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समानता, बंधुत्व के आदर्श की प्राप्ति में साहित्य की भूमिका प्रमुख

गोरखपुर। प्रेमचंद जयंती की पूर्व संध्या पर 30 जुलाई को गोरखपुर जर्नलिस्ट प्रेस क्लब के सभागार में ‘साहित्य का उद्देश्य’ के पुनर्पाठ कार्यक्रम का आयोजन किया गया। इस मौके पर अकताओं ने कहा कि व्यवस्थागत विसंगतियों के प्रति प्रतिरोध और प्रश्नाकुलता साहित्य की हर विधा में दिखाई दे रही है।

यह कार्यक्रम प्रलेस, जलेस, जनसंस्कृति मंच और दलित साहित्य-संस्कृति मंच का साझा कार्यक्रम था। स्वागत उद्बोधन प्रलेस के सचिव मीडिया वीरेंद्र मिश्र दीपक ने और संचालन जलेस अध्यक्ष जेपी मल्ल ने किया।

सबसे पहले जेपी मल्ल ने प्रेमचंद लिखित ‘साहित्य का उद्देश्य’ निबंध ‘का पाठ किया।

गोरखपुर विश्वविद्यालय हिन्दी विभाग के पूर्व अध्यक्ष प्रो. अनिल कुमार राय ने कहा कि प्रेमचंद की जो छवि जनमानस में निर्मित हुई, उसके बारे में मुकम्मल जानकारी उनके ‘साहित्य का उद्देश्य’ निबंध को पढ़कर ही हासिल की जा सकती है।

यशस्वी यशवंत ने कहा कि हिन्दी ही नहीं, लोकभाषा में भी लिखे जा रहे साहित्य में जबरदस्त प्रतिरोध देखने को मिल रहा है। इससे साहित्य के उद्देश्य को लेकर चिंतित होने की जरूरत नहीं है।

अलख निरंजन ने कहा कि समय को ध्यान में रखकर आज के साहित्यकारों के कंधों पर चुनौतियां बड़ी हैं।

गोविवि हिंदी विभाग के प्रोफेसर राजेश मल्ल ने कहा जिस तरह से प्रेमचंद ने देश, दुनिया, समय और परिवेश को ध्यान में रखकर लेखन में पुराने सौन्दर्य बोध को खारिज करते हुए नया प्रतिमान गढ़ते हैं, आज भी उसी राह पर चलने की जरूरत है। इसके लिए लेखकों को दुनिया में हो रहे सामाजिक, आर्थिक, राजनीतिक बदलावों पर पैनी नजर रखनी होगी।

जनसंस्कृति मंच के राष्ट्रीय महासचिव मनोज कुमार सिंह ने कहा कि प्रेमचंद ने बदलाव की लड़ाई और समानता, बंधुत्व के आदर्श की प्राप्ति में साहित्य की शक्ति को रेखांकित किया। ‘ साहित्य का उद्देश्य ‘ में उन्होंने साहित्य और लेखक के लिए जो मानदंड प्रस्तावित किए वे आज और भी मौजूं हैं। उन्होंने कहा कि आज के दौर में फासिस्ट सत्ता के खिलाफ तन कर खड़े होना और जनता की आवाज को पूरी निर्भीकता से प्रकट करना लेखकीय दायित्व है।

 जलेस महासचिव प्रमोद कुमार ने कहा कि गोरखपुर में लिखने वालों की कमी नहीं, मगर उनमें साहित्य के उद्देश्य की जानकारी का अभाव है। इसे दूर किया जाना निहायत जरूरी है।

कार्यक्रम की अध्यक्षता वरिष्ठ कहानीकार मदन मोहन ने की। संगोष्ठी में विचार व्यक्त करने वालों में डा. रंजना जायसवाल, सत्य नारायण पथिक, स्मिता सिंह, प्रदीप सुविज्ञ, अलख निरंजन , प्रबोध नारायण, रामचंद्र प्रसाद त्यागी आदि लोग शामिल रहे।
इस मौके पर राजाराम चौधरी, भरत शर्मा, जेपी नायक, डा. प्रीति त्रिपाठी, अशोक चौधरी, धर्मेन्द्र त्रिपाठी, वेद प्रकाश, डा. आनंद पांडेय, कामिल खान, कुमार अभिनीत, विनोद निर्भय, निखिल पांडेय के नाम उल्लेखनीय हैं। धन्यवाद ज्ञापन प्रलेस अध्यक्ष कलीमुल ह़क ने किया।

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