम्मीद रखनी चाहिए। रिपोर्ट बताती है कि 4 से 6 प्रतिशत मुस्लिम बच्चे मदरसे में पढ़ते हैं जो बेहद गरीब घर के होते है। उन्हें बेहतर तालीम मिलेगी तो समाज के साथ कदमताल करते नजर आयेंगे और समाजी खिदमात में भी बढ़-चढ़ कर हिस्सा लेंगे।
अखिल भारतीय मदरसा आधुनिकीकरण शिक्षक संघ के मंडल अध्यक्ष नवेद आलम ने कहा कि मदरसा में आधुनिक शिक्षा तो सालों से चलीं आ रही है। नये पाठ्यक्रम का स्वागत है। वहीं मदरसों को बुनियादी चीजों की दरकार है उस पर भी सरकार की तवज्जों जरुरी है। मदरसों में आधुनिक शिक्षा की रीढ़ माने जाने वाले शिक्षकों का मानदेय कई वर्षों से बकाया है। सरकार नया पाठ्यक्रम लागू करें उस पर कोई एतराज नहीं है लेकिन उससे पहले जो व्यवस्था चली आ रही है उसे तो सुदृढ़ करें। पाठ्यक्रम तभी लागू हो जब ट्रेनड शिक्षक हो। प्रयोगशालाएं हो। खाली पाठ्यक्रम लागू करने भर से ही छात्रों का भला नहीं होगा। जमीनी स्तर पर मदरसा आधारभूत सुविधाओं से लैस होगा तभी शैक्षणिक विकास संभव है। सरकार को नया पाठ्यक्रम लागू करने से पहले मदरसो को जरुरी संसाधनों से लैस करना चाहिए। किताबों की भाषा पर खास तवज्जो की दरकार है। इसके अलावा शिक्षकों को नये सिरे से ट्रेनिंग दी जायें। वहीं आधुनिक शिक्षकों का मानदेय रेगूलर व महंगाई को देखते हुए वक्त से दिया जायें। तभी सरकार की मंशा पूर्ण हो सकेगी। पाठ्यक्रम लागू करने के तकनीकी पहलुओं पर गौर फिक्र किया जायें।
गोरखपुर विश्वविद्यालय के विधि विभाग के डा. अहमद नसीम ने कहा कि अगर पाठ्यक्रम को बेहतर करने के लिहाज से यह फैसला लिया गया है तो बेहतर है। एनसीईआरटी की बुक्स पर किसी को एतराज नहीं है। इन किताबों को मदरसे के बच्चें को पढ़ाने पर भी किसी को एतराज नहीं होगा। लेकिन उससे पहले सरकार को मदरसों में जरुरी संसाधन मुहैया कराना चाहिए। मदरसों के इंतेजामिया से सलाह मशवरा करना चाहिए। मदरसों में आधुनिक शिक्षा बहुत पहले से दी जा रही है। आधुनिक शिक्षा दे रहे है शिक्षकों के हालात किसी से छुपे नहीं है। कई सालों की सैलरी बकाया है। सरकार को कोई फैसला लेने से पहले मुकम्मल प्लानिंग करनी चाहिए। मदरसों का ही आधुनिकरण नहीं होना चाहिए बल्कि हर एक शिक्षण संस्था का आधुनिकीकरण किया जाना चाहिए। यह सरकार का अच्छा फैसला है। वहीं मदरसों पर सियासत भी खत्म होना बेहद जरुरी है।