पोखरों, तालाबों और गड्ढों में डाली गयीं मच्छरों का लार्वा खाने वाली 53 हजार गम्बूजिया मछलियां 

देवरिया। संचारी रोग नियंत्रण अभियान के तहत गुरुवार को जिले में पांच ब्लाकों के जेई/एईएस प्रभावित अति संवेदनशील इलाकों के 35  स्थानों पर मलेरिया विभाग व मत्स्य विभाग की मौजूदगी में पोखरों, तालाबों और गड्ढों में 53 हजार गंबूजिया मछली का डाले गए।

इस दौरान मुख्य कार्यकारी अधिकारी मत्स्य नंदकिशोर की देखरेख में जेई/एईएस प्रभावित शहरी और ग्रामीण इलाकों के पोखरों, तालाबों और गढ़ों में गम्बूजिया मछली का संचयन कराया गया। उन्होंने बताया कि मच्छर जनित रोगों से बचाव के लिए बैतालपुर, रामपुर कारखाना, भलुअनी, गौरी बाजार, सदर ब्लाक के बगहा मठिया, सोंदा, अगस्तपार, पकड़ी, पुरवा चौराहा, सोमनाथ मंदिर, परमार्थी पोखरा सहित 35 स्थानों पर 53 हजार मछलियों का संचयन किया गया है। उन्होंने कहा कि मस्तिष्क ज्वर, मलेरिया, डेंगू आदि की रोकथाम व नियंत्रण हेतु यह एक जैविक विधि है। इसके लिेए गोरखपुर के गोरखनाथ मंदिर पोखरे से गंबूजिया मछली को मंगाया गया है। मच्छरों का लार्वा खाने वाली इन मछलियों को शहर के  हनुमान मंदिर स्थित तालाब में डाला गया है। यहां से मछलियों को ग्रामीण व  आस पास के जलीय स्रोतों में डाला जा रहा है जिससे कि मच्छरों से छुटकारा मिल सके। इस मछली का प्रजनन अधिक होने से इनकी संख्या तेजी से बढ़ती है। इनका कोई दुष्परिणाम नहीं हैं। इनके द्वारा मच्छरों के लार्वा खाने से मच्छर पनपना खत्म होगा और बीमारियां पर नियंत्रण होगा।

इस दौरान सहायक मलेरिया अधिकारी सीपी मिश्रा, सहायक मलेरिया अधिकारी सुधाकर मणि, जिला वीबीडी परामर्शदाता डॉ एसके पाण्डये, मतस्य विभाग के अंगद कुमार सहित संबंधित मछुआरे मौजूद रहे।

मच्छरों का लार्वा खाती है गंबूजिया

जिला वीबीडी परामर्शदाता डॉ. एसके पांडये ने बताया कि गंबूजिया मछली की लम्बाई 3 से 6 सेमी होती है। हर माह इसकी ब्रीडिंग होती है। एक बार में यह मछली 80 से 100 बच्चे देती हैं और यह आवश्यकतानुसार जेंडर भी बदल लेती हैं। गंबूजिया अपने वजन का 40 प्रतिशत मच्छर लार्वा खाती हैं। इस मछली से किसी अन्य जलीय जीव को नुकसान नही होता हैं। प्रति एकड़ 2 हजार गंबूजिया मच्छर लार्वा खाने को पर्याप्त होती हैं।