गोरखपुर. नगर विधायक डा राधा मोहन दास अग्रवाल ने लखनऊ में प्रदेश के मुख्य चुनाव अधिकारी अजय कुमार शुक्ल से मुलाकात कर उनसे मांग की कि चुनाव आयोग गोरखपुर शहर विधानसभा-322 की मतदाता सूची का “सघन पुनर्निरीक्षण” कराये। मुख्य चुनाव अधिकारी अजय कुमार शुक्ल ने नगर विधायक को आश्वस्त किया कि वे अपनी संस्तुतियां मुख्य निर्वाचन आयुक्त को भेजेंगे ,क्योंकि इस संदर्भ में अंतिम निर्णय उन्हें ही लेना है ।
नगर विधायक ने कहा कि वे वर्ष 2002 से गोरखपुर नगर क्षेत्र के विधायक हैं और नागरिकों के अपार स्नेह से,हर चुनाव में बढ़ते हुए मतों के अंतराल से जीतते आ रहे हैं लेकिन उनका मानना है कि शहर विधानसभा की मतदाता सूची बहुत खराब होने के कारण न तो बीएलओ ,न ही बीएलए और न ही राजनैतिक कार्यकर्ता ही मतदाताओं के घरों में वोटर-स्लिप पंहुचा पाते हैं। इसके फलस्वरूप गोरखपुर शहर विधानसभा में मतदान बहुत कम होता है और बहुत से नागरिकों को मतदाता केन्द्र पंहुच कर भी वापस लौटना पडता है ।
नगर विधायक ने कहा कि रजिस्ट्रेशन आफ इलेक्टोरल रोल-1960 की धारा 5 तथा 6 में सुस्पष्ट व्यवस्था की गयी है कि किसी भी विधानसभा क्षेत्र को सुनिश्चित भागों ( बूथ ) में बांटा जाये और एक भाग संख्या के क्षेत्र में रहने वाले सभी मतदाताओं के नाम उनके मकानों के नम्बर और क्रम के अनुसार,क्रमानुसार ही रखे जाये तथा एक परिवार के सभी मतदाताओं के नाम भी एक साथ ही रखे जायें।
नगर विधायक ने कहा कि व्यवहारिक रूप से ठीक इसका उल्टा हो रहा है । एक ही क्षेत्र के नाम न सिर्फ कई भागों में बल्कि कयी मतदान केन्द्रों में डाल दिये गये हैं और बहुतेरे परिवार के सदस्यों के नाम भी अलग अलग मतदाता सूची में है। उन्होंने कहा कि चुनाव आयोग बार बार मतदाता सूची का “संक्षिप्त पुनर्नीरीक्षण” कराता है और नये नाम इतने बेतरतीब तरीके से ठूस दिये जाते हैं कि हर संक्षिप्त पुनर्नीरीक्षण के बाद मतदाता सूची पहले से और अधिक खराब हो जा रही है। नगर विधायक ने कहा कि लोकतंत्र की पवित्र भावनाएं अपेक्षा करती हैं कि बार-बार संक्षिप्त पुनर्नीरीक्षण कराने की जगह चुनाव आयोग नये सिरे से मतदाता सूची को रद्दी घोषित कर के सघन पुनर्नीरीक्षण करवाये ।
नगर विधायक ने कहा कि आखिर “द रजिस्ट्रेशन आफ इलेक्टोरल रोल 1960” की धारा 25(1) में मतदाता सूची के “सघन पुनर्नीरीक्षण ” के जो प्राविधान किये गये हैं,चुनाव आयोग उनका उपयोग करके मतदाता सूची को ठीक क्यों नहीं कराता हैं कि लोकतंत्र की पवित्र भावनाओं के तहत हर नागरिक वास्तव में मतदान करने के अपने अधिकार का सुगमता के साथ प्रयोग कर सकें।