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मासिक गोष्ठी में जसम ने उर्दू कथाकार रामलाल को याद किया, असग़र मेहदी और विमल किशोर का कहानी पाठ

लखनऊ। जन संस्कृति मंच, लखनऊ के कार्यक्रम ‘ लेखक के घर चलो’ के तहत रविवार को कवयित्री विमल किशोर और कौशल किशोर के निवास राजाजीपुरम में मासिक गोष्ठी हुई। उर्दू के कहानीकार राम लाल जी की 101 वीं जयंती पर उन्हें विशेष तौर पर याद किया गया। उनकी कहानियों में “दो राष्ट्रों का सिद्धांत” को नकारने के साथ महिला सशक्तीकरण जैसे अन्य मुद्दों को विशेष स्थान दिया गया है। उनका इस बात पर हमेशा बल रहा है कि उर्दू को किसी धर्म से न जोड़ा जाए।

इस मौके पर दो कहानियों का पाठ हुआ। जसम लखनऊ के कार्यकारी अध्यक्ष तथा उर्दू के जाने-माने लेखक असग़र मेहदी ने अपनी कहानी “वह दस मिनट” का पाठ किया। इस कहानी के केंद्र में जर्मनी में कार्यरत एक यहूदी महिला वैज्ञानिक लीसा के जर्मनी से पलायन को केंद्र में रखा गया है। लीसा ऑस्ट्रीयाई यहूदी है जो हिटलर के द्वारा ऑस्ट्रीया के हरण के बाद जर्मन नागरिक है और उस पर भी नस्लवादी क़ानून लागू हो जाते हैं। चूँकि वह उच्चकोटि की वैज्ञानिक है इसलिए वह जर्मनी से बाहर भी नहीं जा सकती। लेकिन कुछ मित्रों की सहायता से वह जर्मनी से पलायन करती है। जर्मनी-हॉलैंड सीमा पर जब ट्रेन रुकती है तो जर्मन सेना के सिपाही उसके पास्पोर्ट को जाँच के लिए ले जाते हैं और दस मिनट बाद वापस कर देते हैं। ये दस मिनट उसके लिए किसी क़यामत से कम नहीं होते, इस दौरान उसके मस्तिष्क में गत 7-8 वर्षों को घटनाएँ उभरती हैं। ये घटनाएँ तत्कालीन नाज़ीवादी जर्मनी की परिस्थितियों का ऐसा नक़्शा पेश करती हैं कि श्रोता वर्तमान राजनैतिक, सामाजिक और सांस्कृतिक राष्ट्रवाद के ख़तरों को महसूस करने पर मजबूर हो जाता है।

दूसरी कहानी विमल किशोर ने सुनाई। इसका शीर्षक था ‘मुनिया बहादुर है’। कहानी शहरों में झुग्गी-झोपड़ियों में रहने वालों की जीवन दशा और संघर्ष को सामने लाती है। उनके जीवन में कुछ भी स्थाई नहीं है। वे बार-बार उजाड़ जाते हैं। जब भी जिंदगी रास्ते पर आती है, वहां बुलडोजर पहुंच जाता है। इन्हीं के बीच मुनिया है जो पढ़ना चाहती है। वह नहीं पढ़ पाती है। उसकी शादी असमय हो जाती है। वहां भी नहीं निभती। कहानी एक तरफ विस्थापन की समस्या को उठती है तो वहीं स्त्रियों के साथ होने वाले भेदभाव-उत्पीड़न को सामने लाती है। कहानी की मुख्य पात्र मुनिया के मन में सवाल हैं। वह समस्याओं से जूझती है परंतु हार नहीं मानती है । कहानी में उसका संघर्षशील व्यक्तित्व सामने आता है।

दोनों कहानियों पर चर्चा हुई। विशेष रूप से विमल किशोर की कहानी पर कुछ अच्छे सुझाव आए।

गोष्ठी में जसम ने आगे के तीन महीने के कार्यक्रम तय किए। हाल में कवि और संस्कृतिकर्मी कौशल किशोर की ‘भगत सिंह और पाश अंधियारे का उजाला’ शीर्षक से किताब आई है। मार्च में उसके विमोचन और बातचीत का कार्यक्रम होगा । इसी महीने भगत सिंह और पाश का शहादत दिवस है । जसम की ओर से अप्रैल में डॉ अंबेडकर जयंती पर कार्यक्रम आयोजित किए जाएंगे।

गोष्ठी की अध्यक्षता जसम लखनऊ के कार्यकारी अध्यक्ष असग़र मेहदी ने की तथा सचिव फरज़ाना महदी ने संचालन किया। इस अवसर पर सईदा सायरा, विमल किशोर, अशोक श्रीवास्तव, सत्य प्रकाश चौधरी, मोहम्मद कलीम खान, राकेश कुमार सैनी और कौशल किशोर मौजूद थे।

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