मंच के अध्यक्ष विश्वविजय सिंह की चेतवानी-आमी आंदोलन के प्रतिफल को व्यर्थ नहीं जाने दिया जाएगा
प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड ने तकनीकी कारणों से 5 एमएलडी का सीईटीपी लगाने की बात कही
गोरखपुर , 9 जनवरी. आमी बचाओ मंच ने आमी नदी को प्रदूषण से बचाने के लिए गीडा में 35 एमएलडी का सीईटीपी ( कामन इंफ्लुएंट ट्रीटमेंट प्लांट) के बजाय सिर्फ 5 एमएलडी क्षमता का सीईटीपी लगाए जाने का विरोध किया है और आंदोलन की चेतावनी दी है। मंच ने कहा है कि लम्बे संघर्ष के बाद 35 एमएलडी का सीईटीपी लगाने का निर्णय हुआ था लेकिन आमी नदी को प्रदूषित करने वाले उद्यमियों से मिलकर गीडा प्रशासन और प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड साजिश कर कम क्षमता का सीईटीपी लगा रहा है।
उधर क्षेत्रीय प्रदूषण नियंत्रण अधिकारी ने गोरखपुर न्यूज लाइन से कहा कि 5 एमएलडी का सीईटीपी लगाने का निर्णय जल निगम का है। जल निगम ने यह निर्णय तकनीकी आधार पर किया है क्योंकि अब गीडा से प्रदूषित जल के उत्प्रवाह की मात्रा काफी कम हो गई है। ऐसा कई उद्योगों द्वारा इंफ्लुएंट ट्रीटमेंट प्लांट लगाने और नेशनल ग्रीन टिब्यूनल के निर्देश का पालन करने की वजह से हुआ है।
आमी बचाओ मंच के अध्यक्ष विश्वविजय सिंह ने एक बयान में कहा कि औद्योगिक कचरे से दम तोड़ चुकी आमी नदी को फिर से जिलाने, प्रवाहित करने के लिए एक दशक से अधिक समय से जनान्दोलन चल रहा है। संघर्ष व कानूनी लड़ाई का प्रतिफल रहा कि गीडा ने कामन इंफ्लुएंट ट्रीटमेंट प्लांट लगाने के औचित्य परीक्षण की जरुरत समझी। गीडा ने इसके लिए मदन मोहन मालवीय प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय को विशेषज्ञ एजेन्सी नामित कर औचित्य परीक्षण कराया। विश्वविद्यालय ने पर्यावरणविद प्रोफेसर डा. गोविन्द पाण्डेय के निर्देशन में वृहत परीक्षणोपरांत अपनी रिपोर्ट 7 सितम्बर 2013 को गीडा को सौंपी जिसमें आमी की जिन्दगी के लिए सीईटीपी जरूरी बताया गया। इस रिपोर्ट के आने के बाद गीडा प्रशासन चुप्पी मारकर बैठ गया। लगातार मांगपत्र देने, अनुरोध करने के बाद भी जब उसके कान पर जूं नहीं रेंगा तब वर्ष 2014 में गीडा दफ्तर पर पांच दिन तक आमरण अनशन किया गय, सैकड़ो लोगों द्वारा धरना दिया गया। मेरे भूख हड़ताल के पांचवें दिन कमिश्नर की अध्यक्षता में हुई गीडा बोर्ड की बैठक में सीईटीपी लगाने को स्वीकृति देकर 20 नवम्बर 2014 को उ.प्र. जल निगम को कार्यदायी एजेन्सी नामित कर डीपीआर बनाने को कहा गया। पौने दो साल तक जल निगम ने गीडा के वर्तमान उद्योगों. उनसे निकलने वाले कचरायुक्त अवशिष्ट जल का विस्तृत अध्ययन कर 35एमएलडी क्षमता का सीईटीपी लगाने की जरुरत बताई तथा इसका विस्तृत प्राक्कलन रिपोर्ट तैयार किया। जलनिगम ने 16 अगस्त 2016 को गीडा को डीपीआर सौंपते हुए 115.25 करोड़ रुपये की लागत बताई। इसके बाद गीडा ने वर्ष 2017 में 12 जनवरी, 29 अप्रैल और 13 