Saturday, September 30, 2023
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गोरखपुर विश्वविद्यालय में विभाग को इकाई मान कर आरक्षण लागू करने का विरोध, शिक्षकों की चयन प्रक्रिया रोकने की मांग

पिछड़ा वर्ग कल्याण परिषद ने कहा -यूजीसी के 20 अप्रैल के पत्र के बाद विभाग को इकाई मानकर नियुक्ति प्रक्रिया जारी रखना अन्यायपूर्ण

पिछड़ा वर्ग कल्याण परिषद ने रजिस्ट्रार  को ज्ञापन दिया, कुलपति कार्यालय ने ज्ञापन लेने से इंकार किया

नियुक्ति प्रक्रिया न रोकने पर धरना-प्रदर्शन, अनशन की चेतावनी दी
गोरखपुर। दीन दयाल उपाध्याय गोरखपुर विश्वविद्यालय (डीडीयू गोरखपुर विश्वविद्यालय)  के पिछड़ा वर्ग कल्याण परिषद ने विश्वविद्यालय अनुदान आयोग द्वारा 20 अप्रैल के पत्र के मद्देनजर विश्वविद्यालय मेें विभाग को इकाई मानकर की जा रही शिक्षकों की चयन प्रक्रिया रोकने की मांग की है।

परिषद के कार्यकारी अध्यक्ष प्रो चन्द्रभूषण अंकुर और महामंत्री प्रो अनिल कुमार यादव इस सम्बन्ध में 21 अप्रैल को कुलपति को ज्ञापन देने कुलपति कार्यालय गए। कुलपति कार्यालय में मौजूद नहीं थे लेकिन कार्यालय में उपस्थित अधिकारियों ने ज्ञापन लेने से इंकार कर दिया और कहा कि कुलपति ने यह ज्ञापन लेने से मना किया है। इसके बाद परिषद के पदाधिकारियों व सदस्यों ने रजिस्ट्रार  को ज्ञापन दिया।

इस ज्ञापन में कहा गया है कि ‘ विश्वविद्यालय में जारी शिक्षकों की चयन प्रक्रिया उत्तर प्रदेश सरकार के 19 फरवरी 2016 के अन्यायपूर्ण दिशा निर्देश के आधार पर चल रही है जिससे ओबीसी-एससी के लिए आरक्षित पदों की संख्या नगण्य है तथा एसटी दिव्यांग अभ्यर्थियों को आरक्षण मिल पाना असंभव है। ’

यूपी सरकार के इस निर्देश में आरक्षण का आधार विभाग को माने जाने की बात कही गई है।

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परिषद  ने अपने ज्ञापन में कहा है कि यूजीसी के 20 अप्रैल के पत्र से स्पष्ट है कि यह मामला केन्द्र सरकार और यूजीसी द्वारा सुप्रीम कोर्ट में ले जाया गया है तब ऐसी दशा में  उत्तर प्रदेश सरकार के 19 फरवरी 2016 के आदेश के आधार पर हो रही वर्तमान नियुक्ति प्रक्रिया पर तत्काल रोक लगानी चाहिए और इस सम्बन्ध में अंतिम निर्णय आने तक समस्त चयन समितियों के सील बंद लिफाफे को खोले जाना स्थगति किया जाना चाहिए।

ज्ञापन में कहा गया है कि यूजीसी के पत्र के बाद विभाग को ईकाई मानकर की जा रही नियुक्तियां असंगत, अन्याय पूर्ण तथा संविधान की सामाजिक न्याय की भावना के खिलाफ है।

ज्ञापन में चेतावनी दी गई है कि यदि बहुसंख्यक दलित-पिछड़ा समाज के हितों की अनदेखी की गई तथा उनके संविधान प्रदत्त अधिकारों काक हनन किया गया तो हम लोकतांत्रिक तरीकों से धरना-प्रदर्शन, अनशन करने पर बाध्य होंगे।

उल्लेखनीय है कि विश्वविद्यालय के विभिन्न विभागों में शिक्षकों की चयन प्रक्रिया चल रही है। विश्वविद्यालय प्रशासन इस चयन प्रक्रिया को  आरक्षण का आधार विभाग को इकाई मानकर कर रहा है। विश्वविद्यालय प्रशासन ने 29 अप्रैल को कार्यपरिषद की बैठक में चयनित शिक्षकों के लिफाफे को खोलने की घोषणा की है।

विश्वविद्यालय के एक अन्य प्रोफेसर कमलेश कुमार ने भी इस मुद्दे को उठाया है. उन्होंने अपने फेसबुक वाल पर लिखा है कि – ‘ केवल शिक्षा जगत में ही नहीं, दूसरे क्षेत्रों की नौकरियों में भी विश्वविद्यालय के प्रोफेसरों की महत्वपूर्ण भूमिका होती है. हमारे यहाँ जिन 10 विषयों के लिफाफे 29 अप्रैल को खुलने वाले हैं, उनमें प्रोफेसर के कुल 14 पद हैं.यदि यूजीसी के पत्र दिनांक 20अप्रैल,2018 के अनुसार नियुक्ति हो तो आरक्षित संवर्ग के हिस्से में 07 पद आएंगे. चूँकि विभाग को इकाई मानकर नियुक्ति की जा रही है, इसलिए आरक्षित संवर्ग के हिस्से में एक भी सीट नहीं आ रही है. एससी/एसटी और ओबीसी के लोग न्याय के लिए कहाँ जाएँ ? क्या करें ?

प्रो कमलेश कुमार ने कहा कि दलितो और पिछड़ों की हितैषी उत्तर प्रदेश की भाजपा की सरकार को केंद्र की अपनी ही सरकार की मंशा का सम्मान करते हुए गोरखपुर विश्वविद्यालय में चयन संबंधी लिफाफा खोलना स्थगित करवा देना चाहिए.
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प्रो कमलेश लगातार इस मुद्दे को उठा रहे हैं, उन्होंने 28 मार्च को फेसबुक पर लिखा-जब तक विश्वविद्यालय को इकाई मानकर आरक्षण और रोस्टर को लागू नहीं किया जाएगा, तब तक आरक्षण का वास्तविक लाभ मिल नहीं पाएगा.

चाहे जो भी नियम और व्यवस्था हो, यदि उससे एससी को 21% , एसटी को 02% और ओबीसी को 27% संवैधानिक प्रतिनिधित्व मिलना सुनिश्चित हो, तभी उसे न्यायपूर्ण कहा जाएगा, अन्यथा नहीं.

यदि ओबीसी और एससी के आरक्षण को कई भागों में बाँटना हो, तो वह प्रक्रिया या तरीका बताया जाना चाहिए, जिसके तहत आरक्षण का लाभ मिल पाना सुनिश्चित हो.

अति पिछड़े और अति दलित तक आरक्षण का लाभ पहुँचाने की बात सैद्धांतिक तौर पर बहुत अच्छी है, लेकिन उसके लिए पारदर्शी और मुकम्मल व्यवस्था करनी होगी, जिससे आरक्षण का लाभ अंतिम व्यक्ति तक पहुँच सके.अन्यथा इसे पिछड़ों और दलितों में फूट डालने और आरक्षण को निष्प्रभावी बनाने की राजनीतिक चाल ही समझा जाएगा.

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