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स्मृति ग्रन्थ ‘ ज्ञान बाबू ’ का लोकार्पण, मनोज सिंह को पहला ज्ञान बाबू स्मृति पत्रकारिता सम्मान

गोरखपुर। आजादी के बाद के समय के पूर्वी उत्तर प्रदेश की हिन्दी पत्रकारिता के सशक्त हस्ताक्षर स्वर्गीय ज्ञान प्रकाश राय की स्मृति में आज गोरखपुर में आयोजित एक कार्यक्रम में स्मृति ग्रन्थ ‘ ज्ञान बाबू ’ का लोकार्पण हुआ और खोजी व जनपक्षधर पत्रकारिता के लिए वरिष्ठ पत्रकार मनोज कुमार सिंह को पहला ज्ञान बाबू स्मृति पत्रकारिता सम्मान दिया गया। सम्मान के बतौर उन्हें स्मृति चिन्ह, स्मृति ग्रंथ, उत्तरीय और सम्मान राशि भेंट किया गया।
कार्यक्रम का आयोजन गोरखपुर के प्रेस क्लब सभागार में ज्ञान प्रकाश राय स्मृति पत्रकारिता संस्थान ने किया।
पूर्वांचल में वर्ष 1945 से 1980 तक स्वर्गीय ज्ञानप्रकाश राय की पत्रकारिता का कार्यकाल रहा। शुरुआती दौर में वे समाचार एजेंसी से जुड़े रहे। वे सन 1949 में लखनऊ के अंग्रेजी दैनिक नेशनल हेराल्ड और 1952 में बनारस से प्रकाशित हिंदी दैनिक ‘ आज’ के गोरखपुर प्रतिनिधि बनाए गए। एक ट्रेन दुर्घटना में घायल होने के बाद 1980 से उन्होंने सक्रिय पत्रकारिता से सन्यास ले लिया।उनका देहांत 2002 में गोरखपुर में हुआ।
इस मौके पर मुख्य अतिथि के रूप में हिंदी के वरिष्ठ आलोचक व साहित्य अकादमी के पूर्व अध्यक्ष प्रो.विश्वनाथ प्रसाद तिवारी, गोरखपुर विश्वविद्यालय के हिन्दी विभाग के पूर्व अध्यक्ष प्रो चित्तरंजन मिश्र, सम्मान समिति के सदस्य वरिष्ठ पत्रकार एवं सूचना आयुक्त हर्षवर्धन शाही, राष्ट्रीय सहारा के संपादक दीप्त भानु डे, गोरखपुर विश्वविद्यालय के हिन्दी विभाग के पूर्व अध्यक्ष प्रो. अनिल राय, अमर उजाला के स्थानीय सम्पादक एवं कवि अरूण आदित्य, प्रो राजेश मल्ल सहित नगर के बुद्धिजीवी, साहित्यकार, पत्रकार व सामाजिक कार्यकर्ता बड़ी संख्या में उपस्थित थे। कार्यक्रम की अध्यक्षता प्रो. अनन्त मिश्र ने की।
अपने उद्बोधन में प्रो विश्वनाथ प्रसाद तिवारी ने ज्ञान बाबू की यादें साझा करते हुए कहा कि पत्रकार समाज की आँख होता है। वह समाज में लोक का प्रतिनिधित्व करता है। महात्मा गांधी ने कहा था कि उन्होंने पत्रकारिता इसलिए शुरू की क्योंकि वह उनके जीवन के पक्ष में सहायक है। भारतीय पत्रकारिता का विकास स्वाधीनता आंदोलन के साथ-साथ हुआ। इसी वजह से भारतीय पत्रकारिता का सबसे बड़ा मूल्य स्वाधीनता का मूल्य है। स्वाधीनता का मूल्य जिसके भीतर होगा उसमें साहस और प्रतिरोध जरूर होगा। भारतेंदु युग के सारे लेखक पत्रकार थे। साहित्य का अधिकतर समाज पत्रकारिता का है। पत्रकारिता का इतिहास साहित्य के साथ ही चलता रहा है। आज उदारीकरण और पूँजी के प्रभाव आदि ने पत्रकारिता के प्रतिरोध की क्षमता कर दी है। पत्रकार को स्वतंत्र आवाज के रूप में बोलना चाहिए। इससे उसकी विश्वसनीयता बनती है जिसका असर समाज पर अधिक पड़ता है।
कार्यक्रम की अध्यक्षता कर रहे प्रो अनंत मिश्र ने कहा कि साहित्य और पत्रकारिता एक ही वृंद के फूल हैं। पत्रकारिता का भीतरी मर्म स्वाधीनता है। स्वाधीनता अपरिग्रह से आती है। पत्रकारिता पर आज पूंजीवाद का बड़ा असर है। इसलिए उसकी आवाज कमजोर है। निर्मम और क्रूर व्यवस्था के खिलाफ साहस पूर्वक लिखना पत्रकारिता का धर्म है। ईमानदारी और मानवतावाद एक साथ बहुत मुश्किल है लेकिन पत्रकार को इसे निभाना ही पड़ेगा।
प्रो चित्तरंजन मिश्र ने कहा कि आज सत्ता असहमति की आवाज का क्रूरता से दमन कर रही है और मीडिया का बड़ा वर्ग इसकी मुखालफत करने के बजाय इसको जायज ठहराने में लगा है। इससे बड़ी विडम्बना और क्या हो सकती है। पूंजी से जुड़ी पत्रकारिता बुलडोजर पत्रकारिता हो गयी है।
