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नगर निकाय चुनाव : भाजपा की जीत पर विपक्ष के लिए आशाजनक संकेत भी

नगर निकाय चुनाव में भाजपा ने एक बार फिर अपनी शानदार प्रदर्शन को दोहराया है और 17 में से 17 नगर निगमों के महापौर पद पर जीत हासिल की है। नगर पालिकाओं और नगर पंचायतों के अध्यक्ष और सदस्य पदों पर भी उसने पिछले चुनाव के मुकाबले अपने प्रदर्शन को सुधारा है। विपक्षी दलों ने पिछले चुनावों से कोई सबक नहीं लेते हुए इस बार भी भाजपा के खिलाफ प्रत्याशियों के चयन से लेकर चुनाव प्रचार तक कोई ठोस रणनीति नहीं बनायी जिसके कारण उनकी सीटें कम हुई। छोटे दलों-आम आदमी पार्टी, ऑल इंडिया मजलिस-ए-इत्तेहादुल मुस्लिमीन (एआईएमआईएम) और रालोद ने जरूर अपनी स्थिति को और ठीक किया जबकि चन्द्रशेखर आजाद की आजाद समाज पार्टी ने तीन नगर पंचायत अध्यक्ष पदों को जीत कर अपने बढ़ते कदम का मुजाहिरा किया।

मई महीने की 13 तारीख को कर्नाटक विधान सभा चुनाव के साथ उत्तर प्रदेश के नगर निकाय चुनाव के नतीजे आये। कर्नाटक में करारी हार से सदमे में आयी भाजपा को यूपी नगर निकाय चुनाव के नतीजों ने जरूर राहत दी लेकिन आंकड़ों के इतर इस चुनाव नतीजों में कई ऐसे संकेत हैं जो बताते हैं कि यदि विपक्षी दल जनता के सवालों को लेकर सदन से सड़क पर संघर्ष करें तो भाजपा सरकार की नाकामियों से अंसतुष्ट जनता उन्हें समर्थन देने के लिए तैयार है।

भाजपा 17 (100) 813 (57.75) 14 (87.5) 596 (45.85)
सपा 0 191 (13.45) 0 202 (15.45)
बसपा 0 85 (5.99) 2 (12.5) 147 (11.31)
कांग्रेस 0 77 (5.42) 0 110 (8.46)
आप 0 8 (0.56) 0 2 (0.23)
एआईएमआईएम 0 19 (1.34) 0 12 (0.92)
रालोद 0 10 (0.7) 0 4 (0.31)
निर्दलीय 0 206 (14.5) 225 (17.31)

नगरीय क्षेत्रों में भाजपा की पकड़ अपने कमजोर दिनों में भी मजबूत रही है। वर्ष 2012 में उसने 12 नगर निगम निगमों के महापौर पद में से 10 पर जीत हासिल की थी। दो पर निर्दलीय उम्मीदवार विजयी हुए थे। नगर निगम पार्षद के 980 पदों में से उसने 304 जीते थे। कांग्रेस के 100 पार्षद जीते जबकि 558 निर्दलीय जीते थे। इस चुनाव में सपा और बसपा ने चुनाव में हिस्सा नहीं लिया था।

वर्ष 2017 मेें यूपी में भाजपा की प्रचंड जीत के बाद हुए नगर निकाय चुनाव में भाजपा ने नगर निगमों मे ंतो बेहतर प्रदर्शन किया लेकिन नगर पालिकाओं और नगर पंचायतों में उसका प्रदर्शन बहुत अच्छा नहीं था। इस चुनाव में उसने 16 नगर निगमों में से 14 में महापौर पद पर जीत हासिल की। मेरठ ओर अलीगढ़ में बसपा जीती जबकि सपा को एक भी सीट नहीं मिली थी। नगर निगमों के 45 फीसदी से अधिक पार्षद सीटों पर भाजपा विजयी रही थीं। नगर पालिका अध्यक्ष के 198 पदों में से भाजपा ने 70 जबकि सपा ने 45 और बसपा ने 29 सीटें जीती थीं। नगर पंचायतों में 438 सीटों में से भाजपा को सिर्फ 100 सीट पर जीत मिली थी जबकि 182 निर्दलीय जीते थे। सपा ने 83 और बसपा ने 45 नगर पंचायत अध्यक्ष पद पर जीत हासिल की थी।

