साहित्य - संस्कृति

उस्ताद कवि थे केदारनाथ सिंह -उदय प्रकाश

रामकोला (कुशीनगर)। ज्ञानपीठ सहित अनेक राष्ट्रीय व अन्तरराष्ट्रीय सम्मान से सम्मानित हिन्दी के महत्वपूर्ण कवि केदारनाथ सिंह की स्मृति में प्रेमचंद साहित्य संस्थान और उत्तर प्रदेश हिन्दी संस्थान के तत्वावधान में आयोजित ‘ केदारनाथ सिंह की कविताओं में जनपद और जनपदीय संस्कृति ‘  विषयक तीन दिवसीय राष्ट्रीय संगोष्ठी आज से रामकोला स्थित शिवदुलारी देवी दलडपट शाही महिला महाविद्यालय में शुरू हुई। उद्घाटन समारोह में जाने माने लेखकों ने केदारनाथ सिंह को याद करते हुए उनके जीवन, साहित्य के बारे में अपने विचार व्यक्त किए।

कार्यक्रम के प्रारंभ में उत्तर प्रदेश हिन्दी संस्थान की संपादक अमिता दुबे ने फ़रवरी 2016 में हिन्दी संस्थान और प्रेमचंद साहित्य संस्थान द्वारा इसी महाविद्यालय में आयोजित कहानी कार्यशाला और उसमें केदारनाथ सिंह की उपस्थिति को याद करते हुए कहा कि हिन्दी संस्थान, भाषा और संस्कृति के साथ साहित्यकारों की स्मृति को अक्षुण्ण रखने का प्रयास करता है और उसके निमित्त आयोजनों को सहयोग देता है। संस्थान ‘ साहित्य भारती ‘और ‘ बाल वाणी’ नाम की त्रैमासिक पत्रिका का भी संपादन करता है।

प्रेमचंद साहित्य संस्थान के निदेशक प्रो सदानंद शाही ने संगोष्ठी की रूपरेखा की चर्चा करते हुए कहा कि कुशीनगर जनपद ने पूरे देश को प्रतिभाएँ दी हैं। अब जनपद को इन प्रतिभाओं की ज़रूरत है।
उन्होंने कहा कि केदार जी की कविताओं और गद्य में पडरौना बार-बार आता है। केदार जी कहते हैं कि यहाँ की काली मिट्टी में ग़ज़ब का आकर्षण है। विषम परिस्थितियों में सारे दुख अभाव को झेल रहा यहाँ का किसान आत्महत्या नहीं करता है। यह धरती पूरब की धरती है जहां दुःखी , वंचित लोगों के हृदय का हाहाकार है जिसे केदार जी ने अपनी कविता में व्यक्त किया है। केदारनाथ सिंह की चिंता थी कि वे जिसके लिये कविता लिख रहे हैं वह उन लोगों तक कैसे पहुँचे। इसी कोशिश में वे सामान्य लोगों से जुड़ते थे। उनकी कविता में बुद्ध की करुणा समायी है जिसके पीछे कुशीनगर की भूमि है। अपने कवि को याद करने का अर्थ अपनी परंपरा की गहन अनुभूति से और अपनी सांस्कृतिक विरासत से जुड़ना है।

उन्होंने केदार जी की कविता ‘ शहर बदल ‘ का पाठ भी किया।

मशहूर कथाकार और कवि उदय प्रकाश ने केदारनाथ सिंह को याद करते हुए कहा कि मेरे जेएनयू आने के एक वर्ष बाद केदारी जी यहाँ आये थे। हम दोनों अपने अपने भय से लड़ते हुए जुड़ते चले गये। हमारी उनके साथ इतनी यादें हैं कि कहना मुश्किल है। एक बार दिल्ली में बारिश के बीच उन्होंने कुशीनगर के चीना बाबा की कहानी सुनायी थी जो युद्ध की विभीषिका और टकराहटों से भयभीत होकर भाग आया था और कुशीनगर में पेड़ को घर बना किया था। उस इतिहास के पन्ने को रचना में समेटने का प्रयास कर रहा हूँ। उसी कहानी के प्रभाव में 2007 में कुशीनगर आया था। चीना बाबा का डर आज हर जगह है। उदय प्रकाश ने केदारनाथ सिंह को उस्ताद कवि बताते हुए कहा कि वह हिन्दी के सबसे सुंदर कवि थे। वे अजातशत्रु भी थे।
उन्होंने कहा कि बुद्ध की धरती ऐसी धरती है जहां रूढ़ियाँ और परम्परायें टूट रही हैं, तरल हो रही है। बुद्ध धान के किसानों की आवाज़ थे जहां पशु धन खेती के लिए अनिवार्य था। बुद्ध हम सबके भीतर हैं। भारत की विविधता बुद्ध में सबसे अच्छे से अभिव्यक्ति हुई है।

