संतकबीरनगर. पूर्व सांसद एवं सपा के वरिष्ठ नेता भालचन्द्र यादव 20 अप्रैल को लखनऊ में कांग्रेस में शामिल हो गए. वह संतकबीरनगर से कांग्रेस से चुनाव लड़ने जा रहे हैं. उनके मैदान में आने से संतकबीर नगर की लड़ाई रोचक हो गई है.
संतकबीरनगर से कांग्रेस ने अपने जिलाध्यक्ष परवेज खान को प्रत्याशी बनाया था. उनकी कमजोर उपस्थिति को देख कांग्र्रेस यहां से प्रत्याशी बदलने पर विचार कर रही थी. इसके लिए पहले परवेज खान को मनाया गया. कांग्रेस की पूर्वी उत्तर प्रदेश की प्रभारी प्रियंका गांधी ने परवेज को बुलाकर बात की और उन्हें प्रत्याशी बदलने की परिस्थिति के बारे में सहमत किया.
परवेज खान ने भी पार्टी के निर्णय के प्रति सहमति का इजहार कर दिया है. इसके बाद भालचन्द्र यादव को लखनऊ बुलाकर कांग्रेस में शामिल कराया गया. उनकीकांग्रेस से उम्मीदवारी पक्की मानी जा रही है. आज उनके टिकट के बारे में घोषणा हो सकती है.
60 वर्षीय भालचन्द्र संतकबीरनगर से दो बार सांसद रह चुके हैं. वह 1999 में सपा से और 2004 में बसपा से चुनाव जीतकर सांसद बने थे. उन्होंने 1998 से ऐसा कोई चुनाव नहीं हैं जो लड़ा न हो. इस बार के चुनाव में सपा-बसपा-रालोद महागठबंधन में यह सीट बसपा कोटे में गई है. बसपा ने यहां से पूर्व सांसद भीष्म शंकर तिवारी उर्फ कुशल तिवारी को प्रत्याशी बनाया है. उन्होंने 19 अप्रैल को नामांकन भी कर दिया.
महागठबंधन में जगह न मिलने पर भालचन्द्र यादव कांग्रेस और भाजपा में राह तलाशने लगे. पहले उनकी बातचीत कांग्रेस से हुई लेकिन फिर वह भाजपा पर केन्द्रित हो गए. भाजपा की ओर से भी उन्हें अच्छे संकेत दिए गए लेकिन निषाद पार्टी के भाजपा के साथ अपने से समीकरण बदलने लगे. भाजपा गोरखपुर, संतकबीरनगर और देवरिया सीट पर जातीय संतुलन बिठाने में लग गई और इस चक्कर में भालचन्द्र का टिकट कट गया.
भाजपा से निराश होने पर उन्होंने एक बार फिर कांग्रेस की ओर रूख किया. कांग्रेस अपने प्रत्याशी परवेज खान के एक महीने के प्रदर्शन से असंतुष्ट थी. आखिरकार बात बन गई और भालचन्द्र कांग्रेस में शामिल हो गए.
भाजपा ने यहां से गोरखपुर के वर्तमान सांसद प्रवीण निषाद को प्रत्याशी बनाया है. प्रवीण निषाद वर्ष 2018 के लोकसभा उपचुनाव में गोरखपुर से सपा प्रत्याशी के रूप में लड़े थे और जीते थे. वह निषाद पार्टी के अध्यक्ष डा. संजय कुमार निषाद के बेटे हैं. निषाद पार्टी का भाजपा से गठबंधन होने के बाद प्रवीण निषाद भाजपा में शामिल हो गए. संतकबीरनगर सीट पर वर्तमान भाजपा सांसद शरद त्रिपाठी और भाजपा विधायक राकेश सिंह बघेल के बीच हुए जूता कांड के कारण भाजपा असमंजस में थी कि वह यहां किसे लड़ाए. इस घटना को लेकर यहां ठाकुर-ब्राह्मण तनाव उत्पन्न हो गया था और शरद त्रिपाठी को लड़ाने या न लड़ाने पर वोटों के ध्रवीकरण का खतरा था. ऐसे में भाजपा ने प्रवीण निषाद को यहां से चुनाव लड़ाना बेहतर समझा. उसे उम्मीद है कि प्रवीण निषाद के नाम पर ब्राह्मण-ठाकुर एक साथ उसके पक्ष में रहेंगे. इस सीट पर निषादों की अच्छी-खासी संख्या भी उसके पक्ष में है.
भालचन्द्र यादव के मैदान में आने से संतकबीर नगर में दिख रही सीधी लड़ाई त्रिकोणीय हो गई है। भालचन्द्र का अपना खुद का आधार है. उनका दो दशक से अधिक समय का राजनैतिक कैरियर है. उन्होंने अपने राजनीतिक जीवन की शुरूआत ट्रेड यूनियन नेता के रूप में किया था. वह मगहर स्थित संतकबीर सहकारी कताई मिल में कर्मचारी थे और कर्मचारी संघ के नेता भी. यह कताई मिल 1998 में बंद हो गई. इसके बाद भालचन्द्र सपा के साथ आ गए. वह सपा के जिला अध्यक्ष बने. एक वर्ष बाद ही 1999 मेें उन्हें सपा से खलीलाबाद (तब संतकबीरनगर संसदीय क्षेत्र इसी नाम से जाना जाता था) टिकट मिला और वह सांसद चुने गए. इसके बाद वर्ष 2004 में हुए चुनाव में बसपा से लड़े और जीते लेकिन 2009 व 2014 का चुनाव वह हार गए.
इस बीच उनके बेटे सुबोध यादव सिद्धार्थनगर जिले के जिला पंचायत अध्यक्ष भी बने. वर्ष 2017 के चुनाव में भालचन्द्र चाहते थे कि उनके बेटे सुबोध को खलीलाबाद से टिकट मिले लेकिन नहीं मिला. फिर इस लोकसभा में बसपा के कोटे में सीट जाने से उनकी चुनाव लड़ने की उम्मीद खत्म हो गई थी लेकिन कांग्रेस के हाथ ने उन्हें संभाल लिया. अब वह बहुत उत्साह के साथ ताल ठोंकने जा रहे हैं. उन्होंने गठबंधन और भाजपा प्रत्याशी को बाहरी बताते हुए करारा हमला किया है.