साहित्य - संस्कृति

सुभाष राय को दिया गया पहला देवेन्द्र कुमार स्मृति कविता सम्मान

अभिव्यक्ति के नए अंदाज खोजने वाले कवि हैं सुभाष राय: प्रो कृष्ण चंद्र लाल
गोरखपुर। प्रेमचंद साहित्य संस्थान और संस्थान की त्रैमासिक पत्रिका ‘ साखी ’ द्वारा आज दोपहर प्रेमचंद पार्क में आयोजित एक कार्यक्रम में कवि-लेखक-पत्रकार सुभाष राय को पहला देवेन्द्र कुमार स्मृति कविता सम्मान दिया गया। संस्थान के निदेशक प्रो सदानंद शाही, कार्यक्रम की अध्यक्षता कर रहे गोरखपुर विश्वविद्यालय के हिंदी विभाग के पूर्व अध्यक्ष प्रो कृष्ण चन्द्र लाल, मुख्य अतिथि प्रो अनंत मिश्र और निर्णायक मंडल के सदस्य-प्रो अनिल कुमार राय, डाॅ रघुवंश मणि, स्वप्निल श्रीवास्तव व वरिष्ठ कवि देवेन्द्र आर्य की मौजूदगी में मान पत्र, स्मृति चिन्ह, शाल और 11 हजार रूपए की सम्मान राशि भेंट की।
इस मौके पर वक्ताओं ने अनूठे कवि देवेन्द्र कुमार को याद करते हुए सुभाष राय को उनकी परम्परा का कवि बताते हुए उनकी कविता की विशिष्टिताओं को रेखांकित किया।
सभी वक्ताओं ने देवेन्द्र कुमार की स्मृति को अक्षुण्ण रखने के लिए उनके सम्मान में कविता पुरस्कार प्रारंभ किए जाने की सराहना की।
कार्यक्रम की अध्यक्षता कर रहे प्रो कृष्ण चन्द्र लाल ने देवेन्द्र कुमार बंगाली के साथ अपनी यादांे को साझा करते हुए कहा कि वे बहुत कम बोलने वाले सहज, विनम्र व्यक्ति थे लेकिन उनकी कविताओं में क्रांति और प्रतिरोध की बातें हैं। वे अपनी कविता से अपने वर्ग के लोगों को जागरूक और सचेत करते हैं। उनकी कविता बड़ी व्याख्या की मांग करती हैं। उनकी कविता ‘ बहस जरूरी है’  और गीत ‘ एक पेड़ चांदनी ’ की चर्चा करते हुए उन्हें उन्हें लैंड मार्क बताया।
उन्होंने सम्मानित कवि सुभाष राय को जिजीविषा का कवि बताते हुए कहा कि वे सकारात्मक सोच के कवि हैं और सबसे बड़ी बात है कि वे अभिव्यक्ति के नए अंदाज खोजने वाले कवि हैं, उनकी कविताओं का स्वर नया है। वे संवेदना और चेतना के उन अछूते विंदुओं की ओर ले जाते हैं जहां हमारा ध्यान आसानी से नहीं जाता है।
कार्यक्रम के मुख्य अतिथि प्रो अनंत मिश्र ने कहा कि देवेन्द्र कुमार गहरे मौन की कवि हैं। जीवन को धीरे से थपथपाने से बड़ी कविता का द्वार खुल जाता है। देवेन्द्र कुमार बंगाली ने यही कार्य किया। जो कवि व्यवस्था और सत्ता की क्रूरता को जितना दूर तक देख पाता है, उतना बड़ा कवि बना जाता है। देवेन्द्र कुमार इसको गहराई से देखते हैं और यह उनकी कविताओं में अभिव्यक्त हुआ। उन्होंने कहा कि जिनका कविता से दिली रिश्ता है वे देवेन्द्र कुमार को कभी भूल नहीं सकते भले ही देवेन्द्र कुमार को कोई पुरस्कार नहीं मिला और उनका ठीक से मूल्यांकन नहीं हुआ।
देवेन्द्र कुमार की प्रतिनिधि कविताओं की पुस्तक का सम्पादन करने वाले वरिष्ठ कवि देवेन्द्र आर्य ने कहा कि सुभाष राय का वही सरोकार है जो देवेन्द्र कुमार की थी। सुभाष राय जनसाधारण को सम्प्रेषणीय भाषा में हमें कविता उपलब्ध कराते हैं।
देवेन्द्र कुमार स्मृति कविता सम्मान के निर्णायक मंडल के सदस्य वरिष्ठ आलोचक डाॅ. रघुवंश मणि ने कहा कि देवेन्द्र कुमार ऐसे कवि थे जो पारम्परिक छंदों से लेकर मुक्त छंद तक लिखते थे। उनकी संवेदना बहुत गहरी थी। वे अपने समय को जिस तरह देख पाए, उनके समकालीन बहुत से कवि नहीं कर पाए। सम्मानित कवि सुभाष राय की कविता पर विचार करते हुए उन्होंने कहा कि वे देवेन्द्र कुमार की परम्परा से गहराई से जुड़ते हैं।
