गोरखपुर। इप्टा की गोरखपुर इकाई ने 25 मई को अपने स्थापना दिवस पर गोरखपुर जर्नलिस्ट्स प्रेस क्लब सभागार में ‘ इप्टा की विरासत और चुनौतियाँ ‘ विषय पर गोष्ठी और जन गीतों के गायन का कार्यक्रम आयोजित किया।
कार्यक्रम में सबसे पहले शैलेन्द्र निगम, आसिफ सईद, संजय सत्यम,अभिषेक शर्मा, कुसुम ज्योति, विनोद चंद्रेश , उदयन मुखर्जी और राम आसरे ने जन गीत प्रस्तुत किए।
इसके बाद इप्टा के संयोजक डॉ मुमताज़ खान ने गोष्ठी में नहीं आ सके गोरखपुर विश्वविद्यालय के हिन्दी विभाग के पूर्व अध्यक्ष प्रो चितरंजन मिश्र का सन्देश पढ़ा। प्रो चितरंजन मिश्र ने अपने संदेश में कहा कि नाटक साहित्य की एक ऐसी ख़ास वि
उन्होंने कहा कि इप्टा ने हिन्दी ही न
प्रो मिश्र ने कहा कि इप्टा से जुड़े रंगकर्मियों ने
उन्होंने कहा कि आज जब पूँजी, बाज़ार, फासीवादी और सांप्रदायिक ताकतें पूरे समाज को धर्म और समुदाय के आधार पर बाँटकर अपना राज चलाने
गोष्ठी में जन संस्कृति मंच के महासचिव मनोज कुमार सिंह ने इप्टा की स्थापना और उसके 80 वर्ष की यात्रा की विस्तार से चर्चा करते हुए कहा कि आज के समय की चुनौतियों का मुक़ाबला करने के लिये इप्टा की स्थापना के समय जिस तरह लेखक, कलाकार, रंगकर्मी सहित तमाम विधाओं के रचनाकार एकजुट हुए थे उसी तरह एकजुटता की ज़रूरत है। यह वक्त की आवाज़ है। आज सत्ता पुनरुत्थानवादी एजेंडा और प्रॉपेगेंडा के ज़रिए लोगों को बाँटने , एक दूसरे के ख़िलाफ़ नफ़रत और हिंसा को प्रोत्साहित करने का कार्य कर रही है। एक कठिन दौर में जब सत्ता सांस्कृतिक वर्चस्व के लिए सभी कला रूपों को अपनी चाकरी में लगा लेने की कोशिश की जा रही है , सांस्कृतिक संगठनों को जन संस्कृति के विकास के लिए पूरी ताक़त लगा देनी चाहिए।
वरिष्ठ पत्रकार अशोक चौधरी ने कहा कि समय और परिस्थिति हमसे माँग कर रही है कि अपने कला रूपों को जनता के बीच लेकर जायें और एक दौर में इप्टा ने जैसा बड़ा हस्तक्षेप किया उसी तरह का हस्तक्षेप किया जाय। इसके अलावा कोई विकल्प नहीं है।
प्रो अरविंद त्रिपाठी ने कहा कि आज सभी अच्छे चीजों पर सत्ता और बाज़ार की नज़र है। इप्टा की विरासत परिवर्तनकामी चेतना की थी। उसने लोगों की इस सोच को बदल दिया कि कला और साहित्य सिर्फ़ मनोरंजन के लिए है। इप्टा के सभी नाटक परिवर्तनकामी रहे। उन्होंने कहा कि साहित्य ने बहुत पहले फासीवाद के ख़तरे को भाँप लिया था और इससे लड़ने की आवश्यकता बतायी थी। उन्होंने विख्यात नाटककर हबीब तनवीर के जन्म शताब्दी वर्ष के मौक़े पर आयोजन करने पर बल देते हुए कहा कि वे रंग कर्मियों के आज भी रोल मॉडल हैं।
प्रो त्रिपाठी ने कहा कि अपने विरासत के सूत्र को पकड़ कर इप्टा को गाँव, किसानों, मज़दूरों, नौजवानों के बीच जाना चाहिये।
धन्यवाद ज्ञापन डॉ मुमताज़ खान ने किया। इस अवसर पर जय प्रकाश मल्ल, राकेश कुमार श्रीवास्तव, राममूर्ति, कलीमुल हक, धर्मेन्द्र दुबे आदि उपस्थित थे।