लोकरंगसाहित्य - संस्कृति

राजस्थान की कठपुतली और घूमर नृत्य ने मोहा, शीलू राजपूत की आल्हा गायकी से रोमांचित हुए दर्शक

जोगिया (कुशीनगर)। लोकरंग-2018 के मंच पर आज राजस्थान जयपुर से आए लोकनृत्य समूह ने कठपुतली नाच और घूमर लोकनृत्य की शानदार प्रस्तुति कर दर्शकों का दिल जीत लिया। आल्हा गायिकी में पुरूष वर्चस्व को तोड़ चर्चित हुईं शीलू राजपूत के गायन ने दर्शकों को रोमांचित कर दिया।

इस वर्ष लोकरंग का 11वां साल है। 11वां लोकरंग प्रसिद्ध जन कवि रमाकांत द्विवेदी ‘ रमता ’ जी को समर्पित किया गया है। स्वाधीनता सेनानी और भोजपुरी के प्रसिद्ध कवि रमाकांत द्विवेदी ‘रमता’ जी ने अनेक यादगार गीतों की रचना की। ‘ हमनी देशवा के नया रचवइया हईं जा, हमनी साथी हईं, आपस में भइया हईं जा या ’राजनीति सबके बूझे के बूझावे के परी’ आदि गीत भोजपुरी गीतों की क्रांतिकारी चेतना की थाती हैं।

लोकरंग का शुभारंभ लोकरंग-2018 की पत्रिका के लोकार्पण से हुआ। इस पत्रिका में सम्पादकीय के अलावा सात पठनीय लेख हैं। इसमें तैयब हुसैन ने ‘ सांस्कृतिक संसार में अभिजात्य बनाम लोक-भावना ’, कवि बलभद्र ने ‘ लोकगीत: लेखा-देखा ’, सुरेश कांटक ने ‘ लोक गाथाओं के अमर सर्जक ’, डा क्षमाशकर पांडेय ने ‘ रोपनी: संज्ञा, क्रिया, गीत ’, डा. आद्या प्रसाद द्विवेदी ने ‘ पूर्वांचल का लुप्त प्राय लोकनाट्य: बटोहिया ’, डा. राम प्रकाश कुशवाहा ने ‘ भोजपुरी लोकगाथा गोपीचंद का काव्यात्मक महत्व ’ और चर्चित भोजपुरी कवि प्रकाश उदय ने ‘ लोककथा को लेकर, कहना भी होना ’ शीर्षक लेख लिखा है। पत्रिका के संपादक सुभाष चन्द्र कुशवाहा ने ‘ जंतसर ’ पर केन्द्रित सम्पादकीय लिखा है।

गांव की महिलाओं के लोकगीत से सांस्कृतिक कार्यक्रमों की शुरूआत हुई। हर वर्ष गांव की महिलाएं लोकगीत व लोकनृत्य प्रस्तुत करती हैं।

बिहार, मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़ से आए कलकारों के लोक कलाओं के प्रदर्शन के बीच कुशीनगर जिले के रामकोला क्षेत्र के फरना गांव के राजन गोविंद राव ने बांसुरी वादन प्रस्तुत कर अपनी प्रतिभा का परिचय दिया।

इसके बाद राजस्थान के लोक नृत्य समुह के कलाकारों ने कठपुतली नाच प्रस्तुत किया। कठपुतली नाचएक हजार वर्ष से अधिक पुराना माना जाता है। राजस्थान के आदिवासी लम्बे अरसे से इस कला का प्रदर्शन करतेे आ रहे हैं और यह राजस्थान की लोक संस्कृति की पहचान है।

इन्ही कलकारों ने राजस्थान के एक प्रमुख नृत्य घूमर को प्रस्तुत कर दर्शकों का मन मोह लिया। घूमर नृत्य में एक घेरे में महिलाएं घाघरा पहन कर नृत्य करती हैं।

मध्य प्रदेश के देवास से आए दयाराम सरोलिया और उनके साथियों ने मालवा का लोकनृत्य, वर्षागीत, फकीरी और निर्गुन गायन प्रस्तुत किया।

आल्हा गायन पर पुरुषों का एकाधिकार तोड़ने वाली शीलू राजपूत ने महिला आल्हा गायन की परंपरा को जीवंत किया है। उनका आल्हा गायन लोकरंग 2018 का विशेष आकर्षण रहा । उत्तर प्रदेश के रायबरेली की रहने वाली शीलू सिंह राजपूत के लिए आल्हा गायिकी में कदम रखना आसान नहीं था। वह जिस गांव से आती हैं वहां पर लड़कियों के लिए तमाम पाबंदिया हैं। उन्होंने जब आल्हा गायकी शुरू की तो उन पर खूब तंज। विरोध का साामना करना पड़ा लेकिन उन्होंने पुरुषों के एकाधिकार वाले इस क्षेत्र में न सिर्फ कदम रखा बल्कि खूब शोहरत भी हासिल की है।

बिहार के पटना से आए लोक कलाकार कुमार उदय सिंह ने बिहार के प्रसिद्ध जट जटिन व कमला पूजा नृत्य प्रस्तुत कर लोकनृत्य की इस विधा से दर्शकों को परिचित कराया।

लोकरंग के लिए छत्तीसगढ़ के रायगढ़ की सांस्कृतिक संस्था ‘ गुड़ी ’ नई नहीं है। वह पहले भी दो बार इस गांव में आ चुकी है। आज उसने आखिरी कार्यक्रम के बतौर कहानी शैली में प्रेमचन्द की प्रसिद्ध कहानी‘ बड़े भाई ’ साहब को जीवंत किया। नाटक का निर्देशन सुप्रसिद्ध रंगकर्मी योगेन्द्र चौबे ने किया।

कार्यक्रम का संचालन रीवा विश्वविद्यालय के हिन्दी विभाग के अध्यक्ष प्रो. दिनेश कुशवाह ने किया।

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