ज्ञान प्रकाश राय पत्रकारिता सम्मान की चयन समिति के सदस्य वरिष्ठ पत्रकार एवं वर्तमान में सूचना आयुक्त हर्षवर्धन शाही ने अपने वक्तव्य में कहा कि दशरथ प्रसाद द्विवेदी और ज्ञान बाबू उनके आदर्श रहे हैं। ‘ स्वदेश ’ और दशरथ प्रसाद द्विवेदी पर पूर्व में लिखा गया लेकिन इस स्मृति ग्रन्थ के जरिए गोरखपुर की पत्रकारिता के इतिहास के एक कालखंड को सामने लाने का प्रयास किया गया है जिसके बड़े पुरोधा ज्ञान बाबू रहे हैं। उन्होंने कहा कि आज पत्रकार स्वाध्याय से दूर है और लिखने-बोलने की आजादी के लिए वह कुछ भी त्याग करने को तैयार नहीं है जबकि भारतीय पत्रकारिता ने इन मूल्यों की रक्षा में सदैव बड़ी कीमत चुकायी है।
पहले ज्ञान प्रकाश राय स्मृति पत्रकारिता सम्मान से सम्मानित पत्रकार मनोज कुमार सिंह ने अपने उद्बोधन में कहा कि भारतीय पत्रकारिता का जन्म ही व्यवस्था से टकराव और बोलने की आजादी के लिए राज्य दमन का सामना करने से हुआ है। आजादी की लड़ाई मे पत्रकारों ने शहादत दी और सरकार के जुल्म सहे। गोरखपुर की पत्रकारिता का इतिहास भी इसी तरह का है। प्रेमचंद, फिराक, दशरथ प्रसाद द्विवेदी, पांडेय बेचन शर्मा उग्र, रियाज खैराबादी ने गोरखपुर में पत्रकारिता के सुनहरे अध्याय की रचना की है। उनकी नजीर आज के कठिन दौर में हमें सच को निर्भीकता से कहने, व्यवस्था की क्रूरता का पर्दाफाश करने और गरीब-मजलूमों की आवाज बनने की प्रेरणा देती है। उन्होंने मौजूदा दौर में पत्रकारों के दमन, प्रेस की स्वततंत्रता पर हमले, मीडिया और प्रकाशन उद्योग में बडे़ पैमाने पर पत्रकारों की छंटनी व बहिष्करण, पूंजी से जुडे पत्रकारिता संस्थानों के पतन का जिक्र करते हुए कहा कि इस मुश्किल दौर में भी स्वतंत्र पत्रकारों, जन सहयोग से संचालित छोटे मीडिया समूहों व यू ट्यूब पत्रकारों द्वारा की जा रही साहसिक पत्रकारिता जनता के लिए उम्मीद की किरन है।
गोरखपुर विश्वविद्यालय के हिन्दी विभाग के प्रोफेसर एवं पत्रकारिता पाठ्यक्रम के समन्वयक प्रो राजेश मल्ल ने कहा कि आज का कार्यक्रम इस मायने में अनूठा है कि हम एक साथ तीन पीढ़ी के पत्रकारों के साथ संवाद कर रहे हैं। स्मृति ग्रन्थ का प्रकाशन व इस कार्यक्रम का आयोजन भले ज्ञान बाबू के परिजनों ने किया है लेकिन उनका यह उद्यम समाज व पत्रकारिता के लिए मानीखेज है।
अमर उजाला के स्थानीय सम्पादक एवं कवि अरूण आदित्य ने कहा कि दौर भले बदल गया हो लेकिन पत्रकारिता को आज कैरियर और स्टैंड में से किसी एक को चुनना पड़े तो उसे स्टैंड को ही चुनना चाहिए। हमें उम्मीद करनी चाहिए कि आज के युवा पत्रकार ज्ञान बाबू के आदर्शो से सीख लेंगे।
कार्यक्रम का संचालन कर रहे प्रो अनिल राय ने कहा कि ज्ञान बाबू ने पत्रकारिता की अपनी जो परम्परा बनायी है उसको निभाना आज के पत्रकारों के लिए एक बड़ी चुनौती है लेकिन सच्ची पत्रकारिता के लिए यह जरूरी भी है।
महराजगंज से आये वरिष्ठ पत्रकार कृष्ण मोहन अग्रवाल ने वर्तमान दौर में पत्रकारिता में मूल्यों के गिरावट पर चिंता जताते हुए ज्ञान बाबू की स्मृतियों को स्मरण किया।
कार्यक्रम में स्मृति ग्रन्थ के संस्मरण लेखकों – वरिष्ठ पत्रकार श्यामानंद, जमीर अहमद पयाम, कृष्ण मोहन अग्रवाल, हर्षवर्धन शाही, राम मूर्ति, जितेंद्र राय को सम्मानित किया गया। लेखक शंकर प्रसाद गुप्त, क़ामिल खान, राजमणि पांडेय, तड़ित कुमार, दिनेश चंद्र श्रीवास्तव, रामधनी द्विवेदी, रामेश्वर पांडेय, दयानंद पांडेय, सुल्तान अहमद रिज़वी इस मौके पर नहीं आ सके जिन्हें सम्पर्क कर यथानुसार सम्मानित किया जाएगा। वरिष्ठ पत्रकार मुहम्मद ज़की को मृत्युपरांत सम्मान प्रदान करने हेतु परिवार से सम्पर्क किया जाएगा।। प्रेसक्लब के अध्यक्ष श्री मार्कण्डेय मणि को पत्रकार प्रतिनिधि के बतौर सम्मानित किया गया। धन्यवाद ज्ञापन पत्रकारिता संस्थान के संयोजक कथाकार रवि राय ने किया।