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11 वर्ष से बंद है धुरियापार चीनी मिल

आधुनिक तकनीक पर स्थापित इस चीनी मिल को एशिया में नंबर दो का दर्जा हासिल था
25 हजार क्विंटल प्रतिदिन पेराई की क्षमता थी, स्थापना में 60 करोड़ की लागत आई थी

गोरखपुर. एशिया की नंबर-2 की पोजीशन हासिल कर चुकी जनपद की किसान सहकारी चीनी मिल धुरियापार 11 वर्ष से बंद हैं. यह मिल 60 करोड़ रुपए की लागत से बनाई गई थी. मिल बंद होने से किसानों के आर्थिक विकास का सपना भी बिखर गय.  इसके कारण क्षेत्र में गन्ना का पैदावार भी लगभग ख़त्म हो गई है.

अब प्रदेश सरकार द्वारा यहां एथेनाल प्लांट लगाने की योजना से कुछ उम्मीद जगी है. फिर भी यह सवाल है कि इसका पुराना चीनी मिल वाला स्वरूप पुन: जिंदा हो पायेगा या नहीं.

1987-88 में तत्कालीन मुख्यमंत्री नारायण दत्त तिवारी ने किसान सहकारी चीनी मिल हरपुर गजपुर धुरियापार की आधारशिला रखी थी. एक दशक बाद 1997-1998 में इस मिल ने उच्च तकनीकी से बनी एशिया की नंबर-2 की चीनी मिल की पोजीशन हासिल की थी.

25 हजार क्विंटल प्रतिदिन उत्पादन की क्षमता वाली इस मिल का शुभारंभ मुख्यमंत्री कल्याण सिंह ने 1997 में किया.  पर्याप्त गन्ना नहीं मिल पाने के कारण 20 दिन बाद ही यहां पेराई बंद करनी पड़ी. कल्याण सिंह के बाद मायावती सरकार आई तो मंत्रिमंडल ने फैसला लिया कि धुरियापार चीनी मिल का निजीकरण कर दिया जाए.  इसके विरोध में मिल के शेयर होल्डर सुनील कुमार तिवारी ,पूर्व विधायक अच्युतानंद तिवारी के साथ एक दर्जन लोगों ने इलाहाबाद उच्च न्यायालय में याचिका दाखिल कर दी।

याचिका में कहा गया कि स्थानीय किसान भी शेयरहोल्डर हैं. इसलिए मिल को निजी हाथों में सौंपने से सरकार को रोका जाए. इस याचिका पर इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने शासन को आदेश दिया कि किसानों के हित को ध्यान में रखते हुए मिल का न तो निजीकरण किया जा सकता है और न ही किसी अन्य को बेचा जा सकता है.

2006-07 में तत्कालीन मुख्यमंत्री मुलायम सिंह यादव ने यहां के पूर्व विधायक जय प्रकाश यादव के आग्रह पर मिल को चलाने के लिए एक करोड़ रुपए का विशेष पैकेज दिया. इसके बाद तत्कालीन डीएम डॉक्टर हरिओम और मुख्यमंत्री मुलायम सिंह यादव ने फरवरी 2007 में मिल का शुभारंभ किया. लेकिन गन्ना के कमी में मिल सिर्फ 12 दिन तक चल सकी और तभी से आज तक बंद हैं.

पूर्व की मायावती सरकार के समय में इस मिल के कुछ कीमती पुर्जो को दूसरे मिलों को हस्तांतरित कर दिया गया. बची मशीनें पुरानी हो गई जिसके कारण मिल शुरू कर पाना संभव नहीं हुआ. मिल के सभी कर्मचारियों को वेतन का भुगतान कर किया गया. चीनी मिल बंद होने से यहां के हजारों किसानों पर असर पड़ा है.

लोगों का कहना है किसी भी जनप्रतिनिधि ने इस मुद्दे को सदन में नहीं उठाया. मिल बंद होने से इस इलाके में गन्ने की पैदावार पर भी असर पड़ा है. यहां के किसानों ने गन्ने की पैदावार धीरे-धीरे कम कर दी.

यहां गोरखपुर के अलावा संत कबीर नगर, देवरिया, मऊ के कुछ इलाके के किसान अपना गन्ना लेकर आते थे.

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