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विमल किशोर की कविताओं में स्त्री मुक्ति की आकांक्षा – उषा राय

लखनऊ। लखनऊ पुस्तक मेले में , 18 मार्च को विमल किशोर के कविता संग्रह ‘पंख खोलूं उड़ चलूं’ का विमोचन किया गया। कार्यक्रम का आयोजन जन संस्कृति मंच की ओर से हुआ। इसकी अध्यक्षता शायरा तस्वीर नक़वी ने किया। संग्रह में 46 कविताएं संकलित हैं। इसकी भूमिका जाने माने कवि स्वप्निल श्रीवास्तव और शोभा सिंह ने लिखी है।

विमल किशोर की कविताओं पर कवि-कथाकार उषा राय ने विस्तार में अपनी बात रखी। उन्होंने कहा कि विमल जी स्त्री मुक्ति की बात करती हैं। वे इस बात की प्रबल पैरोकारी करती हैं कि स्त्री मुक्ति का आंदोलन पुरुष के खिलाफ नहीं बल्कि पितृसत्तात्मक विचारधारा के खि़लाफ़ है। इनकी कविताओं को दो भागों में बांटा जा सकता है – एक वह जो  सत्तापक्ष है, शोषक है, हुक्मरान है। उनके प्रति कवि के मन में हिकारत के भाव हैं। वे कहीं पर उनका मजाक उड़ाती हैं तो कहीं पर तीखे सवाल करती हैं। वहीं, दूसरे भाग की कविताओं में व्यापक रूप् से स्त्री मुक्ति की आकांक्षा है। इनकी कविताओं में रिक्शावाला, कूड़ा बीनते बच्चे, कामवाली, गटर में काम करने वाले मजदूर, हाशिए के लोग का जीवन और संघर्ष है। इनकी कविताएं जनवादी संघर्ष और सामाजिक बदलाव की कविताएं हैं।

युवा कवयित्री रोली शंकर ने कहा कि विमल किशोर संवेदनशील कवयित्री हैं। यह न सिर्फ अपना बल्कि दूसरों के दुख को जीती हैं। मजदूर हो, कामवाली हो, स्त्रियां हों या कश्मीर में हुई किसी बालिका के साथ दुराचार हो, इन सब पर उनकी दृष्टि जाती है और उसे संवेदना के साथ व्यक्त करती हैं। रोली शंकर ने विमल किशोर की दो कविताओं ‘रोटी’ और ‘नया सूरज’ का पाठ भी किया जिसमें नया सूरज के माध्यम से खूबसूरत समाज का स्वप्न है।

इस मौके पर विमल किशोर ने संग्रह से कई कविताओं का पाठ किया। शीर्षक कविता ‘पंख खोलू उड़ चलूं’ में पुरुष प्रधान समाज में स्त्री के मनोभावों को यूं व्यक्त किया गया है – ‘मैं कुछ पढ़ना चाहती हूं/मैं कुछ लिखना चाहती हूं/मैं घर की चारदीवारी से/बाहर निकलना चाहती हूं/…मैं समाज में कुछ कर दिखाना चाहती हूं’। उनकी कविता में घड़ी समय का प्रतीक है जो स्त्री समाज के लिए बन्दिशें बन जाता है। मुक्ति की भावना कविता में इस तरह व्यक्त होती है ‘यह घड़ी जो मुझे बांधे है/उसे पटक दूं/सबकुछ झटक दूं/मुक्त हो जाऊं/अपने सपनों को हवा दूं/समय से बाहर निकलूं/पंख खोलूं/और उड़ चलूं खुले आसमान में’।