इस वर्ष के नगर निकाय चुनाव की तैयारी भाजपा ने बहुत पहले शुरू कर दी। सबसे पहले योगी सरकार की ओर से शहरी निकायों का सीमा विस्तार किया गया। शहरी निकायों के विस्तार भाजपा के कोर वोटर के दृष्टिगत किया गया। वार्डों का नामकरण भाजपा ने अपने हिन्दुत्ववादी एजेंडे के तहत किया। गोरखपुर में मुस्लिम नाम वाले वार्डों के नाम बदल दिए गए। इसी तरह कई और जिलों में किया गया।

शाहजहांपुर को नगर निगम बनाते हुए प्रदेश में नगर निगमों की संख्या 17 कर दी गई। इस तरह 106 नये नगर पंचायत और नगर पालिका बनाए गए। वार्डों की संख्या 1917 और बढ़ाते हुए 13924 कर दी गईं। इस वर्ष कुल 760 निकायों के अध्यक्ष और 13924 वार्डों के सदस्य पद के लिए चुनाव हुए।

नगर पालिका

भाजपा 89 (44.72) 1360 (25.53) 70 (35.35) 923 (17.50)
सपा 35 (17.59) 425 (7.98) 45 (22.73) 477 (9.07)
बसपा 16 (8.04) 191 (3.59) 29(14.65) 262(4.98)
कांग्रेस 4 (2.01) 91(1.71) 9 (4.55) 158(3.00)
आप 3 (1.51) 30 (0.56) 0 17 (0.32)
एआईएमआईएम 3 (1.51) 33 (0.62) 0 7 (0.13)
रालोद 7 (3.52) 40 (0.75) 0 12 (0.23)
निर्दलीय 41 (20.6) 3130 (58.76) 43 (21.77) 3379 (64.23)

नगर निकाय चुनाव में भाजपा ने हिन्दू मतों के ध्रुवीकरण के लिए कोई कोर कसर नहीं छोड़ी। खुद मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने हर जिले मेें सभाएं करते हुए प्रयागराज में पूर्व सांसद अतीक अहमद और उनके भाई अशरफ की पुलिस हिरासत में हुई हत्या को प्रदेश में माफियाओं के खिलाफ कारवाई के बतौर प्रचारित किया। योगी आदित्यनाथ समेत सभी बड़े नेताओं ने सभाएं की। सभी सांसदों, विधायकों, मंत्रियों को चुनाव प्रचार में लगाया। इसके मुकाबले सपा के अध्यक्ष पूर्व मुख्यमंत्री अखिलेश यादव ने कुछ स्थानों पर ही सभा की। लखनउ में मेट्रो की सवारी की। बसपा सुप्रीमो ने हमेशा की तरह प्रचार में नहीं निकलीं। कांग्रेस ने प्रत्याशी घोषित कर स्थानीय नेताओं पर प्रचार की जिम्मेदारी छोड़ दी।

भाजपा ने एक तरफ सवर्णों के साथ-साथ अच्छी-खासी संख्या में पिछड़े वर्ग के प्रत्याशियों को चुनाव मैदान मेें उतारा। साथ ही पसमांदा मुसलमानों को अपने पक्ष में करने की मुहिम में तहत मुस्लिम बहुल इलाकों में नगर पंचायत अध्यक्ष व सदस्यों के 397 प्रत्याशिों को लड़ाया जिसमें 75 जीत भी गए।

भाजपा की पूरी कोशिश 2024 में होने वाले लोकसभा चुनाव के मद्देनजर अपना आधार विस्तृत करने की रणनीति के तहत इस चुनाव को लड़ा और उसे इसमें सफलता मिली। बसपा विधानसभा चुनाव की तरह इस चुनाव में दलित-मुस्लिम मतों पर अपने को फोकस करते हुए 17 नगर निगमों में से 11 में महापौर पद पर मुसलमान प्रत्याशी उतारे। सपा ने चार नगर निगमों में मुस्लिम प्रत्याशी दिए तो एआईएमआईएम ने नौ नगर निगमों में मुस्लिम प्रत्याशियों को टिकट दिया।

11 नगर निगमों में मुस्लिम उम्मीदवार खड़ा करने वाली बसपा पिछले चुनाव की जीती दो सीटों-मेरठ और अलीगढ को बचा नहीं पायी। मेरठ में एआईएमआईएम ने बसपा को पीछे धकेलते हुए दूसरा स्थान प्राप्त किया। बसपा को चार स्थानों-आगरा, गाजियाबाद, मथुरा, सहरानपुर में पर दूुसरा स्थान मिला जबकि कांग्रेस ने चैंकाते हुए तीन नगर निगमों-मुरादाबाद, झांसी और शाहजहांपुर में दूसरा स्थान प्राप्त किया। मुरादाबाद में कांग्रेस जीतते जीतते रह गई। यहां पर उसका प्रत्याशी भाजपा से सिर्फ 3643 मतों से पराजित हुआ।

