योगेन्द्र यादव
राजनीति में कभी-कभी आपका धुर विरोधी भी अनजाने में ही आपकी मदद कर जाता है। ऐसा ही प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कांग्रेस पार्टी से साथ किया। कांग्रेस ने अपना मैनिफैस्टो जारी किया। मीडिया इस चुनाव में विपक्ष की हर खबर को दबा रहा है, यही उसने कांग्रेस मैनिफैस्टो के साथ भी किया। लेकिन मोदी जी के एक बयान से इस मैनिफैस्टो को उतना प्रचार-प्रसार मिल गया जो उसे मीडिया देना नहीं चाहता था। बयान अजीब था। प्रधानमंत्री ने कांग्रेस पर हमला करते हुए कहा कि इस मैनिफैस्टो के हर पेज पर मुस्लिम लीग की छाप है। उन्होंने न इस बात का खुलासा किया, न ही इसके पक्ष में कोई प्रमाण दिया। बस मुस्लिम परस्त होने का लेबल चिपका दिया। सच यह है कि कुल 48 पेजों के इस दस्तावेज में मुस्लिम समुदाय का नाम तक नहीं लिया गया है। भाजपा के पुराने मैनिफैस्टो की तरह केवल एक पेज भाषाई और धार्मिक अल्पसंख्यकों को दिया गया है। इस पृष्ठ पर भाषाई और धार्मिक अल्पसंख्यकों के संवैधानिक अधिकारों की रक्षा, बिना भेदभाव के उन्हें अवसर उपलब्ध करवाने जैसी अमूर्त बातें लिखी गई हैं।
पारिवारिक कानून जैसे नाजुक मुद्दे पर कांग्रेस ने सिर्फ इतना लिखकर काम चला लिया कि अल्पसंख्यक समुदाय को विश्वास में लेकर इन कानूनों में सुधार किया जाएगा। इस पर यह आपत्ति तो हो सकती थी कि यह दस्तावेज मुस्लिम समाज के साथ जो बीत रही है उस सच को दर्ज नहीं करता, उसे सुधारने के ठोस उपाय नहीं बताता। लेकिन उलटे इस पर मुस्लिम लीगी होने का आरोप समझ से परे है। ऐसा लगता है कि लिफाफा खोलने से पहले ही मोदी जी ने मजमून के बारे में अपनी धारणा पक्की कर ली थी। वैसे हमारे प्रधानमन्त्री सत्य और वाणी की मर्यादा का ज्यादा लिहाज नहीं करते हैं, चुनाव के समय तो बिल्कुल नहीं। फिर भी उनका यह बयान अतार्किकता का नया कीर्तिमान बनाता है। देखना है कि चुनाव आयोग इस मुद्दे पर कांग्रेस की शिकायत पर कुछ करता है या नहीं। जो भी हो, इस प्रकरण ने कांग्रेस के मैनिफैस्टो को चर्चा में जरूर ला दिया है। ‘न्यायपत्र’ नामक यह दस्तावेज चर्चा के काबिल भी है। कांग्रेस चाहे तो इस मौके का फायदा उठाकर अपने दस्तावेज के उन 5 पहलुओं को देश के सामने रख सकती है जो राजनीतिक बहस की धारा मोड़ सकते हैं।
कांग्रेस का मैनिफैस्टो युवाओं के लिए केंद्र सरकार में और केंद्र सरकार द्वारा समर्थित योजनाओं में 30 लाख नई नौकरियां देने का वादा करता है। सरकारी नौकरी में चल रहे भर्ती के घोटालों को खत्म करने के वायदे के साथ इसमें हर ग्रैजुएट या डिप्लोमाधारी को एक साल की अप्रैंटिसशिप में एक लाख रुपए के मानदेय की गारंटी का कानूनी प्रावधान करने का वादा है जो बेरोजगारी पर चल रही बहस में एक बड़ा और सार्थक कदम हो सकता है। दूसरी बड़ी घोषणा किसानों के लिए है। कांग्रेस ने बिना किंतु-परंतु के किसान आन्दोलन की प्रमुख मांग को शब्दश: स्वीकार कर लिया है। यानी सभी किसानों को सभी फसलों पर स्वामीनाथन आयोग के फॉर्मूले के हिसाब से फसल की लागत की डेढ़ गुना एम.एस.पी. की कानूनी गारंटी।