विमल किशोर की कविताओं में स्त्री जीवन के विविध पहलुओं की अभिव्यक्ति है। इसके साथ वे लोग  भी आते हैं जो शोषित-पीड़ित तथा हाशिए पर ढ़केल दिए गए हैं। ऐसी ही कविता ‘गटर’ है जिसका पाठ विमल किशोर ने किया। कहती हैं – ‘वे उतरे थे मेन होल में/सीमा पर युद्ध के  लिए जाते सैनिक की तरह/और शहीद जैसे लौटते हैं/उस तरह बाहर नहीं आई थीं उनकी लाशें’…… इस संबंध में सरकार द्वारा ‘स्वच्छता अभियान’ के नाम पर जो दिखावा किया जा रहा है, उस पर भी वे चोट करती हैं ‘जो जोर-शोर से चला रहे थे/स्वच्छता का अभियान/लाशें देख भाग खड़े हुए/दूसरे दिन वे दिखे लकदक कपड़ों  में/उनके  हाथों में बड़े-बड़े झाड़ू  थे/जिसे  लहरा रहे थे/साफ-सुथरी सड़कों पर’। विमल किशोर ने ‘बलात्कारी सिर्फ बलात्कारी होते हैं’ कविता भी सुनाई।

कार्यक्रम की अध्यक्षता शायरा तस्वीर नकवी ने किया। उनका कहना था की संवेदना रहेगी तो कविता रहेगी। कविता का संवेदना से गहरा नाता है। उन्होंने स्वप्निल श्रीवास्तव और शोभा सिंह को उद्धृत करते हुए कहा की कविताएं बताती हैं कि हमारा यथार्थ बदल चुका है। स्त्री उड़ना चाहती है। अड़चनी बहुत हैं। विमल किशोर की कविताओं में पंख खोलने और उड़ने की चाहत है। मेरी नज़्म भी इसी तरह की है। लगता है हमारी सोच एक तरह की है। उन्होंने अपनी नज़्म सुनाई जिसमें स्त्री जीवन, उसका संघर्ष और आकांक्षा व्यक्त हुई है।

इस मौके पर हुई कवि गोष्ठी में इंदु पांडे ने ‘बेटियां’ शीर्षक से कविता का पाठ किया । वे कहती हैं ‘बेटियां तुम आजाद हो /कोई वस्तु नहीं /जो एक जगह से दूसरी जगह रख दी जाओ’। अलका पांडे ने तीन छोटी कविताएं सुनाईं। एक कविता में कहती हैं – ‘जिस घर में रहती हूँ /उसे अपना समझती हूँ/ददिहाल को अपना समझती हूँ/ननिहाल को भी अपना समझती हूँ…./सब मेरा है मेरा, सिर्फ मेरा/समझने- सोचने -मानने में/क्यों लग जाते हैं सालों साल/यहाँ पर बिताया/और वहाँ पर निभाया/यह है पितृसत्ता की चाल’।

जन संस्कृति मंच लखनऊ के अध्यक्ष कवि और आलोचक चंद्रेश्वर ने भी मंच के आग्रह पर अपनी कविता ‘मँगरा कीड़ा’ का पाठ किया और विमल किशोर को उनके कविता संग्रह के लिए हार्दिक बधाई दी। अपनी कविता में चापलूस संस्कृति पर चोट करते हुए वो कहते हैं ‘चापलूस किसी समाज/या संस्था में होते हैं/मँगरा कीड़े की तरह/जो साबुत लकड़ी/या हरे-भरे पेड़ के स्वस्थ मोटे तने/या टहनी को भी बना डालते हैं/एकदम खोखला’। कविता में इस संस्कृति की अनेक छवियों को उकेरा गया है।

कार्यक्रम का संचालन जन संस्कृति मंच लखनऊ के सह संयोजक कलीम खान ने किया और धन्यवाद ज्ञापन दूसरे सह सचिव राकेश कुमार सैनी ने दिया। इस अवसर पर वीरेंद्र सारंग, सुभाष राय, देवनाथ द्विवेदी, कल्पना पांडेय, राजा सिंह, सीमा मधुरिमा, मंदाकिनी राय, अवंतिका सिंह, अशोक वर्मा, अशोक मिश्र, केके शुक्ला, अनूप मणि त्रिपाठी, आशीष सिंह, अनिल कुमार श्रीवास्तव, ओमप्रकाश तिवारी, अजय शेखर सिंह, अरविंद शर्मा, आशुतोष श्रीवास्तव, आशिता श्रीवास्तव, कौशल किशोर आदि उपस्थित थे।

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