लॉकडाउन 3 : ऐतिहासिक बाले मियां मेले पर कोरोना का ब्रेक

गोरखपुर। बहरामपुर के मैदान पर सैकड़ों सालों से लग रहा ऐतिहासिक बाले मियां मेला इस बार नहीं लग पायेगा। मेला 17 मई से शुरू होकर 17 जून तक चलने वाला था। लॉकडाउन 3 की घोषणा के साथ ही मेला पर कोरोना वायरस का ब्रेक लग गया है।

एक महीने तक चलने वाले इस मेले में पूर्वांचल के हजारों अकीदतमंद शामिल होते थे। जिनमें बड़ी तादाद हिन्दू समुदाय की भी रहती थी। यह मेला गंगा जमुनी तहजीब का जीता जागता नमूना था। हाल ही में 15 मार्च को लगन की रस्म अदा की गयी थी।

दरगाह हजरत सालार मसूद गाजी मियां उर्फ बाले मियां

हजरत सैयद सालार मसूद गाजी मियां अलैहिर्रहमां जनसामान्य में बाले मियां के नाम से जाने जाते है। बहरामपुर में हर साल जेठ के महीने में यहां मेला लगता हैं जहां पर आस-पास के क्षेत्रों के अलावा दूर दराज से भारी संख्या में अकीदतमंद यहां आते है। एक माह तक चलने वाले मेले के मुख्य दिन अकीदतमंदों द्वारा पलंग पीढ़ी, कनूरी आदि चढ़ा कर मन्नतें मांगी जाती है। इस मेले को पूर्वांचल की गंगा-जमुनी तहजीब की मिसाल माना जाता है। हर साल लगन की रस्म पलंग पीढ़ी के रूप में मनायी जाती है।

ऐतिहासिक प्रमाणों के मुताबिक हजरत सैयद सालार मसूद गाजी मियां अलैहिर्रहमां दीन-ए-इस्लाम के चौथे खलीफा हजरत अली रजियल्लाहु अन्हु की बारहवीं पुश्त से है। गाजी मियां के वालिद का नाम गाजी सैयद साहू सालार था। आप सुल्तान महमूद गजनवीं की फौज में कमांडर थे। सुल्तान ने साहू सालार के फौजी कारनामों को देख कर अपनी बहन सितर-ए-मोअल्ला का निकाह आप से कर दिया। जिस वक्त सैयद साहू सालार अजमेर में एक किले को घेरे हुए थे, उसी वक्त गाजी मियां 15 फरवरी 1015 ई. को पैदा हुए।

चार साल चार माह की उम्र में आपकी बिस्मिल्लाह ख्वानी हुई। नौ साल की उम्र तक फिक्ह व तसव्वुफ की शिक्षा हासिल की। आप बहुत बड़े आलिम थे। आप बहुत बहादुर थे। आपकी शहादत असर व मगरिब के बीच इस्लामी तारीख 14 रज़ब 423 हिजरी में (बहुत ही कम उम्र में) हुई। आप हमेशा इंसानों को एक नजर से देखते थे। सभी से भलाई करते। दुनिया से जाने के बाद भी आपका फैज जारी है। आपका मजार शरीफ बहराइच शरीफ में है। अकीदतमंदों ने गोरखपुर में सैकड़ो साल पहले प्रतीकात्मक मज़ार बनायी। जो वक्फ विभाग में दर्ज है। गाजी मियां के नाम से मोहल्ला गाजी रौजा भी बसा है।

बाले के मैदान में गांधी जी ने दिया ऐतिहासिक भाषण

भारतीय आजादी के अगुवा महात्मा गांधी 1921 में गोरखपुर आये। शहर के पश्चिमी छोर पर राप्ती नदी के बंधे के किनारे बसे मोहल्ला बहरामपुर बाले के मैदान में गांधी जी ने जोरदार भाषण दिया। ज़माना खिलाफत आंदोलन व असहयोग आंदोलन का चल रहा था।