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गुआक्टा ने बिना पूर्व तैयारी के महाविद्यालयों में सीबीसीएस सिस्टम लागू करने का विरोध किया

गोरखपुर। गोरखपुर विश्वविद्यालय से सम्बद्ध महाविद्यालय शिक्षक संघ (गुआक्टा ) ने बिना किसी पूर्व सूचना के और बिना किसी पूर्व तैयारी के अनुदानित महाविद्यालयों में सीबीसीएस सिस्टम लागू करने का विरोध करते हुए इसे कुलपति तानाशाही भरा एक और कदम बताया है। गुआक्टा ने इस व्यवस्था को कम से कम दो वर्षों के लिए टाल देने की मांग करते हुए कहा है कि सीबीसीएस सिस्टम के संबंध में आगे की रणनीति बनाने के लिए इस सप्ताहांत वृहद कार्यकारिणी की बैठक होगी।

गुआक्टा के अध्यक्ष डा.के.डी.तिवारी और महामंत्री डा.धीरेन्द्र सिंह  ने आज एक बयान में कहा कि 1987 में स्नातक स्तर पर तीन वर्षीय पाठ्यक्रम प्रारंभ हुआ। इस पाठ्यक्रम के प्रारंभ होने के बाद भी अनुदानित महाविद्यालयों में शिक्षकों की संख्या पूर्व की भांति ही रहीं। कहीं भी शिक्षकों के पदों में विभागवार वृद्धि नहीं हुई। अब भी महाविद्यालयों में पदों की संख्या पहले ही जैसी बनीं है। महाविद्यालयों में अभी भी अनेक विभागों में एक ही शिक्षक शिक्षण कार्य में लगे है। अब सी बी सी एस सिस्टम को लागू करने के लिए कुलपति ने फरमान सुना दिया है और तुर्रा यह कि इसे वर्तमान सत्र से ही लागू करना है। इसके पूर्व विश्वविद्यालय में पी. जी. कक्षाओं में सेमेस्टर सिस्टम लागू हुआ था, परंतु कालेजों के ऊपर इसे जबरदस्ती लादा नहीं गया था।

पदाधिकारी द्वय ने कहा कि कुलपति प्रो राजेश सिंह ने बिना किसी पूर्व सूचना के और बिना किसी पूर्व तैयारी के अनुदानित महाविद्यालयों में इस सिस्टम को लागू करने का हुक्म दिया है।  कुछ कालेजों को छोड़कर अनुदानित महाविद्यालयों में संसाधनों का बहुत ही आभाव बना हुआ है। सरकारें वेतन मद को छोड़कर अन्य किसी मद में सहायता देना दशकों से बंद कर दी है। भौतिक संसाधन हो या मानवीय संसाधन, सब में कमी है। विभागों में प्रयोगशाला सहायक और परिचर के पद वर्षों से रिक्त पड़े हैं। बहुत सारे विभाग एकल हैं। बहुत सारे महाविद्यालयों में किसी-किसी सब्जेक्ट में एक भी शिक्षक नहीं है, वहां क्या होगा ? इसके अतिरिक्त सीबीसीएस सिस्टम को सुचारू ढंग से संचालित करने के लिए सदैव बिजली एवं इंटरनेट की सुविधा तथा उसको चलाने वाले प्रशिक्षित कंप्यूटर टाइपिस्ट/ टेक्नीशियन चाहिए । ऐसे पद अनुदानित महाविद्यालयों में उपलब्ध ही नहीं है।

गुआक्टा पदाधिकारियों ने कहा कि दूसरा बिंदु यह है कि अभी तक विश्वविद्यालय ही इस कोर्स की रूपरेखा तय नहीं कर पाई है कि साइंस, आर्ट्स, सोशल साइंस, लैंग्वेज आदि विषयों के साथ कौन-कौन से प्रोफेशनल कोर्स उपलब्ध कराया जाए। इन प्रोफेशनल/ वोकेशनल कोर्सो के लिए संसाधन की कितनी आवश्यकता होगी, वह कहां से आएंगे? अनुदानित महाविद्यालयों में वोकेशनल कोर्स के लिए कौन सी एजेंसी संसाधन मुहैया कराएगी? क्या कॉलेज का प्रबंधन संसाधन मुहैया कराएगा , सरकार मुहैया कराएगी या यह वोकेशनल कोर्स सेल्फ फाइनेंस मोड में चलेंगे?

तीसरी बात यह है कि कालेजों में वोकेशनल कोर्स संचालित करने के लिए अतिरिक्त कक्षा कक्ष की सुविधा है? इसके साथ ही महाविद्यालयों में प्रत्येक विषय एवं पेपर के लिए कई के पीरियड्स लगाने पड़ेंगे क्योंकि कोई भी छात्र अपने स्ट्रीम के अलावा दूसरे स्ट्रीम का सब्जेक्ट भी चुनकर पड़ सकता है।ऐसे छात्रों के लिए महाविद्यालयों में अलग से कक्षाओं का संचालन करना नितांत ही कठिन होगा।  इसका सीधा परिणाम यह होगा की एक या दो संकाय से संचालित होने वाले महाविद्यालयों को छात्र मिलने मुश्किल हो जाएंगे और वे बंद हो जाएंगे, क्योंकि वहां पर छात्रों को मनवांछित विकल्प उपलब्ध ही नहीं होगा।

दूसरी परेशानी कालेजों के सामने यह आएगी कि कालेज क्या आधा कोर्स अनुदानित माध्यम से और आधा सेल्फ फाइनेंस माध्यम से चलाएंगे ? क्या छात्र सामान्य कोर्स को अनुदानित विषय के रूप में और वोकेशनल कोर्स को सेल्फ फाइनेंस कोर्स के रूप में पढ़ेंगे? ऐसी बहुत सारी विसंगतियां प्राचार्य और प्रबंधकों के सामने आएंगी। ऐसी अफरा-तफरी वाली परिस्थितियों से बचने के लिए शासन और कुलपति से गुआक्टा अनुरोध करती है कि कालेजों में यह व्यवस्था कम से कम दो वर्षों के लिए टाल देनी चाहिए।

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