Tuesday, September 26, 2023
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गोरखपुर विश्विद्यालय में लोकतंत्र संकट में

हितेश सिंह

तानाशाही एक मानसिकता होती है जो लोकतंत्र को पसंद नहीं या यूं कहिये कि बर्दाश्त नहीं कर पाती क्योंकि लोकतंत्र में असहमतों में परस्पर संवाद, विमर्श, आलोचना होती रहती है तथा पक्ष और विपक्ष एक दूसरे की कमियों को जनता के सम्मुख रखते है व इसके माध्यम से अपने अपने पक्ष में जनमत का निर्माण करने का प्रयास करते रहतें है। इस प्रकार लोकतंत्र की आत्मा संवाद में निहित है ।

आम जन की अपने अधिकारों, सरकार के उत्तरदायित्व की समझ की अपनी सीमा होती है इसलिए जनहित से जुड़े प्रश्नों , पक्षों को उठाने की जिम्मेदारी राजनैतिक दलों व राजनैतिक कार्यकर्ताओं की होती है। तमाम आलोचनाओं के बावजूद भी ये राजनैतिक कार्यकर्ता सैद्धान्तिक रूप से जनता की आकांक्षाओं को उत्तरदायी लोगों तक पहुचाने की कड़ी का कार्य करते हैं. इसलिए लोकतंत्र को जीवंत बनाये रखने के लिए कार्यकर्ताओं का सक्रिय रहना आवश्यक होता है। दलीय व्यवस्था में प्रत्येक दल के अपने कार्यकर्ता विचारधारा के अनुरूप जनता की मांगों को उठाते रहतें हैं।

यह व्यवस्था देश , प्रदेश व स्थानीय प्रत्येक स्तर पर कार्यरत रहनी चाहिए। कोई सरकार कितनी लोकतांत्रिक है इसका मानक यह होना चाहिए कि वह अपने से भिन्न विचारधारा के दल की विचारधारा कार्यकता, विरोध की ध्वनि के प्रति कितना सम्मान रखती है। लोकतंत्र के सम्मान का अर्थ है कि विरोधी या प्रतिपक्षी के विरोध करने के अधिकार के प्रति सम्मान का भाव रखना। जो सरकार प्रतिपक्ष का सम्मान नहीं करती वह लोकतंत्र का सम्मान नहीं करती। विरोध में भी सम्मान का भाव लोकतंत्र की गरिमा का प्रदर्शक है।

वर्तमान में भारत में ऐसी मानसिकता के लोग प्रभावशाली है जो आलोचना करने वालों, सवाल करने वालों , विपक्षी के प्रति सम्मान के भाव प्रदर्शन में कंजूस हैं। ये विपक्षी का सम्मान न करने से आगे बढ़कर उनके दमन, उनके नाश करने की युक्ति रचते रहते हैं और इस क्रम में वे हर उस संस्था के लोकतांत्रिक स्वरूप को बदलना चाहते हैं जो सवाल पूछती हो। देश के स्तर पर ऐसी संस्थाओं में उनके हस्तक्षेप और उसके दुष्परिणाम से देश परिचित हो रहा है। इसी कड़ी में उनकी तानाशाही मानसिकता का शिकार गोरखपुर विश्वविद्यालय हो रहा है।

छात्र संघ को लोकतंत्र की नर्सरी कहा जाता है और गोरखपुर विश्वविद्यालय के छात्र व छात्रनेता लोकतंत्र को ठीक से सीखते हुए प्रशासन से अपने अधिकारों पर सवाल करते रहे हैं। गत कुछ वर्षों से गोरखपुर विश्विद्यालय में छात्र व छात्र नेता सामाजिक न्याय जैसे नए प्रश्नों पर विमर्श करते रहे हैं । छात्र नेताओं ने  अपनी तमाम आपसी असहमतियों के बावजूद छात्रहित व लोकतंत्र के रक्षार्थ शानदार एकजुटता का प्रदर्शन करते हुए अच्छे संघर्ष का उदाहरण पेश किए। छात्रनेताओं के कई रचनात्मक आंदोलन अत्यंत सफल व प्रभावकारी रहें हैं। जैसे सफाई को लेकर नवीन आंदोलन। छात्रनेताओं का छात्रों से जुड़ाव व इनकी आपसी एकजुटता ने कई बार प्रशासन को अपने फैसले बदलने पर मजबूर किया है।