साथ में फसल बीमा योजना में बुनियादी सुधार कर 30 दिन के अंदर मुआवजा देने की गारंटी तथा किसानों का कर्ज माफ करने के लिए एक स्थायी ऋण मुक्ति आयोग बनाने की बात भी दूरगामी सोच दिखाती है। तीसरी बड़ी घोषणा महिलाओं के लिए है। मोदी सरकार द्वारा भविष्य में अनिश्चितकाल में महिला आरक्षण देने वाले कानून के बरक्स कांग्रेस का घोषणा पत्र महिलाओं को सरकारी नौकरियों में 50 प्रतिशत आरक्षण का प्रस्ताव करता है। इस देश में सबसे बड़ी संख्या में महिलाकर्मियों यानी आशाकर्मियों, आंगनबाड़ी कर्मियों और मिड-डे मील कर्मियों का वेतनमान दोगुना करने का वादा किया गया। साथ ही हर गरीब परिवार में एक महिला को सालाना एक लाख रुपए देने की महालक्ष्मी योजना की घोषणा भी की गई है।
चौथी घोषणा सैंकड़ों साल से सत्ता के हाशिए पर धकेल दिए गए दलित, आदिवासी और पिछड़े समाज के बारे में है। यह घोषणा पत्र उन्हें सत्ता में बराबरी का हिस्सा देने का आश्वासन ही नहीं देता बल्कि इसे मूर्त रूप देने के लिए भी जातिवार जनगणना और आरक्षण पर लगी 50 प्रतिशत की दीवार को हटाने का वादा भी करता है। जो भी वर्ग न्याय के इन चार उपायों के बाहर है उनके लिए पांचवां प्रस्ताव है जो समाज से सभी वर्गों के लिए सामाजिक सुरक्षा का आश्वासन देता है। इसके तहत बुजुर्ग, विधवा और विकलांगों की पैंंशन को दोगुना करना, मनरेगा की तर्ज पर शहरी रोजगार गारंटी योजना तथा मनरेगा का न्यूनतम मानदेय 400 रुपया प्रतिदिन करने का वादा है। इसमें सबसे महत्वपूर्ण प्रस्ताव है राजस्थान की चिरंजीवी योजना की तर्ज पर देश भर में सरकारी या प्राइवेट अस्पतालों में मुफ्त दवाई और इलाज की योजना। ऐसी कोई भी योजना देश में सामाजिक सुरक्षा के लिए मील का पत्थर साबित हो सकती है। हालांकि कांग्रेस का यह घोषणापत्र चुनाव से सिर्फ दस दिन पहले आया है लेकिन इस बार राजनीतिक समझदारी दिखाते हुए कांग्रेस ने ये सभी बड़ी घोषणाएं ‘भारत जोड़ो न्याय यात्रा’ के दौरान चुनाव से कोई एक या दो महीने पहले ही कर दी थीं।
आशा करनी चाहिए कि ‘इंडिया’ गठबंधन इनमें से कुछ प्रस्तावों को अपना सकेगा। लोकतांत्रिक राजनीति की मर्यादा यह मांग करती है कि सत्तारूढ़ भारतीय जनता पार्टी या तो इन प्रस्तावों की खामियां बताए या फिर अपने घोषणा पत्र में इन प्रस्तावों के जवाब में कुछ ठोस विकल्प लेकर आए। अगर भाजपा इन प्रस्तावों का जवाब सिर्फ अनर्गल आरोपों से देती है तो इसे लोकतांत्रिक मर्यादा से एक और पलायन ही माना जाएगा।