नगर पंचायत

भाजपा 191 (35.11%) 1403 (19.55%) 100 (22.83%) 664 (12.22%)
सपा 79 (14.52%) 485 (6.76%) 83(18.95%) 453(8.34%)
बसपा 37 (6.8%) 215(3%) 45 (10.27%) 218 (4.01%)
कांग्रेस 14 (2.57) 77 (1.00) 17(3.88) 126 (2.32)
आप 6 (1.1) 61 (0.85) 2 (0.46) 19 (0.35)
एआईएमआईएम 2 (0.37) 23 (0.32) 1 (0.23) 6 (0.11)
रालोद 7 (1.29) 38 (0.53) 3(0.68) 34(0.63)
निर्दलीय 195 (35.85) 4825(67.23) 182 (41.55) 3876(71.23)

 

भाजपा भले 17 की 17 नगर निगमों में महापौर पद पर विजयी रही लेकिन गोरखपुर, अयोध्या, शाहजहांपुर, अलीगढ़, मुरादाबाद ओर फिरोजाबाद में उसका जीत का अंतर ज्यादा नहीं था। गोरखपुर, प्रयागराज सहित कई स्थानों पर मतदान प्रतिशत बहुत कम रहा और इन स्थानों पर भाजपा कुल मतों को 17 से 20 फीसदी मत प्राप्त कर विजयी हुई है।

कम से कम आधा दर्जन नगर निगम की सीटों पर मुस्लिम मतों के बसपा, सपा, कांग्रेस और एआईएमआईएम में बंटने से भाजपा को फायदा मिला और वह जीतने में कामयाब रही। इस चुनाव में मुस्लिम मतों का कांग्रेस के तरफ झुकाव नोट करने वाली बात है जो उत्तर प्रदेश में विधानसभा चुनाव के बाद बदलते समीकरण की तरफ संकेत करता है।

एक तरफ सपा, बसपा का पिछले चुनाव के मुकाबले इस चुनाव में प्रदर्शन कमजोर रहा वहीं दूसरी तरफ आम आदमी पार्टी, ने छह नगर पंचायत अध्यक्ष और तीन नगर पालिका अध्यक्ष, एआईएमआईएम ने तीन नगर पालिका और दो नगर पंचायत अध्यक्ष व आजाद समाज पार्टी ने तीन नगर पंचायत अध्यक्ष पर पर जीत हासिल कर यूपी में अपने बढ़ते कदम की ओर संकेत किया। आम आदमी पार्टी के 99 पार्षद जीते हैं। आजाद समाज पार्टी के 27 पार्षद जीते हैं जिसमें पांच नगर निगम के पार्षद हैं।

रालोद ने विधानसभा चुनाव की तरह नगर निकाय चुनाव में अपनी ताकत में और इजाफा किया। रालोद ने नगर पालिका और नगर पंचायत अध्यक्ष सात-सात सीट जीते। उसे 88 पार्षद भी जीते हैं।

दिग्गज नेताओं के गढ़ों में भाजपा की जिस तरह से हार हुई है, वो एक अलग कहानी कह रहा है। ब्रज और काशी क्षेत्र को छोड़ गोरखपुर, अवध और बुंदेलखंड क्षेत्र के नगर पालिकाओं में भाजपा 50 फीसदी से अधिक सीट हारी है। नगर पालिका में भाजपा 25 फीसदी वार्ड ही जीत पायी। इस तरह नगर पंचायतों में उसे 12 फीसदी वार्ड सदस्य जीत सके। नगर पालिकाओं में 64.23 फीसदी ओर नगर पंचायत में 71 फीसदी वार्ड सदस्य निर्दलीय जीते हैं।

नगर निकाय चुनाव के नतीजे बताते हैं कि शहरों में अभी भी भाजपा के मजबूत पकड़ है लेकिन विपक्षी राजनीति के लिए भी बहुत स्पेस है। शहरों में विपक्षी दल जनता के मुद्दों (बिजली पानी सड़क, यातायात, साफ-सफाई, पर्यावरण, शहरी गरीबों के प्रश्न ) पर संघर्ष न के बराबर करते हैं और उनकी सांगठनिक स्थिति भी बहुत कमजोर है। इसलिए शहरी निकायों में भाजपा के लिए कभी भी कोई मजबूत चुनौती नहीं रही। विपक्षी दल यदि सही मायनों में भाजपा की राजनीति को शिकस्त देना चाहते हैं तो शहरी निकाय के चुनावों को भी गंभीरता से लेना होगा, जनता के सवालों पर संघर्ष करना होगा।