अब इस विश्वविद्यालय को लोकतांत्रिक संघो से डर लगने लगा है। इस संघो में सबसे अधिक तेज से भरपूर व जागरूक छात्र संघ होता है. इसलिए प्रशासन कोई न कोई बहाना करके इसे समाप्त करने का प्रयास करता रहा है। गत दो वर्षों से वहाँ छात्रसंघ के चुनाव नहीं हुए। जब छात्र नेता अपने छात्रसंघ के अधिकार के लिएे लोकतांत्रिक तरीके से मांग रखते तो उन्हें विभिन्न तरीके से प्रताड़ित किया गया। सत्ता का दुरुपयोग करते हुए बल प्रयोग कर आंदोलन को समाप्त करने की कोशिश की गई, कानूनी धमकियां दी गयी, कइयों पर फर्जी मुकदमे दर्ज किए गए।विश्वविद्यालय में प्रवेश प्रतिबंधित किया गया। पर साहसी युवा , छात्र नेता हार नहीं माने।

 अब सत्ता अपने अंतिम हथियार को आजमा रही है । तत्काल में विश्वविद्यालय के 25 छात्रनेताओं के खिलाफ पुलिस ने रेडकार्ड जारी किया और उन्हें चेतावनी दी गयी है कि अगर वे अपनी गतिविधियों पर विराम नहीं लगाए तो उन पर कठोर कानूनी कार्यवाही की जाएगी।

यह घटना केवल छात्र नेताओं के साथ नहीं हो रही है बल्कि सवाल पूछने वाले विश्वविद्यालय के हर व्यक्ति के साथ हो रही है। विश्वविद्यालय के शिक्षक,  छात्र के सोचने के आयाम को विस्तृत करते हैं। उन पर जागरूक नागरिक तैयार करने की जिम्मेदारी होती है. इसलिए वे दुनिया के श्रेष्ठ विचारों से छात्रों को परिचित कराते हैं और उनको ऐसा करने में हर प्रकार की आजादी होती है.

परन्तु गोरखपुर विश्वविद्यालय के प्रोफेसर को ही अभिव्यक्ति कि आजादी से वंचित किया जा रहा है. विश्वविद्यालय के कुछ प्रोफेसरों ने शिक्षकों की नियुक्ति की प्रक्रिया पर सवाल उठाया था और उसमें पारदर्शिता की मांग की थी, परन्तु उनका सवाल उठना विश्वविद्यालय प्रशासन को पसंद नहीं आया क्योकि विश्वविद्यालय प्रशासन में तानाशाही प्रवृति के लोगो का कब्जा है जो लोकतंत्र का दमन करना चाहतें हैं। आज कुलपति द्वारा सवाल उठाने वाले प्रोफेसरों पर कार्यवाही की जा रही है।

अधिकारों के लिए लड़ने वाले , सवाल उठाने वाले ये छात्रनेता, अध्यापक लोकतंत्र के सच्चे प्रतिनिधि हैं और अब इनके साहस को बनाये रखने की जिम्मदारी आम छात्रों और नागरिकों पर है.  हो सकता है आपमें से बहुत से लोग यह सोचते हो कि हमें विश्विद्यालय से क्या मतलब तो आप गलत हैं. विश्वविद्यालय ही हमारे समाज और देश की दिशा तय करते हैं. यही से हमारी आने वाली पीढ़ी का भविष्य तय होता है, इसलिए इसको मूल स्वरूप को बचाने की जिम्मेदारी हम सब की है.

हमें आगे आना ही होगा क्योंकि यदि लोकतंत्र सिखाने वाली संस्था में लोकतंत्र नहीं बचेगा तो आने वाली पीढ़ी लोकतंत्र को भूल जाएगी। यदि यहां लोकतंत्र नहीं बचेगा तो संविधान नहीं बचेगा. संविधान नहीं बचेगा तो देश नहीं बचेगा, समाज नहीं बचेगा। लोकतंत्र नहीं बचेगा तो हम भी नहीं बचेंगे। इन छात्रनेताओं, अध्यापकों का साथ दीजिये कि लोग सवाल पूछते रहे। साथ दीजिये कि इन लोकतंत्र प्रहरियों का साहस बना रहे. साथ दीजिये की लोकतंत्र बचा रहे. लोकतंत्र जिंदाबाद. संविधान जिंदाबाद.

(लेखक गोरखपुर विश्वविद्यालय के छात्र रह चुके हैं और वर्तमान में मेरठ के एक कालेज में शिक्षक हैं )

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