वरिष्ठ कवि स्वप्निल श्रीवस्तव ने कहा कि देवेन्द्र कुमार ने लोक स्मृति और स्थानीयता को अपनी कविता में रूपायित किया। उनकी लोकजीवन के प्रति गहरी संलग्नता थी। वे गहरी स्थानीयता, लोक चेतना के साथ राजनैतिक चेतना और प्रतिरोध के कवि थे। उन्होंने सुभाष राय की कविता पर चर्चा करते हुए कहा कि उनकी कविता में राजनैतिक चेतना व प्रतिरोध हैं। वे घटनाओं को दृश्य बना कर कविता में रूपान्तरित करते हैं। पारिवारिक जीवन पर लिखी उनकी कविताएं अद्भुत हैं। उनकी कविता इसलिए मूल्यवान है क्योंकि उसमें जीवन हैं।
गोरखपुर विश्वविद्यालय के हिंदी विभाग के अध्यक्ष प्रो अनिल कुमार राय ने कहा कि विचार,अनुभूति और भाषा के अलग-अलग घटकों के अपूर्व रासायनिक संश्लेषण से कविता की आत्मा बनती है। यदि किसी कवि की कविता में कविता की आत्मा की पहचान संभव नहीं है तो मुझे लगता है कि वह महत्वपूर्ण कवि नहीं है। उन्होंने कहा कि कविता पढ़ते हुए या सुनते हुए पाठक या श्रोता के मुंह से यदि यह अचानक निकल जाए कि देखो यह रही कविता तो रचना सार्थक हो जाती है। सुभाष राय की कविता को पढ़ते हुए बार-बार यह महसूस होता है। सुभाष राय की दो कविताओं का पाठ करते हुए उन्होंने कहा कि वे देवेन्द्र कुमार की परम्परा के सच्चे और इमानदार उत्तराधिकारी हैं।
सम्मानित कवि सुभाष राय ने अपने वक्तव्य को देवेन्द्र कुमार की कविता पर केन्द्रित करते हुए उन पर लिखे अपने आलेख का पाठ किया और कहा कि देवेन्द्र कुमार की कविता से हमें बहुत महत्वपूर्ण सूत्र मिलते हैं कि आज हमारे समय में जिस तरह का अंधेरा है, विकट निरूपायता है उसे कैसे बदले, अंधेरे से कैसे निजात पाए। यदि हम सोचना शुरू करेंगे तो हमें लड़ने की शक्ति मिलेगी। बिना लड़े किसी को मुक्ति नहीं मिलने वाली है। देवेन्द्र कुमार की कविता में जिस तरह अंधेरे में घोड़े की टाप सुनायी देती है, उसे हम सुनें और उस दिशा में आगे बढें।
कार्यक्रम के प्रारंभ में संस्थान के निदेशक प्रोफेसर सदानंद शाही ने देवेन्द्र कुमार स्मृति सम्मान को शुरू करने के विचार की चर्चा करते हुए कहा कि देवेन्द्र कुमार गोरखपुर की धरती से जुड़े हिन्दी के अनूठे कवि गीतकार रहे हैं। बेहतरीन काव्य प्रतिभा के बावजूद काव्य परिदृश्य में उनकी उपस्थिति उस तरह महसूस नहीं की जाती है, जिसके वे हकदार हैं। इसके सामाजिक कारण हैं। उन्हें अन्यान्य गैर साहित्यिक कारणों से विस्मृत करने की कोशिश की जाती रही है। यह सम्मान देवेन्द्र कुमार की स्मृति को जीवंत रखने की विनम्र कोशिश है।
वरिष्ठ पत्रकार अशोक चौधरी ने मान पत्र का वाचन किया। संचालन संस्थान के सचिव एवं गोरखपुर विश्वविद्यालय के हिंदी विभाग के प्रोफेसर राजेश मल्ल ने किया। आभार ज्ञापन संस्थान के पूर्व सचिव मनोज कुमार सिंह ने किया।
इस मौके पर प्रो चितरंजन मिश्र, वरिष्ठ कथाकार मदन मोहन, फतेहबहादुर सिंह, वरिष्ठ पत्रकार संजय सिंह, कामिल खान, कपिलदेव, प्रेमव्रत तिवारी, देवेन्द्र कुमार बंगाली के पुत्र दुष्यंत कुमार व उनका परिवार, अजय सिंह, वीरेन्द्र मिश्र दीपक, प्रदीप सुविज्ञ, आनंद पांडेय, संदीप राय, आंनद राय, अविनाश, राजेश मणि, मांधाता सिंह, आरके सिंह, इंदूशेखर, राजाराम चैधरी, ऋषभ सिंह, राजू मौर्य, मनोज मिश्र, अबुलैश अंसारी आदि उपस्थित थे। पूरे कार्यक्रम का साखी पत्रिका के फेसबुक पेज से लाइव प्रसारण भी किया गया।

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