भईया आज खाना नही लाइयेगा क्या .. यह सुनते ही फिर शुरू हो गया अम्बेडकर छात्रावास का कम्युनिटी किचन

सुजीत सोनू

 

गोरखपुर. गोलघर स्थित अम्बेडकर छात्रावास में चल रहे हमारे कम्युनिटी  किचन ने बुधवार (3 जून )को  50 वां दिन पूरा कर लिया था। गुरुवार से हमें अपना किचन बंद करना था। किचन के मेरे दो महत्वपूर्ण साथी रविन्द्र और सत्येन्द्र सुबह अपने घर चले गए। लोगों के लिये भोजन बनाना नही था, इसलिये हमारे अन्य साथी भी किचन के स्थान पर देर से पहुँचे.

हम सभी कम्युनिटी किचन के संचालन के 50 दिन के अनुभव एक दुसरे से साझा करते हुए  हॉस्टल की सफाई में लग गए। कुछ देर बाद घर गए साथी सत्येन्द्र का फोन आया. वे कहने लगे कि घर पर जरा भी अच्छा नही लग रहा है. मन कर रहा है की चले आएं.  मैने कहा मन नहीं लग रहा तो चले आओ. कुछ आटा हम लोगों के पास बचा हुआ है, उसको जरूरतमन्दों में बाँट दिया जायेगा.  उसके बाद घर चले जाना.

कुछ देर बाद फ़िर मोबाइल फोन की घंटी बजी. यह फोन उस इलाके से था, जहां हमारा किचन पिछले 50 दिनों से लोगों को भोजन करा रहा था. फोन पर एक महिला थी. वह बोलीं- भईया आज सच में खाना नही लाइयेगा . मैने कहा नहीं. कल सबको बता दिए थे कि अब कम्युनिटी किचन बंद होने जा रहा है. इस पर उन्होंने कहा-भईया आज लेते आइये. कल हम कोई व्यवस्था कर लेंगे. आज कोई व्यवस्था नहीं हो पाया है. बच्चे भूखे हैं. कल हम कोई व्यवस्था कर लेंगे.

शाम के 5 बज चुके थे. यह बात मैंने अपने साथियों से बताई. साथियों ने कहा क्या करना है. कुछ लोगों का भोजन बना दिया जाए. आप वहाँ फोन कर बोल दीजिये, हम लोग थोड़ा देर ही सही  100 लोगों का खाना लेकर आएंगे.

समस्या थी कि इतने कम समय में क्या बनाया जाय. सबका सुझाव आया कि 100 लोगों की तहरी बना दी जाय. एक-दो साथियों ने सुझाव दिया कि चावल और सब्जी बना लिया जाय. दो चूल्हा है जल्दी बन जायेगा.

आखिर में 100 लोगों का सब्जी व चावल बनाना तय हुआ. आलू और प्याज़ काटना शुरू हुआ. स्टोर रूम में जाने पर पता चला कि चावल तो हम लोगों के पास है ही नही.  साथी शेलेन्द्र को फ़ोन मिलाया गया. उन्हें सारी बात बतायी गयी. शैलेन्द्र अपने दो साथियों के मदद से तुरत 50 किलो चावल, आलू और एक बोरा सोयवाबीन ले हमारे पास उपस्थित हो गये.

उसके बाद युद्ध अस्तर पर भोजन बनाने में सभी साथी लग गए. रात आठ बजते-बजते हम लोगों ने 70-80 लोगों के लिए चावल व सब्जी बना लिया. जिस गाड़ी में खाना लोड कर बाँटने के लिए हम लोग जाते थे , वह सत्येन्द्र की थी. वह अपने साथ गाड़ी लेकर चले गए गए. बड़े भाई धीरेंद्र ने तत्काल एक गाड़ी की व्यवस्था की, उसमें  भोजन रख हम लोग इंतज़ार कर रहे लोगों के पास पहुँच गए।

खाना देकर आने के बाद हम सभी साथियों ने मिलकर तय किया हम लोग अपने कम्युनिटी किचन को कुछ दिन और संचालित करेंगे. इन दिनों में कुछ साथियों की मदद लेकर, भरपूर राशन की व्यवस्था कर बेहद जरूरतमंद परिवारों को इसी बीच राशन दे दिया जायेगा, जिससे वे कम से कम 15 दिन तक अपना कम चला सकें. इसके बाद किचन बंद हो जायेगा. लेकिन गरीब परिवारों, मजदूरों की सहायता का सिलसिला अन्य रूपों में जारी रहेगा.

( सुजीत सोनू अम्बेडकर छात्रावास द्वारा लॉकडाउन में चलाये जा रहे कम्युनिटी किचन से सक्रिय रूप से जुड़े हुए हैं )