पडरौना (कुशीनगर)। ज्ञानपीठ सहित अनेक राष्ट्रीय व अन्तरराष्ट्रीय सम्मान से सम्मानित हिन्दी के महत्वपूर्ण कवि केदारनाथ सिंह की स्मृति में प्रेमचंद साहित्य संस्थान और उत्तर प्रदेश हिन्दी संस्थान के तत्वावधान में आयोजित “केदारनाथ सिंह की कविताओं में जनपद और जनपदीय संस्कृति” विषयक तीन दिवसीय राष्ट्रीय संगोष्ठी के दूसरे दिन उदित नारायण पीजी कॉलेज पडरौना में पहले सत्र ‘ जनपद में केदार ‘ का आयोजन हुआ।
इस सत्र में वक्ताओं ने डॉ केदारनाथ सिंह से जन सामान्य से गहरे जुड़ाव, पडरौना से लगाव को बहुत शिद्दत से याद किया।
प्रेमचंद साहित्य संस्थान के निदेशक प्रो सदानंद शाही ने कहा कि आज का सत्र साहित्यिक गोष्ठियों से भिन्न है। इस सत्र में वे लोग अपनी यादें साझा करेंगे जो उनसे कई स्तरों पर जुड़े रहे हैं। उन्होंने कहा कि जब वह उदित नारायण पीजी कॉलेज में जब मैं बीए में पढ़ने आया तो केदार जी यहाँ से जा चुके थे। यहाँ पर हर व्यक्ति उनकी चर्चा करता था। यहाँ उन्हें लोग बहुत प्यार से याद करते हैं। कुछ वर्षों बाद 1980 में पडरौना में आयोजित कवि सम्मेलन वे आये और पहली बार उनको कविता पढ़ते हुए सुना। केदारनाथ सिंह ने अपनी कविता ‘ टूटा हुआ ट्रक ‘ पढ़ी थी।
प्रो शाही ने केदार जी के पडरौना में सामान्य लोगो से जुड़ाव का ज़िक्र करते हुए जुड़े कहा कि उन्होंने अपने अभिन्न मित्र कैलाश पति निषाद को खूब चिट्ठियाँ लिखी थी जिसमें इस जनपद और जनपद के लोगों का ज़िक्र बहुत शिद्दत से करते थे। कैलाश पति निषाद के घर उन चिट्ठियों का बंडल मिला जिसमें लगभग 100 चिट्ठियाँ थी। उनका पूरा व्यक्तित्व इतना सहज था कि साधारण लोग भी उनसे जुड़ जाते थे।
इसी महाविद्यालय में पढ़े शिक्षक डॉ भानु प्रताप ने कहा कि हमारी पीढ़ी ने हिन्दी विभाग के ज़रिए केदार जी को जाना और साहित्य से जुड़े।
राणा प्रताप सिंह ने अपनी कहानी के ज़रिए डॉ केदारनाथ सिंह को याद किया और कहा कि वे पडरौना में
रमता जोगी की तरह रहे।
रमा खेतान ने कहा कि उनका परिवार केदार जी कविता से जुड़ा और फिर उनका आत्मीय बन गया। हमने उनसे सामान्य व्यक्तियों को अपनाना सीखा।
महाविद्यालय के हिन्दी विभाग के अध्यक्ष रहे डॉ राम नरेश दुबे ने कहा कि अनुपस्थिति के बाद पडरौना उन्हें और ज़्यादा याद करता था।पडरौना उनके लिये हृदयस्थल था। वे धूल, ईंट, दीवार, सड़क आदि निर्जीव चीजों में भी प्यार की ख़ुशबू तलाश कर लेते थे।
केदार नाथ सिंह के शिष्य रहे उमशंकर ने भोजपुरी से उनके लगाव के बारे में बताया।
वरिष्ठ कवियित्री डॉ रंजना जायसवाल ने कहा कि केदार जी उनके पिता जैसे थे। यहाँ पढ़ते हुए वे केदार जी की बेटी उषा और पत्नी से संपर्क में आयी और जल्द ही बहुत गहराई से जुड़ गईं। उनका घर और उनकी छोटी सी लाइब्रेरी हमें बहुत आकृष्ट करती थी।
वीणा श्रीवास्तव ने कहा कि उनकी निश्छल हंसी आज भी याद आती है। वे हमारे परिवार के सदस्य जैसे थे। वे हर व्यक्ति की चिंता करते थे।
इस सत्र की अध्यक्षता कर रहे इसी महाविद्यालय के हिन्दी विभाग के शिक्षक रहे डॉ प्रेमचन्द सिंह ने केदारनाथ सिंह से जुड़े आत्मीय संस्मरण साझा करते हुए कहा कि पूरा पडरौना उन्हें डॉक्टर साहब के नाम से याद करता था। वे पडरौना के गौरव थे। पडरौना 14 वर्ष तक उनकी कर्मस्थली रही।
इस सत्र में शुभ नारायण शर्मा ने भी अपनी बात रखी।
संचालन हिन्दी विभाग के शिक्षक डॉ विजय प्रताप निषाद ने किया।