प्रो अवधेश प्रधान ने कहा कि केदारनाथ सिंह ने कुशीनगर की धरती को प्यार किया और प्यार पाया। बड़ा से बड़ा
लेखक चाहता है कि वह अपने लोगों का आत्मीय कहलाये। यह केवल कहने से नहीं होती है। लेखक को उसे अपनी रचना में आना होता है । उन्होंने उस तरह के आयोजनों की ज़रूरत को रेखांकित करते हुए कहा कि लेखक की रचनाओं से हर पीढ़ी का परिचय ज़रूरी है और इस तरह के आयोजन इसमें सहायक होते हैं। कवि के संकल्प को साहित्य के माध्यम से लोगों तक पहुँचाने का काम सांस्कृतिक चेतना का बहुत बड़ा काम है।

प्रो प्रधान ने कहा कि केदारनाथ सिंह ने गीत को नया रूप दिया। उन्होंने लोकगीत में खप जाने वाले गीत लिखे। केदार जी में जनपदीयता, आंचलिकता जैसी नहीं है। वे हमारे जनपद की भाषा को एकदम अलग तरीक़े से पकड़ते हैं। उनकी भाषा में ख़ास तरह का नयापन है। उनकी बाद की कविताओं में पशु लोक की छवियाँ बहुत आती हैं। वे ऐसी भाषा रचते हैं जिसमें मिट्टी, धूल , चींटियाँ, धरती का फूल और आकाश का तारा सब एक ही जीवन जैसे लगते हैं। उनकी कविताओं में राजनीति और विश्व की चिंताएँ हैं। उनके जनपद का विस्तार बहुत है।

भोजपुरी के जाने माने कवि प्रकाश उदय ने केदार जी की कविता ‘ बिजली चमकी है …’ का भोजपुरी पाठ किया।

उद्घाटन समारोह की अध्यक्षता कर रहे वरिष्ठ कथाकार प्रो रामदेव शुक्ल ने कहा कि जिसको हम बहुत जानते हैं उनको जानना मुश्किल होता है। केदार जी के बारे में ऐसा ही है। उनमें मुक्ति की तड़प थी। उनकी मुक्त चेतना को किसी भी तरह की तानाशाही बर्दाश्त नहीं थी। उनकी कविता में सातों समुद्र की बजने वाली धीमी आवाज़ भोजपुरी की है। उनकी गरिमा अतिशय विनम्र थी।

धन्यवाद ज्ञापन महाविद्यालय की प्राचार्य डॉ मनीषा सिंह ने किया।

इस मौक़े पर महाविद्यालय की पत्रिका ‘ नंदिनी ‘ का विमोचन भी किया गया। कार्यक्रम में वरिष्ठ लेखक रणविजय सिंह, यशराज सिंह, पूर्व विधायक मदन गोविंद राव, केन यूनियन के अध्यक्ष रहे बैंकुंठ शाही, आलोक कुमार दुबे, हरिंद्र सिंह को सम्मानित किया गया।

कार्यक्रम का संचालन अंशु प्रिया ने किया।

इस अवसर पर कवयित्री डॉ रंजना जायसवाल, आलोचक कपिलदेव, प्रो राजेश मल्ल, भानु प्रताप सिंह, कहानीकार अमित कुमार, ब्रजराज सिंह, मांधाता सिंह, अनूप पटेल, डॉ गौरव तिवारी, दिनेश तिवारी, विहाग वैभव, पृथ्वीराज सिंह सहित बड़ी संख्या में साहित्यकार, स्थानीय लोग व छात्राएँ उपस्थित थे।

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