अक्टूबर को पत्र लिखकर नेशनल मिशन फार क्लीन गंगा, वाटर रिसोर्सेज मंत्रालय, रिवर डेवलपमेंट व गंगा रिजुनिवेशन भारत सरकार से सीईटीपी की स्थापना के लिए धन की मांग की। ३० नवम्बर को विशेष सचिव उप्र शासन अवस्थापना व औद्योगिक विकास को पत्र लिखकर वित्त पोषण का अनुरोध किया लेकिन सबने हाथ खड़े कर अपने दायित्व से मुँह मोड़ लिया। केन्द्र सरकार के तत्कालीन पर्यावरण मंत्री प्रकाश जावड़ेकर, एवं नदी सफाई मंत्री उमा भारती जी से व्यक्तिगत एवं पत्रचार के माध्यम से हम लोगो ने वित्त पोषण कराने का अनुरोध कई बार किया किन्तु आमी के हाथ अबतक निराशा ही लगी। आन्दोलन के वक्त लम्बी-लम्बी हांकने वालों ने निर्णायक दौर में उल्टी सांसे लेना आरम्भ कर दिया।

श्री सिंह ने कहा कि सैकड़ों करोड़ रुपया बेमतलब के प्रचार व यात्राओं पर खर्चने वाली सरकारों ने नदी को बचाने और उसके किनारे बसने वाले लाखों लोगों की सेहत बचाने के लिए 125 करोड़ रुपया खर्च करना मुनासिब नहीं समझा। गोरखपुर औद्योगिक विकास प्राधिकरण की स्थापना की मूल शर्तों में सीईटीपी लगाया जाना शामिल है। इसका मतलब है कि गीडा ने औद्योगिक इकाइयों को भूमि बेचते समय जो कीमत ली उसमें अन्य विकास शुल्कों के अलावा सीईटीपी का पैसा भी जरुर वसूला होगा लेकिन उसने उस पैसे का उपयोग दूसरे मदों मे कर लिया और जब अनवरत चल रहे जनसंघर्ष व एनजीटी में लम्बी कानूनी लड़ाई के बाद जब सीईटीपी लगाने की बाध्यता दिखी तब सभी लगे चिट्ठी-चिट्ठी खेलने। इस बीच गीडा प्रशासन एक और खतरनाक खेल करने में लगा है। वह महज 5एमएलडी क्षमता का सीईटीपी लगाकर एनजीटी, आन्दोलनकारियों व जनता की आंखों मे धूल झोंकना चाहता है। पांचएमएलडी का साझा उत्प्रवाह शोधन संयंत्र लगाने का मतलब एक ऐसे झुनझुना से है जो बजाकर खुश होने का नाटक करते रहिए और आमी नदी को मरते हुए देखते रहिए। लेकिन आमी बचाओ मंच ऐसा नहीं होने देगा। आमी तट पर निवास करने वाले छात्रों, नौजवानों, किसानों, मजदूरों, महिलाओं समेत उन तमाम आन्दोलनकारियों की मेहनत, उनके त्याग और संघर्ष को जाया नहीं होने दिया जाएगा जिन्होंने आमी के स्वच्छ होने, अविरल होने का सपना देखा और इसके लिए सड़क पर आन्दोलन करते हुए पुलिसिया उत्पीड़न सहे, मुकदमे झेले और जेल गए।

उन्होंने कहा कि लोगों को यह समझना होगा कि स्थानीय जन जीवन से जुड़े इस संवदेनशील सवाल पर आमी बचाओ मंच का रुख पूरी तरह साफ है। आमी आंदोलन अभी समाप्त नही हुआ है, बल्कि सरकार के बार बार दुहराये जाते संकल्पों, वादों और आश्वासनों पर भरोसा करके सड़क पर चल रहे आन्दोलन को कुछ समय के लिए रोककर हम कानूनी लड़ाई लड़ रहे हैं। लेकिन यह ध्यान रहे कि आमी को बचाने में कोई बाधक बना तो जनता पहले की ही तरह फिर सड़क पर होगी, यह बात सभी संबंधित पक्षों अर्थात गीडा और प्रदूषण नियंत्रण विभाग के अधिकारियों, शासन-प्रशासन, कचरा बहाने वाले उद्योगों और सरकार के जिम्मेदारों को हमेशा याद रखना चाहिए।